सुप्रिया पांडेय, रायपुर। कोरोना काल में कंपनियों को आर्थिक नुकसान की वजह से सामाजिक संस्थानों के सहयोग का रास्ता बंद कर दिया है. ये संस्थाएं सीएसआर फंड और समाज से मिल रही आर्थिक सहायता पर निर्भर करती है. छत्तीसगढ़ में ऐसे अनेकों संस्थान हैं, जो समाज में आर्थिक व मानसिक रूप से कमजोर व मजबूर लोगों की मदद करते हैं, लेकिन इस समय ये सभी संस्थाएं बेहद बुरी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही हैं.

जानकारी के मुताबिक, देशभर के कुल 38 सार्वजनिक उपक्रमों ने पीएम केयर्स फंड में 2,105 करोड़ रुपये से ज्यादा की सीएसआर राशि दान की है. नियम के अनुसार सीएसआर की राशि उन कार्यों में खर्च की जाती है, जिससे लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, नैतिक और स्वास्थ्य आदि में सुधार हो सके. पीएम केयर्स फंड को सरकार ने आरटीआई के दायरे से बाहर रखा गया है.

इंडिया सीएसआर के संस्थापक रूसेन कुमार ने कहा कि किसी भी सरकारी संस्था को एकमुश्त बड़ी राशि दे देने से सीएसआर कानून की अवधारणा है, वह पूरी नहीं हो जाती. सीएसआर फंड तभी सदुपयोगी है, जब वह सीधे एनजीओ के माध्यम से योजनाबद्ध तरीके से पीड़ित लोगों तक, वंचित समाज के लोगों तक तथा उनके समाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाने वाले कार्यक्रमों में उपयोग होता हो. सीएसआर फंड के उद्देश्य को समझने की आवश्यकता है.

सीएसआर परियोजनाएं केवल पैसे खर्च कर देने तक सीमित नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य समाजिक हालात को पहले से बेहतर बनाने के बारें में है सीएसआर फंड की स्वतंत्रता इसलिए आवश्यक है सीएसआर फंड का उपयोग एक एक्टिविटी के बजाए, सामाजिक एवं आर्थिक परेशानियों को हल करने के लिए एक क्रिएटीविटी भरें कार्य में लगाना चाहिए, सामाजिक परिवर्तन लाने में भारत में एनजीओ की बड़ी भूमिका है, जिसे वे बखूबी निभा रहे है. कार्पोरेट सीएसआर फंड यह केवल धनराशी से संबंधित नहीं है. बल्कि यह एक कानून हा हमें इसे ध्यान रखना चाहिए, साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह मानवीय विकास करने के लिए योजनाबद्ध पहल करने की एक विशिष्ट अवधारणा है. हमें ध्यान रखना है कि सीएसआर फंड जनता का पैसा है, और इसका अधिकतम उपयोग गरीबी, उन्मूलन, समाजिक, आर्थिक असमानता को दूर करके ऐसे कार्यक्रमों में लगाना चाहिए.

हेल्पेज रायपुर शुभांकर बिश्वास ने कहा कि पूरे भारतवर्ष में देखा गया है कि करीब सात लाख से ज्यादा एनजीओ है, यदि सीएसआर नहीं आएंगे तो हम कैसे जिएंगे, जैसे पानी बिना मछली नहीं जी सकती वैसे ही एनजीओ भी नहीं जी सकते.. हम काम करना चाहते हैं काम करने के लिए हमें आपकी जरूरत है. सीएसआर फंड पूरा पीएम केयर्स फंड में डाइवर्ट हो चुका है. कठिनाइयां तो बहुत होगी, क्योंकि कितने दिन हम इस तरह के पेंडेमिक सिचुएशन में रहेंगे यह कोई नहीं जानता. पहले फंड फ्लो होता था. हिमाचल की व्यवस्था आवश्यकता है वह छत्तीसगढ़ में कोई नहीं जान सकता. वैसे ही बंगाल में जो आवश्यकता है वह साउथ में कोई नहीं जान सकता. सीएसआर यदि राज्यों के पास आता है तो यदि केरला वाले के पास तो कंपनी डिसाइड करते है कि हमारे सीएसआर फंड में किस चीज की जरूरत है आप यह किजिए. छत्तीसगढ़ के जितने भी सीएसआर वाले हैं अब वह नहीं हो पाएगा, यह दिक्कत होगी एनजीओ वालों को आने वाले दिनों में और भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा.

एनजीओ संचालक संजय शर्मा ने कहा कि सीएसआर के फंड में अधिकांश बड़ी-बड़ी कंपनियों का फंड आता है वह बड़े अमाउंट में आता है.. छत्तीसगढ़ के जो ग्रास रूट लेवल के अंदर से उनका टर्नओवर है सालाना वह कम होता है और बड़ी सीएसआर कंपनी आती है वह ज्यादातर बड़े बड़े अमाउंट वाली होती है जिसमें लोकल कोई एनजीओ नहीं आता है जिसके कारण पहले भी सीएसआर का फंड नहीं मिल पा रहा था और अब पीएम केयर्स फंड में जिसने सीएसआर का ट्रांसफर हुआ, कंपनियां धीरे-धीरे यह बोलना शुरू कर रही है कि हमारे पास कुछ नहीं है.

सीएसआर का जो एक्ट है उस एक्ट में अमेंडमेंट किया गया है और सीएसआर का पीएम केयर्स फंड में ट्रांसफर होने के कारण डीएमएफ का रास्ता भी बंद हो गया. अब डीएमएफ को सीधे खर्च करने के लिए राज्य सरकार को एक आदेश दिया गया कि आप इस पर पूरा पैसा खर्च कर सकते हैं. अब राज्य सरकार डीएमएस के पैसे को अपने हिसाब से खर्च करेगी. केंद्र में जो पैसा गया है पीएम केयर का उसका तो अभी सभी को पता है कि कहां खर्च हो रहा है, उसमें एनजीओ को मिलेगा या नहीं इस पर कोई स्पष्ट स्पष्टीकरण नहीं है.