शिवम मिश्रा, रायपुर। मुनाफा कमाने की होड़ में लगे उद्योगों की मनमानी देखिए. कैसे उनकी उदासीनता आम गरीब तबके की जिंदगी पर बड़ा संकट बनकर उभरी है. आखिर कैसे नियमों की धज्जियां उड़ाते ये उद्योग हर रोज जहर उगल रहे हैं, लेकिन इस पर नजर तांकने तक की जहमत कोई नहीं उठा रहा. उद्योगों के करीब रहने वाले बाशिंदे मजबूर हैं. उनकी आवाज पर पहरेदारी बिठा दी गई है. जो बोल सकते हैं, उनकी आवाज हुकूमतदारों तक नहीं पहुंच रही. यही तस्वीर मनमानी की इजाजत उद्योगों को दे रही है.

यह तस्वीर राजधानी रायपुर के कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र उरला के बोरझरा इलाके की है. यहां के कई उद्योग हैं, जो हर रोज जहरीले धुएं के साथ कैमिकल युक्त जहरीला पानी भी उगल रहे हैं. उद्योगों से निकल रहा कैमिकलयुक्त जहरीला पानी आसपास की बस्तियों और गांवों तक नालों के जरिए पहुंच रहा है. स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस पानी से उन्हें कई गंभीर तरह की बीमारियां हो रही हैं. कई दौर की शिकायतों के बाद भी इस पर किसी तरह की सुनवाई नहीं हुई है. उनकी तकलीफों को अनसुना किया जा रहा है. कैमिकलयुक्त जहरीला पानी जमीन के नीचे के पानी को भी बुरी तरह खराब कर रहा है. आलम यह है कि हैंडपंपों से आने वाला पानी भी बेहद खतरनाक हो चला है. प्रभावित इलाके में रहने वाले लोगों में बेहद आक्रोश हैं, लेकिन उनका आक्रोश दहशत फैलाने वाले उद्योगों के रवैये के आगे फीका पड़ रहा है.

जानिए कैसे फसलों को क्षति पहुंचा रहा है कैमिकल युक्त जहरीला पानी

बोरझरा में कई ऐसे उद्योग हैं, जहां से निकलने वाला कैमिकल युक्त जहरीला पानी नालों के जरिए खारून नदी में मिल रहा है, जिस जगह पर यह पानी नदी में मिल रहा है, उसके आसपास के गांवों के किसान बेहद मायूस हैं. किसानों का कहना है कि नदी के पानी का इस्तेमाल करना उनके लिए मुसीबत उठाने जैसा है. दरअसल पानी के जहरीला होने से उनकी फसल प्रभावित हो रही है. उत्पादन घट रहा है. जो उपज हो रही है, वह भी बीमारी की चपेट में है, ऐसे में किसान घाटे की भरपाई नहीं कर पा रहे. जहरीले पानी के असर से पशुओं की मौत हो रही है. नदी में मछलियां मर रही हैं. नदी में नहाने वाले ग्रामीणों को कई तरह की बीमारियों से जूझना पड़ रहा है.

स्थानीय ग्रामीण कृष्णा बताते हैं कि- ‘उद्योगों से निकलने वाले जहरीले पानी से गांव में पशु-पक्षी खत्म हो गए हैं. सरकार नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी को बढ़ावा देने के लिए योजना चला रही है, लेकिन इसकी हकीकत देखनी हो, तो औद्योगिक इलाकों के करीब के गांवों में आकर देखें’. कृष्णा का कहना है कि जीवनयापन करने के लिए मजबूरी में हमें जहरीले पानी पर निर्भर होना पड़ता है. नहाने से शरीर में खुजली और फोड़े हो रहे हैं. नदी-तालाब के पानी में कैमिकल की एक मोटी परत देखी जा सकती है. स्थानीय निवासी नेत्रराम निषाद कहते हैं कि जहरीले पानी ने खेती को इस तरह चौपट किया है कि फसले जिंदा ही नहीं रह पाती. पानी नहीं डालेंगे, तो फसल कैसे पैदा करेंगे. पहले जितनी फसल होती थी, अब उसकी आधी भी नहीं होती. ग्राम पंचायत बेंद्री के सरपंच राकेश निषाद की माने तो कई बार उद्योगपतियों से इस समस्या को लेकर चर्चा की गई. लेकिन कभी कोई समाधान नहीं निकला. निषाद कहते हैं कि अब हम पहले उद्योगों को जहरीला पानी न छोड़ने को लेकर हिदायत देंगे, यदि तब भी उद्योगों की मनमानी जारी रही, तो ग्राम पंचायत की ओर से नोटिस जारी किया जाएगा.

अधिकारियों से कहेंगे, जांच की जाए- विधायक

इधर उद्योगों की मनमानी पर स्थानीय विधायक अनिता योगेंद्र शर्मा भी मुखर होकर सामने आई हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि इस संबंध में उन तक किसी भी माध्यम से शिकायत नहीं आई है, लेकिन जानकारी मिलने पर वह खुद बेंद्री जाकर अधिकारियों को दखल दिए जाने के निर्देश देंगी.

क्या कहता है नियम?

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की गाइडलाइन और केंद्रीय पर्यावरण संरक्षण मंडल का यह स्पष्ट आदेश है कि उद्योगों से निकलने वाले कैमिकलयुक्त जहरीले पानी को रिसाइकल कर दोबारा उपयोग में लाया जाए. इसके लिए सभी उद्योगों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट यानी एसटीपी लगाने का प्रावधान है, लेकिन कई उद्योग खर्चों में कटौती किए जाने के उद्देश्य से एसटीपी का उपयोग नहीं करते.