रायपुर। छत्तीसगढ़ के कण-कण में राम नाम हैं इसके प्रमाण पग-पग में मिलते हैं. राम की अनेक निशानियाँ उत्तर छत्तीसगढ़ से लेकर दक्षिण छत्तीसगढ़ तक ऐतिहासिक रूप मिलती हैं. अब इन्हीं निशानियों को चिन्हित कर भूपेश सरकार उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान देने की कोशिश कर रही है. राज्य सरकार ने प्रदेश में कुल 75 स्थानों को चिन्हित किया है, जहाँ भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने वक्त गुज़ारे हैं. जहाँ-जहाँ भगवान रुके हैं उन्हें राम वनगमन पथ के रूप में विकसित किया जा रहा है. इसके लिए बीते दिनों कोरिया के सीतामढ़ी और सुकमा के रामाराम से एक राम यात्रा निकाली गई.

लेकिन इस यात्रा के साथ ही बस्तर में विरोध भी शुरू हो गया. विरोध सर्व आदिवासी समाज की ओर से किया गया. समाज के लोग इस बात से नाराज़ हैं कि राम के नाम पर आदिवासियों के ऊपर हिंदू संस्कृति को थोपने का काम किया जा रहा है. पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र इलाके में पेसा कानून का उल्लंघन किया जा रहा. समाज से अनुमति लिए बैगर उनके अराध्य देवों के स्थानों से मिट्टी ली जा रही है. यह सही नहीं है. कोंटा के रामराम का नाता भगवान राम से नहीं. आदिवासियों का नाता भगवान राम से नहीं है.

खैर सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों और सर्व आदिवासी समाज के विरोध के ख़बर के बीच एक ख़बर ये है कि बस्तर में राम नाम की गूँज सैकड़ों वर्षों से रही है. इसका एक दस्तावेज़ी प्रमाण बस्तर स्टेट के एक सूचना पत्र से मिलता है. दरअसल आदिवासी बस्तर में जिस भँजदेव राज परिवार को देव तुल्य मानते रहे हैं उस भँजदेव राज परिवार की ओर से ही भव्य रामलीला का मंचन कराने की एक जानकारी मिलती है. दस्तावेज़ के मुताबिक आज से करीब सौ वर्ष पूर्व जब बस्तर एक स्वतंत्र स्टेट था तब वहाँ पर राजा रुद्र प्रताप देव ने सन् 1921 में 9 दिनों का भव्य रामलीला का मंचन कराया था.

यह वही दस्तावेज़ है जिसका ज़िक्र हम कर रहे हैं. यह एक सूचना-पत्र है. इसमें 9 दिनों तक आयोजित रामलीला के आयोजन की पूरी जानकारी है. इसे बस्तर राज परिवार की ओर छपवाया गया था. यह बस्तर स्टेट के छापा खाना से छपा था. इसमें तत्कालीन राजा रुद्र प्रताप देव का नाम भी लिखा है. साथ ही तारीख और बस्तर स्टेट छापा खाना भी लिखा हुआ. यह दस्तावेज़ हमें इतिहासकार रमेन्द्रनाथ मिश्र ने उपलब्ध कराया है.

इतिहासकार रमेन्द्र नाथ मिश्र कहते हैं कि बस्तर राज परिवार को आदिवासी देव तुल्य मानते हैं. भँजदेव परिवार के महाराजा रहे प्रवीरचंद भँजदेव को बस्तर के आदिवासी भगवान की तरह पूजते हैं. उस राज परिवार की ओर से राम लीला का एक भव्य आयोजन 9 दिनों तक कराना इस बात का प्रमाण है कि राम का नाता बस्तरवासियों से रहा है. भगवान राम छत्तीसगढ़ के जन-मन में कण-कण में व्याप्त हैं. भगवान राम प्रदेश में संस्कृति और आस्था के साथ मानस के सबसे बड़े प्रतीक के तौर पूजे जाते हैं. इसमें हिंदू या आदिवासी संस्कृति को लेकर विरोधाभास जैसी कोई बात नहीं है. सबकी अपनी आस्था और संस्कृति है.

बस्तर राजपरिवार के महाराजा कमलचंद भँजदेव कहते हैं भगवान राम से परिवार का नाता रहा है. हमारे पूर्वजों ने भगवान राम मंदिर राम महल क्षेत्र में बनवाए हैं.  जहाँ तक बात रामलीलाल मंचन और जो दस्तावेज़ आप बता रहे हैं, तो उसकी जानकारी मैं भी जुटा रहा हूँ.  सूचना-पत्र था या कुछ और इसकी जानकारी पूरी तरह से जुटाने के बाद ही विस्तार मैं इस विषय पर बता पाऊँगा.