फीचर स्टोरी। आज माटी के उस लाल की जयंती है जिन्होंने छत्तीसगढ़ की धरा से निकलकर देश और दुनिया में पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया. जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध की रिपोर्टिंग की. जिनके नाम पर सर्वाधिक ओलंपकि की रिपोर्टिंग करने का रिकॉर्ड दर्ज है. जिन्होंने दुर्ग से निकलकर दिल्ली में हिंदुस्तान समाचार-पत्र में संपादक का दायित्व का संभाला. आज हम पत्रकारिता के ऐसे शिखर पुरूष चंदूलाल चंद्राकर को याद कर रहे हैं. उस शख्स को जो पत्रकारिता को छोड़ जब राजनीति में गए तो वहाँ सफल राजनीतिज्ञ के तौर पर छा गए.
चंदूलाल चंद्राकर का जन्म दुर्ग जिले के निपानी गाँव में 1 जनवरी 1921 को हुआ था. उन्होने प्राभंरिक शिक्षा गाँव से ही प्राप्त की. उच्च शिक्षा जबलपुर के रॉबर्ट्सन कॉलेज जबलपुर से प्राप्त की. अध्ययन के दौरान ही चंदूलाल ग्रामीण समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर रहते थे. शायद यही उनकी पत्रकारिता की एक तरह की शुरुआत कही जा सकती है. सामाजिक मुद्दों पर वे अपनी नजर रखते, उस पर अध्ययन और विमर्श करते.
जबलपुर में कॉलेज की शिक्षा ग्रहण के बाद वे पत्रकारिता से जुड़ गए. इस दौरान वे राष्ट्रीय आंदोलन से भी जुड़ चुके थे. इसके लिए उन्हें सन् 1942 में जेल भी जाना पड़ा था. जेल रिहा होने के बाद वे बनारस चले और वहाँ पर दैनिक आज के लिए रिपोर्टिंग करने लगे. इसके बाद वे आर्यावत समाचार-पत्र से जुड़ गए. उन्होंने मुंबई में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन कवर किया. कवरेज इतना प्रभावशाली था कि महात्मा गाँधी तक उनकी प्रशंसा की थी.
चंदूलाल चंद्राकर की पत्रकारिता से प्रभावित महात्मा गांधी ने अपने बेटे देवदास गांधी से उन्हें हिंदुस्तान टाइम्स में रखने को कहा. इसके बाद चंदूलाल चंद्राकर सन् 1945 में हिंदुस्तान टाइम्स में सहायक संपादक बन गए. बाद में फिर सिटी चीफ और संपादक बनकर काम करते रहे. सन् 1964 में वे वे हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक बने. छत्तीसगढ़ से दिल्ली में जाकर एक सर्वोच्च अखबार के संपादक बनने वाले पहले व्यक्ति थे. इस दौरान उन्होंने ओलंपिक की सर्वाधिक 9 बार रिपोर्टिंग की, जो कि खेल पत्रकारिता में एक रिकॉर्ड है. बतौर पत्रकार उन्होंने कई देशों की यात्राएं की. यहाँ तक अमेरिकी चुनाव की रिपोर्टिंग और अमेरिका राष्ट्रपति का इंटरव्यू भी किया था.
सन् 1970 में चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता को छोड़ राजनीति में आ गए. कांग्रेस पार्टी से जुड़ने के बाद सन् 71 वे दुर्ग लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीतकर सांसद बने. इसके बाद वे लगातर 1991 तक 5 बार सांसद रहे. इस दौरान वे राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे.
राजनीतिक सफर
1970 से 1991 तक- लोकसभा क्षेत्र दुर्ग से 5 बार चुने गए
जून 1980 से जनवरी 1982 तक- केंद्रीय राज्यमंत्री पर्यटन और नागरिक उड्डयन
1982 में ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने।
जनवरी1985 से जनवरी 1986 तक- केंद्रीय कृषि व ग्रामीण राज्य विकास राज्य मंत्री
1964 से 1970 तक -अध्यक्ष भारत सरकार प्रिंटिंग प्रेस कर्मचारी यूनियन संघ के सदस्य
1975 से 1995- स्टील कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष के रूप में
1975- उपाध्यक्ष इंटक मध्य प्रदेश
1975 में – भारतीय शिष्टमंडल यूनेस्को,पेरिस, कार्लमाक्रस की मृत्यु शताब्दी बर्लिन में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया।
1993 से 1995 तक – अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता के रूप में
1994 से 1995 में- छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण मंडल के अध्यक्ष के रूप में
इसके अलावा वे कई बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय इस्पात और खनिज मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के सलाहकार समितियों के सदस्य भी रह चुके थे.
सफल पत्रकार और राजनीतज्ञ के तौर अपनी पहचान बनाने वाले छत्तीसगढ़ महतारी के बेटे चंदूलाल चंद्राकर ने 2 फरवरी सन् 1995 को अंतिम सांस ली और इस दुनिया को छोड़ सदा के लिए सबसे अलविदा हो गए.