रायपुर– खनिज संसाधन की उपलब्धता के लिहाज से छत्तीसगढ़ को समृद्ध राज्यों में गिना जाता है और छत्तीसगढ़ को मिलने वाले राजस्व का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा खनिज से मिलता है.लेकिन अलग राज्य बनने के बीस साल बाद भी जिस तरह से खनिज संसाधनों का समुचित दोहन होना था,वो अभी तक नहीं हो पाया है.कोरोना महामारी ने जिस प्रकार पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को चौपट किया है,उसके बाद इस बात पर गहन विचार विमर्श हो रहा है कि अब आर्थिक विकास का नया स्वरुप क्या हो. छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में आर्थिक विकास का क्या मॉडल हो.
छत्तीसगढ़ प्राकृतिक और खनिज संसाधनों के मामले में देश के समृद्ध राज्यों में गिना जाता है, बावजूद इसके इस राज्य की बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है.राज्य में खनिज संसाधन के दोहन के लिेये जो नीति अपनाई गई है,उसका पर्याप्त लाभ अभी तक नहीं मिल पाया है.गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में 28 खनिजों के भण्डार हैं जिसमें शामिल हैं 52 अरब टन कोयले (भारत के कुल जमा कोयले का 18 प्रतिशत), 2.7 अरब टन उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क (भारत के कुल जमा लौह का 19 प्रतिशत), और 37 प्रतिशत से अधिक आइरन ओर जमा है.साथ ही बॉक्साइट, चूना पत्थर, डोलोमाइट, क्वार्टजाइट इत्यादि की भी प्रचुर मात्रा है.इसके अलावा यहां सोना और हीरा के भंडार भी मिले हैं..बावजूद इसके इस राज्य को अभी भी बीमारु राज्य की श्रेणी में गिना जाता है.
एक अध्ययन के मुताबिक खनन क्षेत्र में कृषि की तुलना में 13 गुना ज्यादा लोगों को रोजगार मिल रहा है और विनिर्माण क्षेत्र के मुकाबले 6 गुना लोगों को ज्यादा रोजगार मिल रहा है.जानकार बताते हैं कि खनन क्षेत्र का निवेश पर कई तरह से सकारात्मक प्रभाव हो सकता है,जिसमें पॉवर प्रोजेक्ट और स्टील प्लांट सहायक इकाईयों को खींच सकतें हैं.इसके अलावा माइनिंग सेक्टर में एक नौकरी अन्य सेक्टर में दस नई नौकरी पैदा कर सकती है. बावजूद इसके ऐसा लगता है कि खनन क्षेत्र के विकास के लिये सरकारें ज्यादा गंभीर नहीं दिखतीं.
बात कोयला उद्योग की करें,तो ये बात साफ है कि देश में उर्जा की मांग को पूरा करने में कोयले की ही महत्वपूर्ण भूमिका है.कोयले से होने वाले प्रदूषण का हवाला देते हुए हालाकि पिछले कुछ दशक से अक्षय उर्जा के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है,लेकिन इसके उत्पादन में कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते कोयला को एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता.छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कोयला राजस्व का प्रमुख स्त्रोत भी है. राज्यसभा में सांसद छाया वर्मा द्वारा पूछे गये एक सवाल पर केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने
जानकारी दी थी कि छत्तीसगढ़ को पिछले पांच साल में कोयला खनन से राजस्व के रुप में 14349.88 करोड़ रुपये मिले हैं.जाहिर है् यदि कोयला खदानों के बेहतर प्रबंधन में ध्यान दिया जाय,तो यह राजस्व और बढ़ सकता है.कोरोना काल में यह भी देखा गया है कि जहां दूसरे उद्योगों में इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है,वहीं खनन उद्योग में न तो रोजगार पर और न ही उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा है.
