फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ी अस्मिता के सबसे बड़े प्रतीक में से एक आज उस रतन बेटे की जयंती है, जिन्होंने छत्तीसगढ़ियों में स्वाभिमान जगाने का काम किया था. जिन्होंने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन किया था. जिन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा को भागवत कथा में शामिल कर उसे जन-जन में प्रसारित करने, प्रचारित करने और मातृभाषा के प्रति सम्मान जगाने का काम किया था. जिन्होंने हर मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी. जो एक सफल कवि, भागवताचार्य, खिलाड़ी और राजनेता के तौर जाने और माने गए. जिन्होंने एक पंक्ति में जीवन के मूल्य को समझा दिया था….तहूँ होबे राख…महूँ होहू राख…जिनके लिए सन् 1977 में एक नारा गूँजा था…पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है. आज उसी संत कवि पवन दीवान को हम याद कर रहे हैं.
आज संत कवि पवन दीवान की जयंती है. पवन दीवान का जन्म 1 जनवरी सन् 1945 को राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई. उनके पिता का नाम सुखराम धर दीवान शिक्षक थे. वहीं माता का नाम किर्ती देवी दीवान था. ननिहाल आरंग के पास छटेरा गाँव था. उन्होंने स्कूली शिक्षा किरवई और राजिम से पूरी की. जबकि उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय और रविशकंर शुक्ल विवि रायपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी. उन्होंने हिंदी और संस्कृत में एमए की पढ़ाई की थी. अध्ययनकाल के समय ही पवन दीवान में वैराग्य की भावना बलवती हो गई थी. 21 वर्ष की आयु में हिमालय की तरायु में जाकर अंततः उन्होंने स्वामी भजनानंदजी महराज से दीक्षा लेकर सन्यास धारण कर लिया और भी पवन दीवान से अमृतानंद बन गए. इसके बाद वे आजीवन सन्यास में रहे और गाँव-गाँव जाकर भागवत कथा का वाचन करने लगे.
अध्ययनकाल के दौरान उनकी रुचि खेल में भी रही. फुटबाल के साथ बालीबाल में वे स्कूल के दिनों में उत्कृष्ट खिलाड़ी रहे. इस दौरान ही उन्होंने कविता लेखन की शुरुआत भी कर दी थी. धीरे-धीरे वे एक मंच के एक धाकड़ कवि बन चुके थे. उन्होंने छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनों में ही कविताएं लिखी. उनकी कुछ कविताएं जनता के बीच इतनी चर्चित हुई कि वे जहाँ भी भागवत कथा को वाचन को जाते लोग उनसे कविता सुनाने की मांग अवश्य करते. इन कविताओं में राख और ये पइत पड़त हावय जाड़ प्रमुख रहे. वहीं कवि सम्मेलनों उनकी जो कविता सबसे चर्चित रही उसमें एक थी मेरे गाँव की लड़की चंदा उसका नाम था शामिल है.
भागवत कथा वाचन, कवि सम्मेलनों से राजिम सहित पूरे अँचल में प्रसिद्ध हो चुके हैं. उनके शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ते ही जा रही थी. राजनीति दल के लोगों से उनका मिलना-जुलना जारी था. और उनकी यही बढ़ती हुई लोकप्रियता एक दिन उन्हें राजनीति में ले आई. राजनीति में उनके प्रवेश हुआ जनता पार्टी के साथ. 1975 में आपातकाल के बाद सन् 77 में जनता पार्टी से राजिम विधानसभा सीट चुनाव लड़े. एक युवा संत कवि के सामने तब कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामचारण शुक्ल कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे. लेकिन युवा संत कवि पवन दीवान श्यामचरण शुक्ल को हराकर सबको चौंका दिया था. तब उस दौर में एक नारा गूँजा था- “पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है.” श्यामचरण शुक्ल जैसे नेता को हराने का इनाम पवन दीवान को मिला और अविभाजित मध्यप्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे.
इसके बाद वे कांग्रेस के साथ आ गए और फिर पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने तक कांग्रेस में रहे. 2003 में रमन सरकार बनने के साथ वे भाजपा में और रमन सरकार में गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे. और भी समय गुजरते-गुजरते एक दिन ऐसा भी जब अपनी खिलखिलाहट से समूचे छत्तीसगढ़ को हंसा देने वाले पवन दीवान सबको रुला भी गए. यह तारीख थी 23 फरवरी 2014. इस दौरान राजिम कुंभ मेला चल रहा था. मेले में ही कार्यक्रम के दौरान उन्हें ब्रेम हेमरेज हुआ फिर वे कोमा चले गए. 2 मार्च 2014 को दिल्ली में इलाज के दौरान उनका निधन होगा गया.
राजनीतिक सफर-
- 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर राजिम से विधायक चुने गए.
- अविभाजाति मध्यप्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे.
- 1977 में जनता लहर के बीच पवन दीवान को छत्तीसगढ़ के गांधी की उपाधि दी गई थी.
- 1991 और 1996 में कांग्रेस पार्टी से महासमुंद लोकसभा से दो बार सांसद रहे.
- डॉ. रमन सरकार में छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष भी रहे.
उनकी चर्चित कविता का ‘राख’
राखत भर ले राख …
तहाँ ले आखिरी में राख..
राखबे ते राख…..
अतेक राखे के कोसिस करिन…..
नि राखे सकिन……
तेके दिन ले….
राखबे ते राख…..
नइ राखस ते झन राख….
आखिर में होना च हे राख….
तहूँ होबे राख महूँ होहू राख….
सब हो ही राख…
सुरू से आखिरी तक…..
सब हे राख…..
ऐखरे सेती शंकर भगवान……
चुपर ले हे राख…….