शिवम मिश्रा, रायपुर- मुमकिन है कि आने वाले दिनों में राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में एक सवाल पूछा जाएगा कि राज्य की पहली महिला आईपीएस अधिकारी कौन थी? तो इसका जवाब ‘अंकिता शर्मा’ के नाम के साथ सामने आएगा. तेजतर्रार और निडर होकर फैसले लेने वाली अंकिता इन दिनों राजधानी में आयरन लेडी के रूप में पहचान कायम करती नजर आ रही हैं. हाल ही में नशे के काले कारोबार पर शिकंजा कस सुर्खियों में आई अंकिता की कहानी बेहद दिलचस्प है. मिजाज में सख्ती तो है ही, कमजोरों की मदद के लिए किसी भी हद तक जाने का जुनून भी सिर पर सवार है.

छत्तीसगढ़ की माटीपुत्री अंकिता शर्मा वैसे तो कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखती हैं, लेकिन कच्ची उम्र में ही उन्होंने वर्दी पहनने की ठान ली. जोश और जज्बा ऐसा कि जब तक शरीर पर वर्दी नहीं डली, तब तक हार नहीं माना. ऐसा नहीं था कि सामने चुनौतियों से वास्ता ना पड़ा हो, पर लक्ष्य पर निशाना लगाने की महारत बचपन में ही साध ली थी. अंकिता शर्मा कहतीं हैं कि ‘पिता कारोबारी थे, परिवार में ऐसा महौल नहीं था कि कोई गाइड कर सके, कोई सिविल सर्विसेज में नहीं था. मैं कभी कलेक्टर-एसपी से फेस टू फेस नहीं मिली थी. यहां गिरना भी खुद था, संभालना भी खुद था और फिर उठकर चलना भी खुद था’.
एक आईपीएस बनने के पीछे की कहानी साझा करती हुई अंकिता बताती हैं कि, ‘ मैं जब कभी भी जरूरतमंद लोगों को देखती, तब यह महसूस करती कि आखिर कैसे मैं इनकी मदद करूं. मैं सोचा करती थी कि इनकी मदद या तो पैसे से की जा सकती है या फिर सर्विस के जरिए बड़ी राहत दी जा सकती है. मैंने सर्विस का रास्ता चुना. मैं यह मानती थी कि सिग्नेचर में इतनी ताकत होती है कि आम आदमी की मदद की जा सकती है. यह सच भी है. किसी की मदद पैसे से एक हद तक की जा सकती है, लेकिन एक सिग्नेचर से की जाने वाली मदद की कोई सीमा नहीं.’
आईपीएस चयन और फिर ट्रेनिंग के दौरान भी अंकिता शर्मा के सामने कई अड़चने आई. इस दौरान ही उनकी शादी हुई.हसबैंड  की ट्रांसफेरेबल जाॅब के साथ समझौता करना पड़ा. यूपीएससी के कई अटैम्प्ट में असफलता हाथ लगी, बावजूद इसके मन में कुछ कर गुजरने का विश्वास ही था, जिसने लक्ष्य को बांधे रखा. वह कहती हैं कि ‘ मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं छत्तीसगढ़ की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनी. आईपीएस में चुने जाने के बाद से आज तक मुझे यह नहीं लगा कि मैंने कोई गलत फैसला लिया है, मैंने बहुत सोच समझकर यह फैसला लिया था. मैंने अपनी हार भी स्वीकार की और उससे सबक लेकर जीत का रास्ता तय किया. आज जीत के साथ काम कर रही हूं’.

मैं अपने उसूलों के साथ समझौता नहीं कर सकती

एक महिला आईपीएस अधिकारी के रूप में सामने खड़ी चुनौतियों पर बात रखते हुए अंकिता शर्मा कहती हैं कि ‘ पर्सनल लाइफ हो या प्रोफेशनल मैं कभी अपने उसूलों के साथ समझौता नहीं किया. मैं बेहद खुशमिजाज किस्म की लड़की हूं. यह जरूर है कि कई बार मुझे बनावटी रूप में सख्त बनना पड़ता है’ वह बताती हैं कि ‘ मुझे मेरे परिवार में कभी इस बात का कंपलशन नहीं रहा कि मैं आज जो भी हूं, वह बनूं. परिवार हमेशा एक बैक सपोर्ट के रूप में मेरे साथ खड़ा रहा. मैंने अपने अरमानों को पूरी करने के लिए नौकरी की है, यह मेरी जरूरत कभी नहीं रही. ईश्वर की कृपा से मुझे हमेशा सपोर्ट करने वाले अधिकारी मिले. चाहे प्रोबेशन पीरियड में रही हो या फिर आज. मुझे हमेशा डीजीपी, आईजी, एसएसपी का सपोर्ट मिला. मेरे सही कामों के लिए मुझे कभी नहीं रोका गया. मैंने आज तक किसी तरह का कोई दबाव महसूस नहीं किया है. हमेशा मुझे मेरे काम के लिए फ्री हैंड मिला’.

मेरे जीवन की बड़ी उपलब्धि होगी यदि मुझे नक्सल इलाकों में भेजा जाए

एक महिला आईपीएस के रूप में अंकिता शर्मा जब यह कहती हैं कि नक्सल इलाकों में ड्यूटी करना उनके सपनों को पूरा करने जैसा होगा, तो उनका यह कहा उनके साहस को बयां करता है. ऐसा नहीं है कि वह नक्सल मोर्चे की चुनौतियों से बेखबर हैं, बल्कि वह कहती हैं कि ‘ छत्तीसगढ़ में आज तक कोई भी महिला आईपीएस नक्सल मोर्चे पर नहीं गई, मैं वहां जाकर राज्य के लिए काम करना चाहती हूं, यह मेरी जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक होगी’.

आईपीएस अधिकारी नहीं होती तो क्या होती….

हालांकि यह हाइपोथेटिकल सवाल है, लेकिन अंकिता शर्मा से जब यह पूछा गया कि वह आईपीएस अधिकारी नहीं होती, तो क्या होती? इसके जवाब में वह कहती हैं कि वह कोसे का एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का कारोबार करना पसंद करती. इसकी वजह बताती हुई अंकिता कहती हैं कि ‘ मुझे बचपन से कोसा काफी पसंद है. मैं इसे वर्ल्ड फोरम में ले जाना चाहती थी’.

हफ्ते के दो घंटे यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों को समर्पित

महिला आईपीएस अंकिता शर्मा ने जब यूपीएससी की परीक्षा क्लीयर की, तब उनके पास ऐसा कोई नहीं था, जो उन्हें गाइड कर सके. खुद से सीखना और फिर आगे बढ़ना ही उनकी खूबी बन गई, लेकिन आज वह सैकड़ों यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों के सामने एक आदर्श के रूप में खड़ी हैं. हर हफ्ते दो घंटे यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों को देना उनकी जीवनचर्चा का अहम हिस्सा बन गया है. हर रविवार 11 बजे से 1 बजे तक यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों के बीच रहकर उन तमाम चुनौतियों का समाधान बताती हैं, जिसका सामना वह कर चुकी हैं. वह कहती हैं कि ‘ यूपीएससी के बारे में मुझे खुद ज्यादा जानकारी नहीं थी, इस वजह से इसकी तैयारी करते समय काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इसलिए अब कोशिश कर रही हूं कि जितनी परेशानी हुई है, आगे किसी और को ना हो. यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों की हफ्ते में एक दिन क्लास लेकर उनकी मदद करती हूं. इससे मुझ खुशी मिलती है.