अंकुर तिवारी,कांकेर। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में श्री बजरंग आयरन ओर माइंस की खदान के लाल पानी से खेत बर्बाद हो रहे हैं. खदान संचालक के द्वारा बहाये जा रहे लाल पानी के कारण खेतों का उत्पादन घटता जा रहा है और किसानों को इस नुकसान के बदले मुआवजे के तौर पर बेहद मामूली रकम दे दिया जाता है. कई खेत पूरी तरह बंजर हो गए हैं और ज्यादातर खेतों का उत्पादन आधा रह गया है. दुर्गूकोंदल तहसील के ग्राम हाहालद्दी चाहचाड़ में लौह-अयस्क की खदान को श्री बजरंग पॉवर एंड इस्पात लिमिटेड द्वारा लीज में लेकर प्रबंधक के द्वारा लगातार उत्खनन का कार्य किया जा रहा है. खदान में लौह अयस्क को तोड़ने के लिए नियम कायदे को दरकिनार कर बारूदी धमाके किये जाते है.

दूसरी ओर, यहाँ के खदान से निकलने वाला लाल पानी को खेतों में बहा दिया जाता है. लाल पानी के कारण आदिवासी किसानों के खेत बंजर हो रहे है. खेतों में धान और अन्य फसल का उत्पादन दिनों दिन घटता जा रहा है. प्रभावित किसानों ने जिला प्रशासन से लाल पानी को खेतों में बहाये जाने पर रोक लगाने की गुहार लगाई, लेकिन किसी के कानों में जूँ तक नहीं रेंगी. मेड़ों गांव के किसानों का कहना है कि खदान संचालक द्वारा खेतों में आयरनयुक्त लाल पानी को बहा दिया जाता है. इसकी शिकायत कई साल से जिला प्रशासन से करते आये है. उसके बाद भी खदान संचलाक पर कोई कार्रवाई नही की गई. लाल पानी के कारण खेतों में कुछ भी पैदा होना बंद हो रहा है. जब से इस क्षेत्र में लौह अयस्क का खदान खोला गया है, फसल के उत्पादन में भारी कमी आई है. अब आधे से भी कम उत्पादन हो रहा है.

छत्तीसगढ़ की पूर्व सरकार ने दुर्गूकोंदल इलाके में साल 2014 से 2044 तक खनन करने के लिए श्री बजरंग आयरऩ ओर माइंस को एक बड़े इलाके को लीज पर दे दिया. जिसके बाद से ही श्री बजरंग पॉवर एंड इस्पात लिमिटेड द्वारा नियम कायदों को ताक पर रखकर रोजाना खनन किया जा रहा है. उसके बाद भी आसपास के किसानों और यहाँ रहने वाले अदिवासी परिवारों को मूलभूत सुविधाओं के नाम पर, खादान मालिक ग्रामीणों को झुनझुना पकड़ाते आये है.

पर्यावरण को भारी नुकसान, आदिवासियों को नौकरी नहीं

ग्राम पंचायत मेड़ों के सरपंच अनुज खरे के मुताबिक हाहालद्दी गांव में खदान होने के कारण खदान मालिक आसपास के गांवों को प्रभावित ग्राम मानने से ही इंकार कर दिया है. जबकि इस खदान से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है और गांववालों को भी इसका सीधा लाभ नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि हाहालद्दी खदान में काम करने के लिए मेड़ों और उसके आश्रित ग्राम चाहचाड़ के गिनती के आदिवासियों को ही नौकरी दी गई है. जबकि खदान प्रबंधन ने सभी गांववालों को नौकरी और मूलभूत सुविधा देने का आश्वासन दिया था. यहाँ खदान खुलने के बाद से ही प्रबंधन अपने वादे से मुकर गया.

खेत हुआ बंजर, नहीं मिला रोजगार

हाहालद्दी खदान के लाल पानी से किसान रमेश कुमार का खेत भी बंजर हो गया है. उऩ्होंने कहा कि खदान से आयरयुक्त लाल पानी पास के ही एक पहाड़ी से आता है और हमारे खेतों को पूरी तरह बर्बाद कर देता है. इस गांव के पास लौह अयस्क की खदान खुलने से पहले तक हमारे गांव में बहने वाला बरसाती नाला का पानी साफ था, जो अब लाल पानी में बदल गया है. पहले हमारे खेतों में उत्पान भी अच्छा होता था लेकिन जब से सरकार ने इस इलाके में खनिज संपदा के दोहन की अनुमति दी है, यहाँ के आदिवासियों का जीना मुहाल हो गया है.

हमारे खेत पूरी तरह बर्बाद

मेड़ों गांव के ही रहने वाले संजय नेताम कहते हैं कि किसानों की हालत गंभीर हो गई है, हमारे खेत पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं. मुआवजा के नाम पर चंद रूपये देकर खदान प्रबंधन और जिला प्रशासन खानापूर्ती कर लेता है. लेकिन इस खदान संचालक पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. यहाँ के चुने हुए जनप्रतिनिधियों की उदासीनता देखिए हमारे सांसद विधायक नेता मंत्री कोई भी आदिवासी किसानों की पीड़ा को महसूस करने तैयार नहीं है. चुनावी साल को छोड़ दें, तो इस इलाके में कोई भी जनप्रतिनिधी दिखाई नहीं देते हैं. ऐसे में किसान अब सरकार से मदद की गुहार लगा रहें हैं.

कराएंगे उच्चस्तरीय जाँच

वहीं इलाके के सांसद मोहन मंडावी लाल पानी का नाम सुनते ही गुस्से से भर उठते हैं. वे कहते हैं उनके पास लाल पानी की शिकायत पहले से ही है. वे गाँव वालों की समस्या से पूर्व से ही अवगत हैं. उन्हें मालूम है कि लोहा खदान से प्रभावित गाँव के लोग बेहद परेशान हैं. कोरोना संकट के चलते वे दौरा नहीं कर पाए हैं, लेकिन जल्द ही वे गाँव जाकर वहाँ के प्रभावितों से बात करेंगे. उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि ऐसे खदानों को तत्काल बंद किया जाए. वे इस मामले में उच्च स्तरीय जाँच कराने के लिए प्रयास करेंगे. इलाके लोगों को लाल पानी से मुक्ति दिलाएंगे.

लेकिन सवाल यही है कि लाल पानी से मुक्ति इन गाँव वालों को मिलेगी तो कब मिलेगी ? बीते 6 वर्षों से जिस समस्या से गाँव वाले जूझ रहे हैं उस दिशा में राहत देने का काम न तो खदान संचालक ने किया है और न ही स्थानीय प्रशासन ने कोई ध्यान दिया. यहाँ तक की जनप्रतिनिधि भी सिर्फ आश्वासन ही देते रहे हैं. अब सांसद मोहन मंडावी के बयान से एक आश इलाके के लोगों में जगी है कि होन न हो कुछ मदद मिलेगी ? लेकिन सवाल ये भी है कि खदान संचालन में हो रही मनमानी पर खनिज विभाग से लेकर जिला प्रशासन तक क्यों मौन है ? क्यों कलेक्टर ने इस मामले में कुछ बोलने से इंकार कर दिया ? क्या खदान संचालक का दबाव स्थानीय प्रशासन पर भी है ? या फिर क्या खदान संचालक से कोई सहायता स्थानीय प्रशासन को भी प्राप्त है ? आखिर इस मामले में जिम्मेदार कौन-कौन हैं ?