वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। देश भर में दिवाली का जश्न है. प्रदेश के मुखिया भी अपने गृह नगर में परिवार के संग दिवाली की खुशिया मना रहे हैं. लेकिन मुखिया जी शायद आपको पता ही होगा कि आपके नया रायपुर के एक गांव के लोग दिवाली नहीं मना रहे हैं. इस गांव का नाम जितना सुंदर है वहां के लोगों की जिंदगी उतनी ही बुरी हो चली है. कुछ इसी तरह के एहसास के साथ जीं रहे हैं ये गांव वालें. कारण आपको पता ही है, लेकिन उन कारणों पर ना जाकर दिवाली के मसले पर टिका रहना सही होगा, क्योंकि सवाल उन 23 परिवार का है जो दिवाली ना मनाकर धरने पर बैठ गए हैं.

ये तस्वीर नया रायपुर के राखी गांव की है. ये गांव का टूटा चबुतरा है और ये गांव के वे 23 परिवार के लोग जो एनआरडीए का दंश झेल-झेलकर अब टूट चुके हैं.  हिम्मत इतनी रही नहीं है कि वे आपके चौखट पर जाकर न्याय की गुहार लगा सके हैं. लिहाज अपने गांव की चौखट पर धरने और भूख हड़ताल पर ही बैठ गए. इन्हें ये भी मालूम है कि सुनवाई नहीं होगी. निराशा के इस वक्त़ में मीडिया से आस है, लेकिन ये विश्वास नहीं कि कहीं से कुछ होगा. फिर भी मीडिया के जरिए ही वे अपनी बात नया रायपुर विकास प्राधिकरण से लेकर अपने सीएम तक पहुंचा रहे हैं.

अगर आप खबर पूरी पढ़ रहे हैं, पढ़ने के इच्छुक बने हुए हैं तो सवाल ये उठ रहा होगा कि ये 23 परिवार दिवाली के दिन ही धरने पर क्यों बैठे हैं ? ये कुछ समझ से परे था. लेकिन जवाब है. जवाब ये है कि इन 23 परिवारों की शिकायत ये है कि नया रायपुर विकास प्राधिकरण की ओर से गांव को उजाड़कर शहर बसाया जा रहा है. मिट्टी की जगह क्रांक्रिट और पक्की सड़क, मकान बनाए जा रहे हैं. गांव , गांव ना रहकर सेक्टर में बदल रहा है. और इस बदलाव में राखी गांव के सैकड़ों परिवारों को गांव छोड़कर वहां के सैकड़ों परिवार को उनके खुद के घरों से 6 सौ वर्ग फीट वाले फ्लैटों में शिफ्ट कर दिया गया है.

शिफ्टिंग के इस कड़ी में अब गांव के भीतर ये 23 परिवार शेष रह गए हैं. धरने पर बैठ परिवार वालें और इस धरने का नेतृत्व कर रहे संजय कुमार का कहना है कि एनआरडीए ने सभी को मकान देने का वादा किया था. लेकिन एक परिवार में अगर 10 लोग सदस्य हैं, तो उन्हें भी 6 सौ वर्ग फीट के फ्लैट में भेजा जा रहा है. जिन्होंने मकान नहीं छोड़ा उन्हें जबरदस्ती घर तोड़ने की धमकी दी जा रही है.  परिवार के कुछ सदस्यों के दुकानों को तोड़ दिया गया है. जल्द ही अब घर भी तोड़ दिए जाएंगे. मुआवजे की प्रकिया भी ईमानदारी और वादें के मुताबिक पूरी नहीं हो रही है.

धरने पर ही बैठे परमानंद साहू का आरोप है कि घर नहीं छोड़ने पर उनकी पत्नी चंदा साहू को एनआरडीए की ओर से नौकरी से निकाल दिया गया है. यही नहीं 7 महीने का वेतन भी नहीं दिया. एनआरडीए के अधिकारियों का कहना है कि जब तक वे अपना घर नहीं छोड़ेंगे, उनकी पत्नी को नौकरी पर वापस नहीं रखेंगे और ना ही वेतन का भुगतान करेंगे. धरने पर ही बैठें गांव वालों ने ये भी बताया कि सभी को धान बोनस मिला है, लेकिन जिन लोगों ने अपने घर नहीं छो़ड़े हैं उनका बोनस रोख दिया गया है. अधिकारियों ने बिना गांव छोड़े बोनस देने इंकार से  कर दिया है. लिहाजा हम सब दिवाली ना मनाकर धरने पर बैठें है. आंदोलनकारियों ने मांग की है कि सरकार उनकी सुध ले. एनआरडीए की ओर से मिल रही प्रताड़ना को रोक लगाएं. वे घर छोड़ने को तैयार है लेकिन उन्हें तय वादें के मुताबिक पूर्ण सुविधाओं के साथ व्यवस्थापित करें.
23 परिवार की ओर से लगाए इन तमाम आरोपों पर एनआरडीए की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाया है. क्योंकि अधिकारी दिवाली की छुट्टी पर हैं. और अपने परिवार के साथ त्यौहार मना रहे हैं. संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन हमारी अधिकारियों से बात नहीं हो पाई. जरूरी था कि एनआरडीए का पक्ष मिल जाए. फिलहाल एनआरडीए का क्या कहना है छुट्टी खत्म होने तक इंतजार करना होगा.