फीचर स्टोरी। ग्रामीणों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने छत्तीसगढ़ सरकार दो महत्वपूर्ण योजना चला रही है. एक है नरवा-गरवा-घुरवा-बारी और दूसरी योजना है गोधन. ये दोनों ही योजना एक-दूसरे के पर्याय हैं. क्योंकि दो योजनाओं के मूल में गौसंरक्षण और जैविक खेती है. इस रिपोर्ट में आपको बता रहे हैं कि किस तरह से पाटन तहसील के मर्रा गाँव में नरवा-गरवा-घुरवा-बारी का काम चल रहा है, गोधन न्याय योजना के तहत गोबर खरीदी की क्या स्थिति है ? आप बताने जा रहे हैं कि सालाना कुछ हजार कमाने वाले चरवाहे कि कमाई कैसे अब दो महीने में 50 हजार रुपये हो गई है.

छत्तीसगढ़ सरकार या कहिए कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दो महत्वपूर्ण योजना है…नरवा-गरवा-घुरवा-बारी और गोधन न्याय योजना. यह योजना कहने को तो दो है, लेकिन असल में यह एक-दूसरे का ही पर्याय है. क्योंकि इस योजना के मूल में है गाँवों को सशक्त करना, ग्रामीणों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना, ग्रामीण अर्थव्यस्था के आधार स्तंभ खेती को मजबूत करना. इन सबके लिए जरूरी है जैविक खेती. इन सबके लिए जरूरी है गौपालन, गौसंरक्षण, इन सबके लिए जरूरी है परंपरागत घुरवा के माध्यम से खाद निर्माण, इन सबके लिए जरूरी नरवा के माध्यम से जल संचय, नदी-तालाबों का संरक्षण.

इसलिए भूपेश सरकार इन दोनों योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए बहुत गंभीरता से जोर दे रही है. गाँव-गाँव में योजना के तहत गौठान निर्माण जारी है, जैविक खाद बनाने का काम जारी है, गोबर खरीदी जारी है. पाटन तहसील के मर्रा गाँव में भी दोनों ही योजनाओं का बेहतर ढंग से क्रियान्वनय चल रहा है.

राजधानी रायपुर से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर है मर्रा गाँव. इस गाँव में नरवा-गरवा-घुरवा-बारी के तहत गौठान का निर्माण हो चुका है. गौठान के अंदर अभी कई निर्माण कार्य चल भी रहे हैं. जैसे वर्मी कंपोज के लिए टंकी निर्माण, गायों को रखने के लिए शेड निर्माण, बारी में चारा और सब्जी उगाने की तैयारी.

सरंपच पालेश्वर ठाकुर का कहना है कि गौठान की व्यवस्था को पूर्ण करने के कार्य में जुटे हुए हैं. लेकिन इस दौरान खाद बनाने की प्रकिया निरतंर जारी है. अभी तक हम एक बार खाद बनाकर बेच भी चुके हैं. इससे पंचायत और स्व-सहायता समूह को हजारों रुपये का लाभ भी हो चुका है. हमें फिर से खाद की सप्लाई करने का ऑर्डर मिला है. समूह के माध्यम से खाद बनाने का काम जारी है. वहीं सरकार की ओर से गौठान में वर्मी कंपोज के लिए 10 और टंकी निर्माण की स्वीकृति मिली है. आस-पास के पंचायतों में हमारा पंचायत पहला है जिसने खाद का निर्माण भी किया और उसकी बिक्री भी हो गई है.

मर्रा में सिर्फ वर्मी कंपोज बनाने का काम ही तीव्र गति से नहीं चल रहा, बल्कि गौठान के माध्यम से गोबर खरीदी भी लगातार जारी है. गोबर खरीदी ने मर्रा के उन लोगों को आर्थिक मजबूती प्रदान की जिनके पास गौपालन, गाय चराने का काम है. सरपंच पालेश्वर बताते हैं कि हमारे यहाँ 20 जुलाई से गोबर खरीदी का कार्य जा रही है. अभी तक गाँव में ढाई लाख की खरीदी हो गई है. हमारे गाँव में गोधन न्याय योजना का बेहतर ढंग से क्रियान्वयन जारी है. हमारी कोशिश यही है कि गाँव के लोग गोधन के माध्यम से गौपालन और जैविक खेती की ओर आगे बढे. हमारे गाँव में कई लोग हैं जो अब तक 50 से 60 हजार रुपये तक का गोबर बेच चुके हैं.

सरपंच पालेश्वर जिन बातों को कह रहे हैं वह पूरी तरह से सच है. हमें गाँव में वे दो व्यक्ति भी मिले जो अब तक 50 हजार से अधिक का गोबर बेच चुके हैं. आइये सबसे पहले आपको कामता प्रसाद से मिलवाते हैं. ये हैं कामता प्रसाद और ये है कामता का टूटा-फूटा मकान और ये है उनका परिवार. गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले कामता प्रसाद साहू गाय चराने का काम करते हैं. मतलब चरवाहे हैं. वे बीते कई वर्षों से यह काम कर रहे हैं. इस काम से उन्हें साल में कुछ हजार रुपये की आय होती थी. कुछ रुपये गोबर बेच कर कमा लेते थे. लेकिन इतनी नहीं कि जितनी वे दो महीने में कमा चुके हैं.

कामता प्रसाद बताते हैं कि बीते दो महीने में अब तक वे 50 हजार रुपये तक का गोबर बेच चुके हैं. इस राशि का उन्हें भुगतान भी हो चुका है. कामता ने कभी भी इतनी राशि इक्कठे एक साथ नहीं पाई थी. वे इसके लिए भूपेश सरकार का आभार जताते हैं. वे खुश हैं कि अब वे परिवार का पालन-पोषण बेहतर ढंग से कर सकेंगे. जल्द ही उन्हें पीएम आवास के तहत नया मकान भी जाएगा.

इसी तरह से ये हैं नागेन्द्र यदु. नागेन्द्र का एक छोटा डेयरी व्यवसाय है. गौपालन का काम करते हैं. यही उनका जीवन-यापन का साधन है. फिलहाल वे मर्रा के गौठान में गोबर बेचने पहुँचे. नागेन्द्र का कहना है कि वे बीते कई वर्षों से बड़े किसानों को गोबर बेच रहे हैं. लेकिन जब तक गोधन न्याय योजना शुरू नहीं हुआ था तब तक वे प्रति ट्राली 14 सौ रुपये तक गोबर बेचते थे, लेकिन जब से सरकार ने गोबर खरीदी योजना की शुरुआत की और गोबर प्रति किलो दो रुपिया किया तब से अब वे 8 हजार रुपये प्रति ट्राली गोबर बेच रहे हैं.  अब तक वे 60 हजार का गोबर बेच चुके हैं.

वास्तव में सरकार की इन दो महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन जिस भी गाँव में बेहतर ढंग से हो रहा है वहाँ पर एक क्रांतिकारी बदलाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. जैसा कि मर्रा गाँव में देखने को मिल रहा है. गाँव का युवा सरपंच सरकार की योजनाओं का लाभ हर वर्ग तक पहुचाने की कोशिश में जुटा हुआ है. गाँव वाले नरवा-गरवा-घुरवा-बारी और गोधन न्याय योजना के तहत लाभ लेने में पीछे नहीं है. सरकार की कोशिश भी यही है कि इन योजनाओं के माध्यम से गाँव आत्मनिर्भर, मजबूत और सशक्त बने. गाँव के लोग प्रगतिशील और उन्नत बने. गाँव में हरियाली हो, चारों तरफ खुशहाली हो.