रायपुर। देश की आम जनता का पैसा देश के हित में उपयोग किया जाय कारपोरेट लूट के लिए नहीं, इस अनुरोध के साथ देश भर में सांसदों व मुख्यमंत्रियों को समर्थन के लिए ज्ञापन सौंपा जा रहा है. इसी कड़ी में आल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलॉइज एसोसिएशन के राष्ट्रीय सहसचिव कामरेड धर्मराज महापात्र के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन सौंपा और समर्थन का आग्रह किया.

कामरेड महापात्र ने बताया कि इस ज्ञापन में मुख्यमंत्री को अवगत कराया गया कि वर्तमान केन्द्र सरकार देश के लिए सोने का अंडा देने वाली एलआईसी जैसे संस्थान पर भी निजी पूंजी की घुसपैठ के जरिए देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता को ही दांव पर लगा रही है. एलआईसी के IPO की बोली जारी करने के पूर्व लेन देन सलाहकार के रूप में केंद्र सरकार ने डिलायट टच तेहमेट्सू और फाइनेंशियल सर्विसेस को इस कार्य के लिए नियुक्त किया है.

एलआईसी ने देश के औद्योगिक विकास और राष्ट्र निर्माण में अतुलनीय भूमिका अदा की है, जो आज भी जारी है. पॉलिसिधरको की संख्या के मामले में देश के सबसे बड़े बीमाकर्ताओं के रूप में उभरने और विकास करना पूरी तरह से उसने आंतरिक संसाधनों को पैदा करने के माध्यम से किया है. एलआईसी ने आज 32 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति का निर्माण किया है. उसने भारत सरकार को 5 करोड़ रुपए की प्रारम्भिक पूंजी के एवज में 28 हजार करोड़ रुपए के लाभांश का भुगतान किए है. वह प्रतिवर्ष 3 से 4 लाख करोड़ की राशि ढांचागत क्षेत्रों में निवेश के लिए प्रतिवर्ष उपलब्ध कराती है. उसने 28 लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि का देश में आधारभूत क्षेत्र और सरकारी कंपनियों ने निवेश किया है. दुनिया में ऐसी कोई दूसरी मिसाल नहीं है जहां केंद्र सरकार द्वारा बाजार से लिए जाने वाले उधार के 25 फीसद हिस्सा किसी एक संस्थान याने एल आई सी ने उपलब्ध कराया है.

इसका विस्तार बीमा धारक के पैसे से हुए है अर्थात एलआईसी ने आपसी लाभ वाले समाज की तरह काम किया है, जिसकी एलआईसी के एक हिस्से को बाजार में बेचने का निर्णय लेते समय अनदेखी की जा रही है. सबसे ख़तरनाक बात यह है कि भारत सरकार जो इसकी अल्पसंख्यक हिस्से की मालिक है असली मालिक आम बीमा धारक जिनकी संख्या 40 करोड़ से अधिक है और उन बीमा धारकों की अनुमति के बगैर इसके हिस्से को बाजार में बेचने का कदम उठा रही है.

जब 1956 में बीमा व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण किया गया तो उसका उद्देश्य था जनता की छोटी बचत को एकत्र कर देश के विकास के लिए दीर्धकाल निवेश जुटाना और आम जनता के वंचित तबके तक बीमा का विस्तार कर बीमा धारक को जोखिम की सुरक्षा के साथ उनके निवेश पर एक अच्छा लाभांश उपलब्ध कराना एलआईसी ने इसे बखूबी निभाया. जनता का पैसा जनता के लिए की अवधारणा पर उसने काम किया. लेकिन सरकार द्वारा इसके हिस्से को बाजार में बेचने का निर्णय जो अंततः निजीकरण के रास्ते पर बढ़ने का कदम है, इससे यह उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा. उसका सामाजिक उद्देश्य बदलकर निजी शेयर धारकों को अधिकतम लाभ पहुंचाना हों जाएगा जो 40 करोड़ बीमा धारक या राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक होगा.

गौरतलब है कि दुनिया भर में बड़े अर्थशास्त्रियों का यही मानना है कि विदेशी पूंजी घरेलू बचत का खराब विकल्प है. ऐसी स्थिति में जहां देश के विकास के लिए भारी संसाधन की आवश्यकता है यह और अधिक महत्वपूर्ण हों जाता है कि घरेलू बचत पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण हो. आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना भी तभी सफल होगी जब हर साल अत्यधिक निवेश योग्य अधिशेष उत्पन करने वालीं संस्था पर सौ प्रतिशत सरकारी नियंत्रण हो.

एलआईसी की इक्विटी को बेचने का कदम भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज के कमजोर वर्गो के हितों को बुरी तरह से प्रभावित करेगा. कमजोर वर्गों तक बीमा की पहुंच का सामाजिक उद्देश्य पीछे चला जाएगा और लाभहीन ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा का विस्तार का लक्ष्य बाधित होगा. एलआईसी के मूल स्वरूप को छेड़ने से देश की गरीब आबादी और गरीब तबके के हितों का अकल्पनीय नुकसान होगा. उन्होंने मुख्यमंत्री महोदय से इसके विरुद्ध प्रधानमंत्री व वित्तमंत्री को पत्र लिखने तथा प्रदेश की विधानसभा में भी विरोध किए जाने का आग्रह किया. मुख्यमंत्री बघेल ने एल आई सी के निजीकरण का विरोध करते हुए प्रतिनिधि मंडल को आगामी विधानसभा सत्र में इस पर प्रस्ताव का आश्वासन दिया.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ सहित देश के विभन्न राजनीतिक दलों के 355 से अधिक सांसदों को संगठन की ओर से ऐसे ज्ञापन अब तक दिए जा चुके है और सबसे केंद्र सरकार के एल आई सी को कमज़ोर करने के प्रयासों को रोकने समर्थन का आग्रह किया गया है.

प्रतिनिधि मंडल में आरडीआईईयू के अध्यक्ष अलेक्जेंडर तिर्की, महासचिव सुरेन्द्र शर्मा व सहसचिव के के साहू भी शामिल थे.