नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना के मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा है. मामले में महाधिवक्ता ने केसी वेणुगोपाल ने किसी प्रकार की सजा नहीं देने, और अगर जरूरी हो तो केवल चेतावनी देने का आग्रह किया है. बहरहाल, मामले पर अब दूसरी बेंच 10 सिंतबर को सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की अवमानना मामले की मंगलवार को सुनवाई हुई. एक दिन पहले प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से माफी नहीं मांगने की बात कहकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी. इस परिपेक्ष्य में मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने महाधिवक्ता की दलील पर कहा कि अगर भूषण जी को अपनी गलती का अहसास नहीं हो रहा है, तो इस तरह की चेतावनी का क्या असर होगा.

बेंच ने कहा कि प्रशांत भूषण ने गलती नहीं मानी है, यहां तक की अपने बचाव में दिए गए एफिडेविट में उन्होंने  यहां तक बचाव में जो जवाब भी दे रहें हैं उसमें भी उपेक्षा का भाव दिखाया है. इसके बाद बेंच ने प्रशांत भूषण की ओर से पेश हुए अधिवक्ता राजीव धवन का विचार जानना चाहा. इस पर अधिवक्ता ने कहा कि प्रशांत भूषण को अपराधी बताए जाने के फैसले को वापस लेना चाहिए, और उन पर कोई सजा नहीं थोपी जानी चाहिए.

धवन ने कहा कि कृपया प्रशांत भूषण को शहीद मत बनाइए. बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद कल्याण सिंह का स्वागत करने भीड़ जुटी थी. इसलिए उन्हें शहीद मत बनाइए. उन्होंने कहा कि न केवल अवमानना का मामला खत्म कर मामले का पटाक्षेप करना चाहिए, बल्कि सुप्रीम कोर्ट को स्टेटमैन के जैसा संदेश देना चाहिए.

इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मैं श्री भूषण की आलोचना नहीं कर रहा हूं. एक न्यायिक अधिकारी और राजनेता के बीच अंतर होना चाहिए. यदि आप सभी चीजों के लिए प्रेस के सामने जा रहे हैं, तो आप अपने आप को राजनेता ज्यादा बता रहे हैं. इसके साथ ही बेंच ने मामले की अगली सुनवाई की 10 सितंबर तय की. इसके पहले सितंबर महीने की पहले सप्ताह में जस्टिस अरुण मिश्रा के सेवानिवृत्त होने से मामले की सुनवाई दूसरी बेंच करेगी.

बता दें कि 14 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ मामले की सुनवाई करते हुए उनके दो ट्वीट को न्यायालय की गंभीर अवमानना माना था और उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी पाया था. प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट पर माफी मांगने से यह कहकर इंकार कर दिया था कि उन्होंने कोई नासमझी में यह नहीं किया था, और यह हमारे गणतंत्र के इतिहास के इस मोड़ पर अपना दायित्व समझा था.