पद्मश्री से अलंकृत पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी जी की पावन स्मृति को भूल पाना कठिन है। वह ऐसे नायक हैं जिसने पत्रकारिता साहित्य और समाज तीनों क्षेत्रों में अपनी विरल पहचान बनाई। वह छत्तीसगढ़ के असली इंसान थे, जिन अर्थों में सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया का नारा दिया गया होगा उसके मायने शायद यही रहे होंगे कि अच्छा मनुष्य होना छत्तीसगढ़ उनकी वाणी कर्म और देह भाषा से मुखरित होता था। बाल सुलभ स्वभाव सच कहने का साहस और सलीका अपनी शर्तों पर जिंदगी जीना यह सारा कुछ एक साथ श्याम लाल जी ने अकेले संभव बनाया आज 7 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि है।
श्याम लाल जी अपनी जमीन को माटी को महतारी को प्यार करने वाले व्यक्ति थे। सत्ता के साथ उनके निरंतर और व्यापक संपर्क थे। चतुर्वेदी जी अप्रतिम वक्ता थे, मां सरस्वती उनकी वाणी पर विराजती थी। हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं में वे सहज थे। दिल की बात दिलों तक पहुंचाने का हुनर उनके पास था। वह बोलते तो हम मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते थे, रायपुर बिलासपुर के अनेक आयोजनों में उन को सुनना हमेशा सुख देता था। उनसे शायद ही कोई नाराज हो सकता था। उनके वक्तव्य में अलंकारिक शब्दावली के बजाय लोक के शब्द होते थे। साधारण शब्दों से असाधारण संवाद करने की कला उनसे सीखी जा सकती थी। उनकी बॉडी लैंग्वेज उनके व्यक्तित्व को प्रभावी बनाती थी। हम यह मानकर चलते थे कि वह कह रहे हैं तो बात ठीक ही होगी वह किसी पर नाराज हुए मैंने आज तक नहीं सुना मान लिया गुस्सा करना उन्हें आता नहीं था।
हमेशा हंसते हुए अपनी बात कहना और अपना वात्सल्य नई पीढ़ी पर लुटाना उनसे सीखना चाहिए। आजादी के पहले ऐसे पत्रकारों के बारे में ढेर सारी सूचनाएं मिलती है कि उन दिनों पत्रकार एक साथ अनेक मोर्चे पर भूमिकाएं निभाते थे वे संपादक थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे समाज सुधारक थे स्वदेशी और स्वाबलंबन के उपासक थे। लेकिन स्वतंत्रता के बाद ऐसे बहुआयामी संपादक प्रायः नहीं मिलते यशस्वी पत्रकार श्री चतुर्वेदी जी का जिक्र जब आता है तब ऐसी ही अनुभूति होती है जैसे कोई कलम का सिपाही एक साथ कई मोर्चों पर जूझ रहा हो। श्री चतुर्वेदी जी नई दुनिया, युगधर्म, हिंदुस्तान समाचार समेत छत्तीसगढ़ के कई समाचार पत्रों को नियमित रूप से समाचार भेजते रहे। सन 1949 से उन्होंने पत्रकारिता का श्रीगणेश किया माखनलाल चतुर्वेदी के कर्मवीर के संवाददाता के रूप में प्रवेश किया। महाकौशल, लोकमान्य, नवभारत, नवभारत टाइम्स, युगधर्म, जनसत्ता आदि समाचार पत्रों के प्रतिनिधि बन ग्रामीण समस्याओं का अधिकाधिक प्रकाश कर ग्रामीण विकास उन्नति में अपना अमूल्य योगदान प्रस्तुत करते रहे। हिंदुस्तान समाचार के प्रतिनिधि रहकर लंबे काल तक पत्रकारिता से युवाओं ने उन्हें खोजी पत्रकार बना दिया था। दैनिक लोक स्वर से लेकर दैनिक नईदुनिया भोपाल एवं इंदौर के अंशकालिक संवाददाता के रूप में जुड़ कर उन्होंने बिलासपुर की पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया।
सन 1981 में हिंदुस्तान समाचार के उत्तम संवाद लेखन के लिए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा उन्हें पुरस्कृत कर सम्मानित किया था। समाज में लोगों के प्रति सद्भावना से कार्य करने और सदैव वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा पर जनसंचार करना उनकी विशेषता रही, इसलिए जब उन्हें पत्रकारिता का गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार प्राप्त हुआ तो समूचा पत्रकारिता जगत जैसे सम्मानित हो गया। देश सेवक तथा निर्भीक पत्रकार के रूप में राष्ट्रीय जन जागरण में योगदान देने वाले गंभीर और लोग चिंतनशील लेखक के रूप में अपनी बात को बेबाकी से प्रस्तुत करने का साहस रखने की कला जानने वाले पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी जी एक मिसाल रहे, जिन्होंने गहन अर्थ संकट उठाकर भी पत्रकारिता को कभी व्यवसाय नहीं बनने दिया बल्कि एक मिशन के रूप में भारतीय पत्रकारिता का एक गौरवशाली इतिहास बनाया।
