बिहार चुनाव के साथ -बाद मुस्लिम वोटों पर दोनों तरफ से तीख़ी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही मुसलमान महागठबंधन के साथ हमेशा की तरह नहीं खड़े रहे चर्चा के केंद्र में है. ओवेसी से NDA को बड़ा फ़ायदा पहुंचा, ये तस्वीर सामने रखी गयी है. क्या सच में ओवेसी हैदराबाद से आते हैं और बीजेपी को फ़ायदा पहुंचा जाते हैं, बात इतनी सी है ? अचानक मुसलमान फ्रांस की घटना पर आक्रोशित होते हैं और एम पी में फिर से शिवराज सरकार बन जाती है ? क्या सब कुछ अचानक हो गया वर्ना अब तक तो सब ठीक था ?

लेखक – अपूर्व गर्ग

जो सेक्युलर मित्र मुसलामानों से बिहार पर सवाल कर रहे वो गलत हैं और जो मुस्लिम मित्र ओवेसी की ढपली बजा रहे वो भी गलत. सवाल है दशकों से आरएसएस जो ग्राउंड वर्क कर रही थी क्या दोनों ने उसे समझने या पढ़ने की कोशिश की. मुसलामानों को लेकर उसकी एक सुनिश्चित रणनीति है उसे किसी ने समझने का प्रयास किया ? पथ संचलन के दौरान टोपी-दाढ़ी वाले फूल बरसाते नज़र आते हैं .समय- समय पर यही लोग केसरिया ब्रिगेड से भी ज़्यादा आक्रामक होकर पाकिस्तान के पुतले जलाते मिलेंगे, देखा होगा.

कभी ये भी गौर किया इंद्रेश कुमार किस तरह मुसलमानो के एक हिस्से के बीच जाकर 2002 में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बनाकर उसके मार्गदर्शक बनकर इसी क्षेत्र में लगे रहते हैं. “योग और इस्लाम” पुस्तक जारी करने वाला ये वही मंच है जो मोदी सरकार की जीत के लिए लगा रहता है.

ख़ैर, ये तो एक मंच और एक संगठन की कवायद है जो दिख रहा है. ये भी देखिये कि इसी अंदाज़ से पिछड़ों और दलितों को अलग करने की भी सर्जरी चल रही है और इसे सिर्फ़ इस तर्क़ से नहीं ढँका जा सकता कि मायावती -पासवान ने वोट काट लिए. वोट तो ओवेसी ने बिहार में 2015 में भी काटे थे फिर भी महागठबंधन सरकार बनी थी. मायावती कई प्रदेशों में ये खेल खेलती रहीं असफल होती रही हैं .इस तरह की हार-जीत चलती रहेगी .बड़ा सवाल है. धर्मनिरपेक्ष नीति पर सोचा समझा हमला हो रहा है जिसमे ओवेसी जैसे लोग सिर्फ़ छोटे से प्यादे हैं .इस वक़्त पूरी एकजुटता से बल्कि ज़्यादा बड़ी एकजुटता से धर्मनिर्पेक्षता को बचाने की ज़रूरत है.
जिस ओवेसी फैक्टर को ज़्यादा तवज्जो देकर बिहार पर चर्चा हो रही है , याद रखना चाहिए ये वही बिहार है जहाँ कभी 6 दिसंबर अयोध्या के बाद शांति बनी रही थी और तभी पटना में साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ रैली में 5 लाख लोग धर्म निरपेक्षता बचाने एकजुट हुए थे. वही बिहार जहाँ लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को रोका गया.

आज ओवेसी की वजह से ही सही जो सफलता बीजेपी को मिली है वो खेल आगे बंगाल सहित उन सभी प्रदेशों में खेला जायेगा जहाँ कांग्रेस सामने होगी. ऐसे नतीजे आगे भी हो सकते हैं , ज़रा रुक कर सोचना चाहिए और स्वस्थ संवाद करना चाहिए कि भारतीय मुसलमान क्या सोचता है ? जो मुसलमान ओवैसियों को ठुकरा चुका था उसे अब स्पेस क्यों मिला ? मुसलमानो के अंदर की बढ़ती असुरक्षा ,हताशा के उन कारणों तक पहुँचना चाहिए जो ओवैसियों के माध्यम से बीजेपी के लिए दरवाजे खोल रहे हैं .

मुसलमानो को ऐसा क्यों लगने लगा है कि वो हाशिये पर हैं ?
मुसलमानो को ऐसा क्यों लगने लगा है उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही ?
मुसलमानो को ऐसा क्यों लगने लगा है कि उन्हें ख़ुद अपनी हिफाज़त करनी होगी ?
ऐसे कई सवालों पर चर्चा कर देश के सेक्युलर फैब्रिक की रक्षा करनी चाहिए .जिस दिन हिन्दू इधर , मुसलमान उधर रुख करेंगे धर्मनिरपेक्षता ही नहीं देश भी बिखर जायेगा.

लेखक – अपूर्व गर्ग