रायपुर- छत्तीसगढ़ की सियासत में एक बड़ी चर्चा राजभवन-सरकार के बीच टकराव को लेकर चल रही है. यह सवाल उठ रहा है कि आखिर राजभवन का सरकार के कामकाज पर दखल कितना जायज है? खासतौर पर उन मुद्दों पर जो कार्यपालिका के विशेषाधिकार के दायरे में आता हो. विधायिका से जुड़े जानकार भी मानते हैं कि विधानसभा का सत्र बुलाए जाने का अधिकार सरकार का है, इस पर राजभवन दखलअंदाजी नहीं कर सकता.
छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा ने यह स्पष्ट किया है कि सत्र बुलाना मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट का विशेषाधिकार है. वह जब चाहे, तब सत्र बुला सकते हैं. संवैधानिक व्यवस्थाओं में राज्यपाल सत्र बुलाए जाने पर आपत्ति नहीं जता सकते, यह जरूर है कि सत्र को लेकर कुछ क्वेरी राजभवन की हो सकती है, जिसका जवाब सरकार दे सकती है. उन्होंने कहा कि सरकार के पास यह अधिकार है कि वह कितने भी सत्र बुला सकती है. जनहित के मामले में सदन चर्चा नहीं करेगा तो कौन करेगा? मुख्यमंत्री जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. जल्दी-जल्दी सत्र होते रहेंगे, तो जन सामान्य से जुड़े ज्यादा से ज्यादा मुद्दे उठेंगे. यह मुद्दे सदन में हल होंगे. संविधान में यह उल्लेख है कि राजभवन किसी भी तरह की क्वेरी कर सकता है. लेकिन रोक नहीं सकता. राज्यपाल को कैबिनेट की बात माननी ही होगी, लेकिन मौजूदा हालात में संवैधानिक पद पर बैठे लोग अब अपने मुताबिक काम कर रहे हैं.
सत्र बुलाने से राज्यपाल नहीं रोक सकतीं- मुख्यमंत्री
इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मामले में दो टूक कहा है कि पूर्ण बहुमत की सरकार को सत्र बुलाए जाने से राज्यपाल नहीं रोक सकतीं. राजभवन ने कुछ सवाल किए हैं, उसके मुताबिक जवाब दे दिया जाएगा. मुझे नहीं लगता कि इसके बाद फाइल लौटाई जाएगी. राजभवन से हो रहे टकरावों से जुडे़ एक सवाल पर मुख्यमंत्री बघेल ने भाजपा पर राजभवन का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया था. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि गैर भाजपा शासित राज्य सरकारों के कामकाज में राजभवन का हस्तक्षेप क्यों बढ़ रहा है, यह सवाल भाजपा के नेताओं से ही पूछना चाहिए।
पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के बाद राजभवन-सरकार का टकराव छत्तीसगढ़ तक पहुंचा
पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी राजभवन का सरकार के कामकाज में दखल बढ़ा है. राजभवन और सरकार के बीच का यह टकराव छत्तीसगढ़ में भी उस वक्त शुरू हुआ, जब यहां के विश्वविद्यालयों में राज्य सरकार की अनुसंशाओं को दरकिनार कर कुलपति की नियुक्ति कर दी गई. सरकार ने इस नियुक्ति के अधिकार को लेकर विधानसभा में विधेयक लेकर आ गई. सदन से विधेयक पारित हुआ, लेकिन राज्यपाल ने उस विधेयक को मंजूरी नहीं दी. सरकार के मंत्री विधेयकों को मंजूरी नहीं देने के मुद्दे पर राजभवन भी पहुंचे, लेकिन विधि विशेषज्ञों की राय लेने की दलील देकर मंत्रियों को लौटा दिया गया. मरवाही ग्राम पंचायत को नगर पंचायत बनाए जाने के मामले में भी राज्यपाल ने आपत्ति दर्ज करते हुए सरकार के फैसले पर रोक लगाई. लाॅ एंड आर्डर से जुड़े मुद्दे पर राज्यपाल ने समीक्षा बैठक बुलाई, लेकिन गृहमंत्री के क्वारंटाइन होने पर बैठक स्थगित कर दी गई. सचिव के तबादले पर भी राज्यपाल ने नाराजगी जाहिर की.