अर्थशास्त्री तपेश गुप्ता का कहना है कि छत्तीसगढ़ के ज्यादातर उद्योग घंधे राज्य के खनिज संसाधनों पर आधारित है यहां लोहा, कोयला,अभ्रक और चूना पत्थर के साथ साथ गौण खनिजों की भी बहुलता है,जिससे क्षेत्रीय और समग्र विकास पर समन्वित रुप से काम किया जा सकता है.इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की दिशा में अभी भी काफी कुछ किया जाना है और इसमें खनिज संसाधन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. खनिज संसाधनों के समुचित दोहन से यहां विकास की असीम संभावनाएं हैं.तपेश गुप्ता कहते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर हमें नई टेक्नालाजी का इस्तेमाल करना होगा,जिससे कोयले से होने वाले दुष्परिणामों से बचाव हो सके. उन्होंने देवभोग के हीरा खदानों का उदाहरण देते हुुए कहा कि वहां पर खनन के लिये पिछले बीस साल में कोई निर्णय नहीं हो पाया है, जो सही नहीं है.सरकारों को विकास के मद्देनजर त्वरित निर्णय लेने की आवश्यकता है.
वरिष्ठ पत्रकार कृष्णा दास का मानना है कि परिस्थितियों का सही आकलन करके जिस समय जिल चीज की आवश्यकता होती है,उसे हासिल करने के लिये उस पर विवेकपूर्ण निर्णय लेना महत्वपूर्ण है.उन्होंने कहा कि जिस कोयले के दोहन के लिये आज हम इतनी बात कर रहें हैं,उसे 20 साल बाद लेने वाला कोई नहीं होगा.उन्होंने कहा कि जिस तरह से पूरे विश्व में थर्मल एनर्जी के विकल्पों पर विचार विमर्श हो रहा है और अक्षय उर्जा के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है,उससे यह लगता है कि 20 साल बाद थर्मल एनर्जी का उपयोग पूरी तरह समाप्त हो जायेगा.आज कोयले का दोहन करना आवश्यक है,लेकिन हम उसमें लगातार विवाद पैदा कर रहें हैं.कोयले का पर्याप्त दोहन नहीं होने से साल दर साल रायल्टी में कमीं आ रही है.ऐसे समय में जब राज्य को राजस्व के स्त्रोत की आवश्यकता है, खनिज संसाधन इसके लिये सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है. नई टेक्नालॉजी के मदद से हम खनिज संसाधनों का बेहतर दोहन भी कर सकते हैं और पर्यावरण को संरक्षित भी कर सकतें हैं.
चेम्बरऑफ कामर्स के वरिष्ठ सदस्य और भाजपा नेता श्रीचंद सुंदरानी का कहना है कि कोरोना काल में व्यापार व्यवसाय को जबरदस्त नुकसान हुआ है और समाज के सभी वर्गों में इसका नकारात्मक प्रभाव पडा है.खनिज संसाधन के मामले में हम अमीर धरती के लोग कहलाते हैं.यदि खनिज संसाधनों का सरकार पर्याप्त दोहन कर ले,तो मेरा मानना है कि छत्तीसगढ़ देश के सबसे सम्पन्न राज्य में गिना जायेगा.पेट्रोलियम को छोड़कर हमारे पास सभी महत्वपूर्ण संसाधन हैं,जिसमें हीरा,कोयला,लोहा,सोना सभी शामिल हैं.सुंदरानी ने कहा कि ये दुर्भाग्यजनक बात है कि हम अमीर धरती के गरीब लोग हैं और इस दिशा में जिम्मेदार लोग गंभीरता से सोचें तो स्थिति बदल सकती है.कोरोना काल में बेरोजगारी दर बढ़ी है और लोगों को रोजगार तभी मिलेगा,जब खनिज संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा दोहन हो.सुंदरानी का मानना है कि राजनीतिक मतभेद को भुलाकर इस दिशा में ध्यान देना चाहिये,जिससे राज्य और देश का सतत विकास हो.
कुल मिलाकर आज इस बात की आवश्यकता है कि खनिज संसाधनों के बेहतर दोहन और प्रबंधन पर ध्यान दिया जाये, जिससे छत्तीसगढ़ जैसे राज्य की तस्वीर बदल सके.
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