अंबिकापुर। रात को भूखा ना सोने देने के संकल्प के साथ काम कर रही अंबिकापुर की महिलाओं के समूह ने इस बार वक्त बदला और ठिकाना भी. समूह की महिलाओं ने इस बार अपने अभिनव प्रयोगों के ज़रिए सुर्खियां बटारने वाले स्कूल शिक्षाकुटीर के बच्चों के साथ खाना खाया. ये खाना खाने और खिलाने का प्रोग्राम दिन में चला.
असल आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं, ऐसे ही अभाव से ग्रस्त लोगों को भरपेट खाना मुहैया कराने का बेड़ा सरगुजा जिले की रात्रि भोजन सेवा समिति ने उठाया है. समिति के सदस्य मानव सेवा ईश्वर सेवा की तर्ज पर उन लोगों को खाना खिलाने का पुनीत कार्य कर रहे हैं जिन्हें उनकी आर्थिक परिस्थितियों ने इंसान होने का दर्जा तक छीन लिया है. चाहे वो भीख मांगने के लिए मजबूर वो गरीब लोग हों या फिर वो विक्षिप्त जो इस दुनिया का हिस्सा होकर भी हिस्सा नहीं हैं.
30 सदस्यीय रात्रि कालीन सेवा समिति के सदस्य ऐसे ही लोगों को भरपेट वह खाना खिलाते हैं जो गरीब तबके के लोगों के लिए एक सपना सा होता है. समिति के सदस्य इसके लिए किसी और की सहायता नहीं लेते हैं वे आपस में ही सहयोग कर यह कार्य कर रहे हैं. सप्ताह के इन तीन दिनों के अलावा वे हर त्योहार में भी इनके साथ इनके अपनों की कमी का एहसास होने नहीं देते. वे उनके साथ त्योहार मनाते हैं उन्हें खिलाते भी हैं और उनके साथ अपने परिवार के सदस्यों की तरह ही खाना खाते हैं.
समिति की नींव रखने वाली वंदना दत्ता इसकी शुरुआत के बारे में बताती हैं कि 2 साल पहले उन्होंने इसकी अकेले ही पहल की थी. उन्होंने बताया कि घर में अक्सर सबके खाना खाने के बाद कुछ खाना बच जाता था. जिसे जानवरों को खाने के लिए वे भी दे देती थीं, एक दिन सबके खाने के बाद सब्जी बच गई तो उन्होंने उसे फेकने की बजाय उसे जरुरतमंदों को खिलाने के लिए सोचा उसी दिन से इसकी शुरुआत हुई. वंदना दत्ता का कहना है कि सब्जी बचने के बाद उन्होंने 1 गिलास चावल पकाया और उसे उन्होंने ऐसे ही एक भूखे व्यक्ति को खाना खिलाया. इस तरह से यह उनकी दिनचर्या में शुमार हो गया. उन्होंने इसके बारे में अपने साथियों को बताया तो वे भी उनके साथ इस काम में सहयोग करने के लिए राजी हो गए. और देखते ही देखते 30 लोगों की एक टीम बन गई. जो लगातार सन् 2016 से यह कार्य कर रही है.
समिति के सदस्य शुक्रवार को शिक्षा कुटीर पहुंचे जहां उन सभी ने कुटीर के बच्चों को न सिर्फ तरह-तरह के व्यंजनों को खिलाया बल्कि उनके साथ बैठकर खुद भी खाना खाए और घंटों उन बच्चों के साथ अपना समय भी बिताया. कुटीर में मौजूदा वक्त में तकरीबन 45 बच्चों को शिक्षा दी जा रही है.
शिक्षाकुटीर से लौट कर आई सामाजिक कार्यकर्ता डॉ डॉली भल्ला का कहना है गांवों में शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा नहीं होता है लेकिन वहां रहने वाले बच्चों के गांव में ही शहरों के अच्छे स्कूलों के स्तर की शिक्षा दी जा रही है. यहां कुछ संसाधनों की थोड़ी कमी है इसके बावजूद बच्चों को अच्छा सिखाया जा रहा है. कुटीर एक मॉडल की तरह है. इससे लोगों को जुड़ना चाहिए.
क्या है शिक्षा कुटीर
अंबिकापुर के दरिमा स्थित बरगई इलाके है वहां रहने वाले आदिवासी बच्चों को शिक्षा कुटीर में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जा रही है. ये स्कूल अपने अभिनव प्रयोगों के लिए चर्चित रहा है. यहां शुल्क बतौर उनके परिजनों से पेड़ लगवाए जाते हैं. यहां बच्चों को स्कूल की ड्रेस, पठन सामग्री पेन-पेन्सिल, कापी-पुस्तक इत्यादि सब मुफ्त में प्रदान किया जाता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई कराई जा रही है. जो कि आमतौर पर सरकारी स्कूलों में नहीं दी जाती है. इसके अलावा यहां बच्चों को बस्ते के बोझ से भी मुक्त रखा गया है.
शिक्षाकुटीर की सदस्य तनुश्री के मुताबिक मैनपाट जाने वाले इस रास्ते में मड़वा पहाड़ है जो कि बंजर हो चुका था. इसे वापस हरा-भरा करने के साथ ही यहां रहने वाले बच्चों को शहरों की तरह अच्छी शिक्षा देने के लिए उद्देश्य से ही स्कूल खोला गया.
संस्था के दूसरे सदस्य संदीप सिन्हा का कहना है कि इन दो सालों में हमारा उद्देश्य सफल होता नजर आ रहा है. मड़वा पहाड़ की रौनक लौट आई है. सबके प्रयास से यह पहाड़ अब हरा-भरा दिखता है.