– मनोहर नायक

राहुल -प्रियंका की इन तस्वीरों ने तस्वीर बदली है । २०१४ के प्रचार – प्रपंच पर यकीन कर जिन्हें रहनुमा चुना , उनसे आज रहज़न भी सदमे में हैं । उन्होंने पिछले सालों में कुछ ऐसी तस्वीर बदली कि स्वतंत्रता के लिये लड़ने वाले राष्ट्र नायकों और जनता ने आज़ाद देश की जो तस्वीर दिलों में उतारी थी ,वह छिन्न-भिन्न हो गयी… बुरी तरह दरक गयी । बहुलता ,एकता में अनेकता , समानता , धर्मनिरपेक्षता , समान अवसर, ख़ुशहाली की बहुरंगी तस्वीर को समाज में उतारने का महास्वप्न ही जैसे खंडित हो गया । इस महादेश की तमन्ना यही थी , यही उम्मीद थी , भविष्य के लिये यही आसरा था । भले चाल सुस्त थी ,विघ्न और व्यतिक्रम थे , लेकिन हम अपने ‘ शहर-ए-आरज़ू ‘ की ओर बढ़ रहे थे… हमारी उस भव्य स्वप्न की अज़ीज़तर तस्वीर को क्षतिग्रत कर हमारी हसरतों का ख़ूं करने की सधी कोशिश की गयी। बीते छह सालों से भयावह तस्वीरों का अंतहीन सिलसिला है ।

ऐसा नहीं कि ये डरावनी तस्वीरें पहले नहीं थीं , बेशक थीं ; भ्रष्टचार,कदाचार, अनाचार , अत्याचार की तस्वीरें , राजनीतिक बेशर्मी, ‘८४ की, कँपाती रथयात्राओं की, बाबरी ध्वंस , २००२ की तस्वीरें … ये सब हम देखते रहे … लेकिन जैसे अब ‘ रानाई-ए-ख़याल को ही , विचारों के सौंदर्य को ही ख़त्म करने की साजिश से ख़ौफ़नाक तस्वीरों का पिटारा ही खोल दिया गया है … कवि विष्णु खरे की ‘ शिविर में शिशु ‘ कविता याद आती है … इसकी कुछ पंक्तियाँ :

… पिछले कई बरसों से तुम जली हुई
फ़र्श पर गिरी या रखी हुई लाशों की तस्वीरें ही देखते आये हो
इधर हर हफ़्ते देखते हो
और हालात ऐसे हैं कि उनकी तादाद और भयावहता इतनी बढ़ जाये
कि उनके फ़ोटो न लिये जा सकें
और उनमें शायद इस अनाम छायाकार के साथ-साथ
तुम सरीखे देखनेवाले की लाशें भी हों…
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… इस देश में उन तस्वीरों की क़िल्लत कभी नहीं होगी
जो तुम्हारा कलेजा चाक़ कर दें
शर्मिंदा और ज़र्द कर दें तुम्हें
तुम्हारे सोचने कहने महसूस करने की व्यर्थता का एहसास दिलाती रहें…

 

संघ-मोदी शासन में हमने क्रूरता, अमानवीयता , बड़बोलेपन , अविवेक , पाखंड की बेशुमार तस्वीरें देखीं । सारी मुसीबतें पाखंड का धोखा खाने से शुरू होती हैं , और यही हुआ भी , संसद की चौखट पर मत्था टेकने की तस्वीर का भरम चूर हो चुका है … संसदीयता पर सितमों का सिलसिला जारी है ।सारी आशाओं , दावों, वादों को झुठलाने वाली जुमला – तस्वीर देखी थी , फिर तो जैसे कलई उतरने की तस्वीरों का , ख़तरनाक मंसूबों का नज़ारा सिलसिलेवार सामने आने लगा। मुसलमान -दलित पर वहशी टकटकी बँध गयी । आये दिन सड़कों पर उनकी खाल उधेड़ी जाने की , लिंच किये जाने की तस्वीरें वायरल होने लगीं , घर-वापसी की दर्दनाक तस्वीरें , लव जेहाद की ज़ुल्मी तस्वीरें , गौ- भक्ति , देश-भक्ति की हाहाकारी तस्वीरें, हैदराबाद विश्व विद्यालय , जामिया , जेएनयू पर हमले की तस्वीरें … ये सब नफ़रत , कट्टर राष्ट्रवाद , सबक सिखाने और विवेक पर अविवेक के हमलों की तस्वीरें थीं ।

