वैभव बेमेतरिहा। आज छत्तीसगढ़ के एक ऐसे महान विभूति की पुण्यतिथि है जिन्होंने बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सिर्फ और सिर्फ छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी और लोक रंग को जीया, जिन्होंने नाचा को हास-परिहास से कहीं ऊपर उठाकर सामाजिक जागरूकता और देश भक्ति का मंच बना दिया. आज पुण्यतिथि के इस मौके पर उस मालगुजार दाऊ की कहानी, जिन्होंने ने अपना सबकुछ लोककला को आगे बढ़ाने, लोक-कलाकारों को समृद्ध करने में लुटा दिया.

जिस हस्ती की मैं बात कर रहा हूँ वो हैं दाऊ मंदराजी. दाऊ मंदराजी जिन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य नाचा को नए रूप में पिरोकर दर्शकों के सामने रखा. जिन्होंने नाचा को सामाजिक जागरूकता एक बड़ा मंच बनाया. जिन्होंने नाचा के जरिए देश में आजादी की अलख जगाई. जिन्होंने नाचा के जरिए ऐसे लोक-कलाकारों की टीम तैयार की जो देश-दुनिया जाकर छा गए. जिन्होंने नाचा के जरिए छत्तीसगढ़ की लोक-कला को दुनिया भर में अमर कर दिया. आज ऐसे महान शख्स को याद करने और नमन करने का दिन है.

दाऊ मंदराजी का जन्म 1 अप्रैल सन् 1911 में राजनांदगांव जिले के रवेली गाँव में हुआ था. दाऊ मंदराजी का असल नाम था दाऊ दुलार सिंह. लेकिन उन्हें उनके नाना दाऊ मंदराजी कहकर बुलाते थे. और यहीं से उनका नाम दाऊ मंदराजी के रूप में विख्यात हो गया. दाऊ मंदराजी का परिवार एक सपन्न मालगुजार परिवार था. बचपन से ही मंदराजी का रुझान पढ़ाई-लिखाई से कहीं ज्यादा नाच-गान में रहा. उन्हें अक्सर लोकरंग के कार्यक्रम प्रभावित करते. कई बार वे बचपन में घर से चोरी-छिपे जाकर नाचा भी देखने जाते रहे. लेकिन मंदराजी के पिता चाहते थे कि वे पढ़-लिखकर अधिकारी बने. लेकिन मंदराजी तो गाँव-गाँव में होने वाले नाचा पर मोहित हो चुके थे. लिहाजा वे बचपन में ही गाँव के लोक-कलाकारों के संपर्क में आ गए. लोक-कलाकारों से उन्होंने चिकारा, हारमोनियम और तबला बजाना सीख लिया था. अपने पिता के तमाम विरोध के बाद भी दाऊ मंदराजी ने तय कर लिया था कि वे नाचा पार्टी बनाकर गाँव-गाँव जाकर प्रस्तुति देंगे.

सन् 1928-29. यह सन् छत्तीसगढ़ में नाचा जगत के लिए बेहद ऐतिहासिक है. क्योंकि इस सन् में गाँव के कुछ नौसीखिये कलाकारों को साथ लेकर मंदराजी ने अपनी नाचा पार्टी तैयार की थी. और इस नाचा पार्टी का नाम उन्होंने अपने गाँव रवेली के नाम पर रखा. मंदराजी ने चिकारा, ढोल-मंजीरा के साथ नाचा की शुरुआत तो की, लेकिन जल्द ही उन्होंने इसमें नया प्रयोग किया. यह प्रयोग था नाचा में हारमोनियम का. दरअसल उन दिनों नाचा में हारमोनियम का इस्तेमाल नहीं होता था.

राजनांदगांव के पत्रकार वीरेन्द्र बहादुर सिंह के मुताबिक “नाचा में हारमोनियम का प्रयोग सन् 1933-34 में हुआ. 1936 के आते- आते नाचा में मशाल के स्थान पर पेट्रोमैक्स का प्रयोग शुरू हो गया था. रवेली नाचा पार्टी में 1936 में एक पेट्रोमैक्स आ गया था. सन् 1940 के दशक में नाचा के मंच पर एक पेट्रोमैक्स के स्थान पर चार- चार पेट्रोमैक्स का प्रयोग शुरू हो गया था.” ( रचनाकार )

सन् 1940 तक दाऊ मंदराजी की ख्याति पूरे प्रदेश में फैल चुकी थी. छत्तीसगढ़ के साथ-साथ राजनांदगांव की सीमा से लगे महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश तक भी. रवेली नाचा पार्टी को अनेक जगहों से बुलावा आने लगा था. फिर इस काल-खंड में नाचा का विस्तार पूरे छत्तीसगढ़ में होने लगा. कई जगहों पर नाचा पार्टी तैयार होने लगी.

