रायपुर। अनियंत्रित ढंग से बढ़ती कोरोना महामारी के प्रकोप और लॉकडाउन के बावजूद छत्तीसगढ़ में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा पारित किसान विरोधी बिल के खिलाफ, न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था, खाद्यान्न आत्मनिर्भरता को बचाने, ग्रामीण जनता की आजीविका सुनिश्चित करने, देश के संविधान, संप्रभुता और लोकतंत्र की रक्षा करने की मांग पर आज प्रदेश में कई स्थानों पर किसानों और आदिवासियों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया. कृषि विरोधी बिलों की प्रतियां और मोदी सरकार के पुतले जलाए. इन कॉर्पोरेटपरस्त कानूनों को वापस लेने की मांग की.

प्रदेश में इस मुद्दे पर 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं, जिन्होंने 20 से ज्यादा जिलों में अनेकों स्थानों पर सैकड़ों की भागीदारी वाले विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित किये हैं। इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, नई राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं। छत्तीसगढ़ बंद की सफलता का दावा करते हुए इन संगठनों ने किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए आम जनता, ट्रेड यूनियनों, जन संगठनों और राजनैतिक दलों का आभार व्यक्त किया है। उल्लेखनीय है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित प्रदेश के पांचों वामपंथी पार्टियों, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति ने ‘छत्तीसगढ़ बंद – भारत बंद’ का खुला समर्थन किया था। ट्रेड यूनियनों ने आज प्रदेश में किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए उनकी मांगों के समर्थन में अपने कार्यस्थलों पर प्रदर्शन किए हैं।

छत्तीसगढ़ में इन संगठनों की साझा कार्यवाहियों से जुड़े छग किसान सभा के नेता संजय पराते ने आरोप लगाया कि इन कॉर्पोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। इन कानूनों का हम इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे खेती की लागत महंगी हो जाएगी, फसल के दाम गिर जाएंगे, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी बढ़ जाएगी और कार्पोरेटों का हमारी कृषि व्यवस्था पर कब्जा हो जाने से खाद्यान्न आत्मनिर्भरता भी खत्म जो जाएगी। यह किसानों और ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है।

इन संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने कई स्थानों पर प्रशासन के अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंपे हैं और कुछ स्थानों पर पुलिस के साथ झड़प होने की भी खबरें हैं। स्थानीय स्तर पर आंदोलनकारी समुदायों को इन किसान नेताओं ने संबोधित भी किया है। अपने संबोधन में इन किसान नेताओं ने “वन नेशन, वन एमएसपी” की मांग करते हुए कहा कि ये कानून कॉरपोरेटों के मुनाफों को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। इन कानूनों के कारण किसानों की फसल सस्ते में लूटी जाएगी और महंगी-से-महंगी बेची जाएगी। उत्पादन के क्षेत्र में ठेका कृषि लाने से किसान अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएगा और देश की आवश्यकता के अनुसार और अपनी मर्जी से फसल लगाने के अधिकार से वंचित हो जाएगा। इसी प्रकार कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से वह समर्थन मूल्य से वंचित हो जाएगा। कुल नतीजा यह होगा कि किसान बर्बाद हो जाएंगे और उनके हाथों से जमीन निकल जायेगी।

छत्तीसगढ़ बंद की सफलता के लिए आम जनता का आभार व्यक्त करते हुए एक संयुक्त बयान में इन किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि जिस अलोकतांत्रिक तरीके से संसदीय जनतंत्र को कुचलते हुए इन कानूनों को पारित किया गया है, उससे स्पष्ट है कि यह सरकार आम जनता की नहीं, अपने कॉर्पोरेट मालिकों की चाकरी कर रही है। ये कानून किसानों की फसल को मंडियों से बाहर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर कृषि-व्यापार कंपनियों को खरीदने की छूट देते हैं, किसी भी विवाद में किसान के कोर्ट में जाने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाते हैं, खाद्यान्न की असीमित जमाखोरी को बढ़ावा देते हैं और इन कंपनियों को हर साल 50 से 100% कीमत बढ़ाने का कानूनी अधिकार देते है। इन काले कानूनों में इस बात का भी प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट कंपनियां जिस मूल्य को देने का किसान को वादा कर रही है, बाजार में भाव गिरने पर वह उस मूल्य को देने या किसान की फसल खरीदने को बाध्य नहीं होगी, जबकि बाजार में भाव चढ़ने पर भी कम कीमत पर किसान इन्हीं कंपनियों को अपनी फसल बेचने के लिए बाध्य है. यानी जोखिम किसान का और मुनाफा कार्पोरेटों का! इससे भारतीय किसान देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के गुलाम बनकर रह जाएंगे। इससे किसान आत्महत्याओं में और ज्यादा वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने से मोदी सरकार की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और किसानों की आय दुगुनी करने की लफ्फाजी की भी कलई खुल गई है। छत्तीसगढ़ के इन किसान नेताओं ने इन काले कानूनों के खिलाफ साझा संघर्ष को और तेज करने और इस पर जमीनी स्तर पर अमल न होने देने का भी फैसला किया है।