 

लेखक-मनोहर नायक

 

नासमझ, अदूरदूर्शी, निरंकुश फ़ैसलों का एक अटूट क्रम नोटबंदी से जीएसटी होकर घरबंदी तक जाता है , जिनकी कातर कर देने वाली छवियाँ बेशुमार हैं ।बैंकों के सामने मायूस क़तारें , मौतें, बंद होते छोटे उद्योग, बढ़ती बेरोज़गारी … आर्थिक सुस्ती और सामाजिक पस्ती की तस्वीरें ! नोटबंदी और घरबंदी , दरअस्ल मिलकर एक भयावह तस्वीर को मुकम्मल करती हैं … महामारी… लाचारी, लापरवाही… मौत ! आर्थिक बदहाली… बेरोजगारी … लाचारी… मौत ! सड़कों पर बदहवासी… भूख… प्यास…दुर्घटना… बेपरवाही…. मौत ! इन सबकी तस्वीरें क्षोभ और बेबसी के साथ हम देखते रहे।सरकार और पालतू मीडिया की फ़र्ज़ी तस्वीरों की बारिश होती रही। २०१४ में ही देश से लेकर विदेशों तक शोबाज़ी , आडम्बर और नुमाइशी जलसे , सब ज़िम्मेदारियाँ ताक़ पर रख कर , बेधड़क होते रहे , इनकी फ़ोटुएँ देख – देख हम दंग होते रहे।

तस्वीर ‘ प्रेमी ‘ तस्वीरों के कारण हास्यास्पद तक हुए , याद कीजिये नामधारी सूट और बाग़ में मोर मगन…. यह अभी बदस्तूर जारी है , साहब को नये परिधान और नयी तस्वीरें चाहिये, फिर अटल टनल ही क्यों न हो… प्रधानमंत्री होते ही जनता उनके लिए अदृश्य हो चुकी थी , उसके लिये हाथ हिलाना भर नहीं गया ।हमने चुनावी सभाओं से संसद तक धौंस-धमकी की, कश्मीर से लेकर दिल्ली , उत्तर प्रदेश तक पुलिस , सेना और संगीनों की तस्वीरें देखी हैं । हर तरह की मर्यादाओं, लोकलाज के उल्लंघन के चित्र, मंच से भड़काते मंत्रियों के चित्र । साधना – ध्यान की पोच तस्वीरें…. छद्म , पाखंड, कपट की , ताली-थाली, दिया- मोमबत्ती , पुष्प – वर्षा की निरर्थक और नाटकीय तस्वीरें । हिंसा , आतंक, बलात्कार , हत्या की तस्वीरें ही तस्वीरें…. इन सबकी जैसे मिलीजुली , हाथरस की तस्वीर… तस्वीरें !

छह साल से हम विकल, विह्वल और विचलित करने वाली तस्वीरें देख रहे हैं। राहुल- प्रियंका की तस्वीर ने एक हद तक एकरसता तोड़ी है । कांग्रेस में जो चीज़ सिरे से नदारद थी, वह नमूदार होती दिखी —- साहस और करुणा ! इनके बिना संघर्ष कैसे हो सकता है ! सत्याग्रह कैसे हो सकता है ! … .. और हैवानियत की शिकार उस दलित लड़की के घर में राहुल-प्रियंका का उसके परिवार की पीर से एकमेक हो जाना … यह विभोर करने वाला दृश्य था , यह एक बहुत ज़रूरी तस्वीर हमें मिली है, कुछ उम्मीद बंधाती .. इसके बिना हम सब अपने से आँख न मिला पाते… लगा कि हम भी उस दुख -घर के किसी अदृश्य कोने में क्षुब्ध , शोकाकुल ,पराजित और शर्मसार खड़े हैं….. मीर की तरह:

रात मज्लिस में तिरी , हम भी खड़े थे चुपके
जैसे तस्वीर लगा दे कोई दीवार के साथ


पता नहीं राहुल – प्रियंका और कांग्रेस इस ‘ करुणा-साहस- संघर्ष ‘ के मंत्र को कहाँ तक ले जा पाते हैं , पता नहीं , अन्य पार्टियाँ इससे सबक लेकर जाग्रत होती हैं या नहीं… पर एक बात तय है कि जनता की गलियों में जाकर , उनकी टूटी तस्वीरों को जोड़े बिना बात नहीं बनने वाली ।

  • यह लेखक के निजी विचार हैं.