दाऊ मंदराजी की नाचा पार्टी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे हास्य और लोक गीत-संगीत के बीच सामाजिक मुद्दों पर अपनी प्रस्तुति देते. जैसे कि उस दौर में नाचा के माध्यम से शराबबंदी, बहुपत्नी प्रथा, विवाह में फिजूल खर्ची, सामन्ति प्रवृत्ति, ढोंग, देश भक्ति जैसे विषयों को लोगों के सामने रखते. मंदराजी बाल विवाह, परिवार नियोजन, छुआछूत, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिकीकरण के विषयों पर समाज को जगाने का प्रयास करते.

दाऊ मंदराजी जिस दौर में नाचा के माध्यम से गाँव-गाँव जाकर सामजिक कुरीतियों पर कटाक्ष कर रहे थे वह दौर स्वतंत्रता संग्राम का दौर था. गुलाम भारत में अँगरेजों के खिलाफ जंग छिड़ी हुई थी. समूचा राष्ट्र देश भक्ति की रंग में डूबा हुआ था. इन परिस्थितियों में मंदराजी भी अपनी नाचा पार्टी में देश भक्ति गीतों को प्रस्तुति देते. लोगों के मन में आजादी की भावना भर देते. अँगरेजी हुकूमत को जब इसकी जानकारी हुई तो अँगरेजों ने मंदराजी को गिरफ्तार कर लिया था.

सन् 1950 के आते-आते रवेली नाचा पार्टी के समकक्ष भिलाई के नजदीक रिगनी गाँव में एक दूसरी नाचा पार्टी तैयार हो गई थी. रिगनी नाचा पार्टी की ख्याति भी कुछ वर्षों में काफी फैल चुकी थी. इस दौर में दाऊ रामचंद्र देशमुख ने एक बड़ा प्रयास किया. उन्होंने अपने गाँव पिनकापार में दो दिवसीय मंड़ई का आयोजन किया. इस कार्यक्रम में उन्होंने रिगनी और रवेली नाचा पार्टी को एक कर छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंच में विलय कर दिया.

सन् 1960 से 70 के दशक के बीच दाऊ मंदराजी की टीम बिखर चुकी थी. मंदराजी के साथी कलाकार अब अधिक पैसे के प्रलोभन में दूसरी नाचा पार्टी से जुड़ने लगे. कुछ अच्छे मंजे हुए कलाकार प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ जुड़ गए. इस दौरान तक तीन सौ अधिक एकड़ के मालिक दाऊ मंदराजी अपनी पूरी संपत्ति नाचा पार्टी में होम कर चुके थे.  वे अपने कालाकारों की आर्थिक मदद करने के लिए सबकुछ लुटाते रहे. लेकिन अंत के समय में दाऊ मंदराजी की स्थिति ऐसी भी हो गई, जब उन्हें आर्थिक मदद की जरूरत पड़ने लगी. धीरे-धीरे वह समय भी आ गया जब मंदराजी बीमार होते चले गए. अपने साथी कलाकारों की रुसवाई और धोखे से अवसाद में आकर वह काल भी आ गया जब हमेशा के लिए मंदराजी हम सबको छोड़कर चले गए. अंत समय की यह तारीख थी 24 सितंबर 1984. और यह तारीख छत्तीसगढ़ के लोक-कला के इतिहास में नाचा के स्वर्णिम युग के अंत के रूप सदा के लिए दर्ज हो गई.

मंदराजी की स्मृतियों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार दाऊ मंदराजी के नाम राज्य अलंकरण सम्मान देती है. वहीं सार्वा ब्रदर्स की ओर से दाऊ मंदराजी पर छत्तीसगढ़ की पहली बायोपिक फिल्म भी बनाई गई है. इस यह फिल्म बीते वर्ष सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी. यह फिल्म एक तरह से नाचा के पुरोधा को सच्ची श्रद्धांजलि थी. फिल्म को दर्शकों ने खूब प्यार दिया. अगर आप दाऊ मंदराजी के बारे में जानने चाहते हैं, उनके जीवन को देखना चाहते हैं, नाचा को देखने चाहते हैं, छत्तीसगढ़ की लोक-कला को जानना चाहते यह फिल्म आपके लिए बेहद उपयोगी.


पुण्यतिथि के मौके पर दाऊ मंदराजी को नमन करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि दाऊ मंदराजी ने गावों के लोक कलाकारों को संगठित कर ‘नाचा‘ को एक नये आयाम तक पहुंचाया. नाचा-गम्मत को मनोरंजन के अतिरिक्त उन्होने समाजिक बुराइयों के विरूद्ध प्रचार प्रसार का सशक्त माध्यम बनाया.  ऐसे सच्चे साधक और समर्पित व्यक्तित्व कला को समाज से जोड़ते हुए नई ऊंचाइयों तक ले जाते हैं, उनसे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए.

आज हर तबका धन कमाने की सोचता है, लेकिन दाऊ मंदराजी ऐसे माल गुजार थे जिन्होंने धन लुटाने का काम किया और कुछ कमाया तो सिर्फ नाचा और नाचा. नाचा. ऐसे महान पुरोधा को, छत्तीसगढ़ के पुरखा को आज शत्-शत् नमन करने का दिन है. दाऊ मंदराजी सदैव हम सभी को याद रहे, स्मृतियों में जिंदा रहे. दाऊ जी को विनम्र श्रद्धांजलि….