सत्यपाल सिंह,रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में यदि स्वास्थ्य में लापरवाही बरती जा सकती है, तो इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है की बाकी जिलों में क्या स्थिति होगी. दरअसल रविवार को कालीबाड़ी स्थित जिला अस्पताल में एक गर्भवती महिला को इसलिए इलाज नहीं मिला, क्योंकि वो कोरोना पॉजिटिव आ गई थी. यही कारण है कि महिला को अस्पताल प्रबंधन ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. जिससे वो करीब 2 घंटे तक अपनी सास के साथ जमीन पर ही तड़पती रही. मुश्किलों में ही सही, लेकिन उसने जमीन पर ही बच्चे को भी जन्म दिया. आज lalluram.com की टीम गर्भवती महिला को जिला अस्पताल में इलाज क्यों नहीं मिल पाई इसका पड़ताल किया. अस्पताल के तमाम दावों के बीच लगातार ऐसे मामले क्यों आ रहे हैं इसको 5 सवालों के साथ पड़ताल किया. इसे आप भी पढ़िए और समझिए की अस्पताल से ऐसी खबरें क्यों आती है ?

1. क्या हॉस्पिटल में तालमेल की कमी है ?

हॉस्पीटल में हर कोई मरीज से बात करने से बचता है. जानकारी पूछे जाने पर कभी-कभी मरीजों को खरी-खोटी सुनना पड़ता है. मुंह उठाकर आ जाते हैं ? कैसे लोग कुछ पता नहीं है ? ठेका लेकर बैठा हूं क्या इस तरह के बाते सुननी पड़ती है, तो वहीं दूसरी ओर स्टॉफ भी परेशान हैं. लगातार डर के बीच ड्यूटी करने मजबूर, उनकी बातों से स्पष्ट था कि हौसला जवाब देने लगी है.

2. रात में डॉक्टरों की ड्यूटी होती है या नहीं ?

रात में फिलहाल स्वास्थ्य विभाग भगवान भरोसा होता है. कुछ दिनों से रात में डॉक्टर मौजूद नहीं रहते. नर्सिग स्टाफ के सहारे रात बीत रहा है. नतीजा ये होता है कि मरीज के गंभीर स्थिति होने पर कप्तान के अभाव में मौजूदा स्टाफ मन मुताबिक कदम उठाने को मजबूर होते हैं.

3. कोरोना से लड़ने के लिए व्यवस्था है कि नहीं ?

गर्भवति महिला सबसे ज्यादा कोरोना के रडार में है यानी खतरे में होती है, क्योंकि उनका रोग प्रतिरोध क्षमता कम होता है. इसलिए तत्काल इलाज की जरूरत होती है, लेकिन आपात स्थिति में गर्भवति महिला के पॉजिटिव आने पर अस्पताल में तैयारी होना चाहिए. हॉस्पीटल में इलाज मिलता रहे, जब तक कोविड हॉस्पीटल ना पहुंच जाए. हॉस्पीटल में ऐसी व्यवस्था का दावा है, लेकिन कर्मचारी नहीं है. जिम्मेदारी तय नहीं की ऐसी स्थिति में कोरोना संक्रमित मरीज का इलाज कौन करेगा. इसलिए एक दूसरे पर छोड़ दिया जाता है.

4. पर्ची बनने के बाद मरीजों के साथ कैसा व्यवहार होता है ?

lalluram.com की टीम जितनी भी मरीज और उनके परिजनों से बातचीत की, उनमें से कई लोगों का कहना है कि रेफर करने के बाद कहा जाता है कि अपनी व्यवस्था से कोविड हॉस्पीटल पहुंचे. मानों रेफर चिठ्ठी बनाते ही मरीजों को ऐसे महसूस कराते है जैसे चाय में पड़े मक्खी हो, उसे निकाल कर फेक दिया गया है. फिर हॉस्पीटल के बाहर या प्रांगण में घंटों एंबुलेंस का इंतजार करना पड़ता है.
मेडिकल जानकारों का कहना है कि मरीज को बाहर का रास्ता दिखाना रेफर नहीं होता, जब तक उसे दूसरे हॉस्पीटल के लिए व्यवस्था ना हो जाए, तब तक मरीज डॉक्टरों की निगरानी में होना चाहिए, ना की हॉस्पीटल के बाहर.

5. विभाग में पर्याप्त स्टॉप हैं या नहीं ?

कालीबाड़ी जिला हॉस्पीटल की न्यू बोर्न केयर विभाग में ड्यूटी में तैनात करीब 70 प्रतिशत स्टाफ कोरोना पॉजिटिव है. वर्तमान में 16 स्टॉफ विभाग में थे जिसमें से 10 स्टॉफ कोरोना पॉजिटिव है. एक क्वारनटाइन है. दो स्टाफ का सैंपल लिया गया है रिपोर्ट का इंतजार है. इस तरह 4 स्टॉफ से विभाग का संचालन किया जा रहा है. विभाग में 6 डॉक्टर है, जिसमें से 3 डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव है, दो की तबीयत खराब है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि यहां की स्थिति कैसी है.

इस पड़ताल से जो तथ्य सामने आया, उससे साफ है कि स्वास्थ्य विभाग में कोरोना पॉजिटिव आने से स्टाफ की भारी कमी है, जो स्टाफ है वो भय के बीच ड्यूटी कर रहे हैं. स्टाफों में तालमेल की कमी है. जब एक व्यक्ति दो-चार व्यक्तियों के हिस्से का का करेगा, तो तनाव होगा ही. स्टाफ नहीं बढ़ने से मरीजों के जान का खतरा है. स्टाफ बढ़ाने की सख्त जरूरत है.

इसे भी पढ़ें- देखें VIDEO : कोरोना पीड़ित गर्भवती को जिला अस्पताल से निकाल दिया, दो घंटे तक दर्द से तड़पती रही, फर्श पर बच्चे को दिया जन्म…

इस मामले में जिला हॉस्पीटल के अधीक्षक रवि तिवारी का कहना है कि कोरोना पॉजिटिव मिलने से स्टाफ कम हुए है. ड्यूटी रोस्टर विभागाअध्यक्ष से मंगाया हूं. पत्र लिखकर अपने उच्चाधिकारी से स्टाफ की मांग करूंगा. स्टॉफ की कमी से विभाग बंद नहीं किया जाएगा.