छत्तीसगढ़ देश का अकेला प्रदेश है जिसकी समृद्ध भाव संपदा और लोक संपदा है, उसके लिए छत्तीसगढ़ महतारी शब्द का उपयोग भी होता है। अपनी जमीन भूमि के लिए मां शब्द उदात्त भावनाओं से ही उपजता है। भारत मां के बाद किसी राज्य के लिए संभवत ऐसा शब्द प्रयोग छत्तीसगढ़ में ही होता है। छत्तीसगढ़ महतारी भी लोग जीवन की ऐसी ही मान्यताओं से संयुक्त है, अपनी माटी से मां की तरह प्यार करना और उसका सम्मान करना यही भाव इससे शब्द से जुड़े हैं। पदमश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी जी का परिवेश भी लोकजीवन से शक्ति पाता है इसलिए शहर आकर भी वे अपने गांव को नहीं भूले, अपने लोग जीवन को नहीं भूले। उनकी भाषा और भाव भी नहीं भूले। वे शहर में बसे लोक चिंतक थे लोक साधक थे यह कारण नहीं था समाजसेवी स्वर्गीय प्रोफेसर पीडी खेड़ा जैसे उनके अभिन्न मित्र थे क्योंकि दोनों के सपने एक से एक सुखी समृद्ध छत्तीसगढ़। आज जबकि प्रोफेसर खेड़ा और श्याम लाल जी दोनों हमारे बीच नहीं हैं पर वह हम पर कठिन उत्तराधिकार छोड़ गए हैं। वे पत्रकारिता के क्षेत्र में अजातशत्रु बने रहे, किसी विशेष दल व्यक्ति या विचारधारा के प्रति ही नहीं बल्कि सभी के प्रति उनका संबंध सौहार्दपूर्ण रहा है। किसी के प्रति उनके मन में कटुता नहीं रहा। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने वाले इस महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील क्षेत्र में उनकी जड़े समाज में गहराई तक धसी हुई थी।
उपभोक्तावादी संस्कृति की हवाएं उन्हें आज तक छू भी ना सकी वे छत्तीसगढ़िया के दिल में बसते थे। पहले कवि और फिर बाद में पत्रकार बनने वाले पंडित जी हास्य की फुलझड़ियां बिखेरने में काफी उस्ताद रहे। लोक रसके मधु में लिपटी हुई उनकी छत्तीसगढ़ी बहुत ही कर्णप्रिय एवं लाजवाब होती थी।
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने उन्हें छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का प्रथम अध्यक्ष बनाया। पत्रकारिता के साथ ही साहित्य की अनवरत साधना करना उनकी विशेषता रही। जितने वर्ष भी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष पद पर आसीन रहे, ऐसा किसी को भी महसूस नहीं हुआ कि पद की महत्ता उनके सिर पर चढ़कर बोलने लगी हो। वही सरलता सहजता सौहार्द था और अपनेपन के साथ लोगों के साथ हास्य व्यंग की फुलझड़ियों के साथ खिल खिलाते रहे। मेल मुलाकात में कोई अंतर नहीं आया। रिश्तों को निभाना एवं उन्हें जीवंत बनाए रखना उनसे सीखा जा सकता था। उनके विषय में जितना लिखें कम ही लगता है लेकिन इतना अवश्य कहने और लिखने को जी चाहता है कि उनकी बहुमुखी प्रतिभा उनकी पत्रकारिता अप्रतिम है। जिस समाज की स्मृतियां जितनी सघन होती हैं उतना ही चैतन्य समाज होता है। हम हमारे नायकों को समय के साथ भूलते जाते हैं। छत्तीसगढ़ की जमीन पर भी ऐसे नायक हैं जिन्हें याद किया जाना चाहिए। पदमश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी जी का समूचा जीवन उनके विचार हमारे सामने रहेंगे। नई पीढ़ी उनके आदर्शों से प्रेरणा लेती रहेगी, उनके बताए मार्ग का अनुसरण कर सकेगी। मुझे लगता है कि चतुर्वेदी जी जैसे नायकों को याद करना ही हमारे समाज को जीवंत और प्राण वान बनाने की प्रक्रिया को और तेज करेगी।