रायपुर- राज्य गठन के बाद यह पहला मौका होगा, जब मरवाही में चुनाव तो होगा, लेकिन चुनाव में जोगी परिवार की भूमिका नहीं होगी. दरअसल यह तस्वीर अमित जोगी और ऋचा जोगी के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त किए जाने के बाद सामने आई. उच्च स्तरीय जांच समिति ने अमित जोगी के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया, जबकि जिला स्तरीय छानबीन समिति ने ऋचा जोगी को आदिवासी नहीं मानते हुए उनके जाति प्रमाण पत्र को मान्यता नहीं दी. अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट होने की वजह से रिटर्निंग अधिकारी ने दोनों का नामांकन निरस्त कर दिया है. अमित के चुनाव लड़ने को लेकर पहले ही संशय की स्थिति बन गई थी, ऐसे में ऋचा जोगी परिवार में एक विकल्प के तौर पर उभरी, लेकिन जाति प्रमाण पत्र की गड़बड़ी उजागर होने के सारे अरमां औंधे मुंह गिर गए.
ऋचा जोगी के जाति मामले को लेकर संतकुमार नेताम ने 28 सितंबर 2020 को जिला स्तरीय छानबीन समिति के समक्ष अपनी शिकायत दी थी. इस शिकायत के साथ नेताम ने तमाम साक्ष्य प्रस्तुत किए थे, जिसके आधार पर यह दावा किया गया था कि ऋचा जोगी को गोड़ आदिवासी बताने वाला प्रमाण पत्र गलत है. संतराम नेताम ने समिति से जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन की मांग की थी. इस शिकायत के आधार पर ही छानबीन समिति ने नए सिरे से जांच की. जांच में सामने तथ्यों के आधार पर समिति ने ऋचा जोगी को जारी जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया.
पैतृक जमीन बेचते वक्त खुद को गैर आदिवासी किया था घोषित
छानबीन समिति का आदेश कहता है कि 18 जून 2010 को ऋचा की मां रश्मिकांता साधु और भाई ऋषभ सुशील साधु ने पैतृक जमीन बेची थी. जमीन बेचे जाने के दौरान तीनों ने अपने आप को गैर आदिवासी घोषित किया था. विक्रय विलेखों में यह घोषणा भी की गई थी कि भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 165/6, 7 का उल्लंघन नहीं है. छानबीन समिति ने जांच में यह पाया है कि पैतृक जमीन बेचे जाने के बाद ऋचा रूपाली साधु, मां रश्मिकांता और भाई ऋषभ सुशील ने अपने अपनी जाति ईसाई बताई है.
समिति ने अपने आदेश में यह भी बताया है कि 12 अक्टूबर 2020 को ऋचा जोगी की ओर से समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए प्रपत्र के काॅलम 10 में उन्होंने बताया कि उनके पिता 44 साल से छत्तीसगढ़ में रह रहे थे. वन विभाग में पदस्थापना से जुड़े दस्तावेजों की जांच में जाति-गोत्र का काॅलम पूरी तरह खाली पाया गया है. समिति को प्रस्तुत किए गए जवाब में यह बताया गया था कि उनकी बोली गोंड़ी हैं, जबकि यह बस्तर के गोंड़ी आदिवासियों की बोली है. बिलासपुर, मुंगेली क्षेत्र में गोंड आदिवासी यह बोली नहीं बोलते. समिति को दिए जवाब में यह ऋचा जोगी के मामा, मौसा, फूफा तीनों गैर आदिवासी दर्शाएं गए हैं. वहीं पति की जाति कंवर बताई गई है, जबकि पति के पिता का जाति प्रमाण पत्र पहले ही रद्द किया जा चुका है.
सामान्य वर्ग से लड़ी थी अकलतरा से चुनाव!
जिला स्तरीय छानबीन समिति ने पूरी जांच पड़ताल के बाद जारी किए गए अपने आदेश में लिखा है कि, ऋचा जोगी साल 2018 में अकलतरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं. चुनाव के वक्त दाखिल किए गए नामांकन पत्र में दिए गए संपत्ति विवरण में उन्होंने जिस भूमि का जिक्र किया है, उसके दस्तावेजों में जाति का काॅलम खाली पाया गया है. कहीं भी गोंड़ दर्ज नहीं है. नामांकन दाखिल करने के दौरान ऋचा जोगी ने दस हजार रूपए की जमानत राशि जमा की थी, जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए जमानत राशि पांच हजार रूपए लगती है. इस संबंध में ऋचा जोगी की तरफ से किसी तरह का स्पष्टीकरण नहीं दिया गया.