फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ महतारी के रतन बेटे में से एक थे देवदास बंजारे. देवदास बंजारे की पहचान छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य और गीत पंथी के अमर नायक के तौर पर दर्ज है. यह कहानी बाबा गुरु घासीदास के उस सच्चे साधक की है, जिन्होंने पूरी दुनिया को मांदर की थाप पर अपने संग नचा दिया.
देवदास बंजारे का जन्म 1 जनवरी सन् 1947 को धमतरी जिले के सांकरा गाँव में हुआ था. उनके बचपन का नाम जेठू था. उनकी पढ़ाई-लिखाई गरीबी, विस्थापन और अभावों के बीच दुर्ग जिले में भिलाई के पास उम्मा गाँव में हुई. उनका बचपन उम्दा में ही बीता. स्कूल के दिनों से ही एक प्रतिभाशाली छात्र रहे. वे एक अच्छे धावक और कबड्डी के माहिर खिलाड़ी रहे. यहाँ तक की उन्होंने राज्य स्तरीय चैंपियनशीप में भी भाग लिया था.
सन् 1969 में एक घटना ऐसी घटी जिसने उनकी जिंदगी को एक नई मोड़ दी. दरअसल 69 में कबड्डी प्रतियोगिता में उन्हें घुटने में चोट होने की वजह बाहर कर दिया गया. यहीं से देवदास अपने नए जीवन की सफर की शुरुआत की. यह शुरुआत थी पंथी कलाकार के तौर पर.
“1972 में बाबा के जन्म स्थान गिरौदपुरी जहां छत्तीसगढ का बहुत बडा मेला लगता है वहां के प्रर्दशन नें देवदास को सफलता की सीढियों में चढना सिखा दिया उस अवसर पर अविभजित मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री पं श्यामाचरण शुक्ल नें उसके दल को स्वर्ण पदक से नवाजा .
छत्तीसगढ के समाचार पत्रों नें भी देवदास के पंथी दल की भूरि भूरि प्रसंशा की धीरे धीरे देवदास का दल प्रसिद्धि पाने लगा एवं शैन: शैन: देवदास अपने कला में पारंगत होता गया.
26 जनवरी 1975 को छत्तीसगढ एवं स्पात मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करते हुए गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में देवदास को नाचते हुए लाखों लाख लोगों नें देखा.
21 मई 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम फकरूद्दीन अली अहमद नें गणतंत्र दिवस के परेड की प्रस्तुति से प्रसन्न होकर राष्ट्रपति भवन में प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया एवं अपने हांथों से स्वर्ण पदक से सम्मानित किया.
हबीब तनवीर नें जो देवदास को चरणदास चोर में ब्रेक दिया यहीं से उसकी नृत्य नें सफलता का रफ्तार पकड लिया । हबीब तनवीर के “चरणदास चोर” नें देश व विदेशों के कई कई शहरों में अपना कीर्तिमान रचा है जिसमें देवदास के बाल बिखरा कर नृत्य करते देखकर दर्शक झूम उठते थे.
लंदन, एडिनबर्ग, हेम्बर्ग, एस्टरडम, कनाडा, ग्लासगो, पेरिस, सहित कई देशों व नगरों में पंथी नृत्य नें घंटों समा बांधा और दर्शक देवदास को मांदर बजाते पांवों में घुघरू बांधे तीव्र से तीव्रतम नृत्य करते, करतब करते, पिरामिड बनाते देखते और छत्तीसगढ के इस नृत्य को देखकर दांतो तले उंगली दबा लेते . ( आरंभ- संजीव तिवारी)
ख्यातिलब्ध साहित्यकार कमलेश्वर भी देवदास बंजारे के नृत्य के दीवाने थे उन्होने कहा था –
“ देवदास बंजारे नें पंथी नृत्य को पुनर्जीवित कर के नया आयाम दिया हैं, संत घासीदास का आर्शिवाद उनमें विराजता है ! इसे योरोप और अमेरिका के लोग नहीं समझ पायेंगे, क्योंकि उनके पास आधुनिक नगर हैं, पर अपनी धरती से उपजी लोक कलाओं की कोई परंपरा नहीं है । उनके पास कोई देवदास या तीजन बाई नहीं है . . . अंतत: वे प्रतिस्पर्धात्मक औद्योगिक समाज अपनी जडों के तलाश में फिर लगेंगे और तब मनुष्य की सतत और अविरल उर्जा, आस्था और खोज का रास्ता पंथी जैसा नृत्य ही तय करेगा । ”
छत्तीसगढ के वरिष्ठ साहित्यकार अशोक सिंघई कहते हैं
“देवदास बंजारे छत्तीसगढ के पहले मंचीय कलाकार हैं जिन्हे विदेशी मंचों पर प्रदर्शन का भरपूर अवसर मिला । इन अवसरों का उन्होंने उल्लेखनीय निर्वहन किया इसलिए वे साठाधिक मंचों पर प्रदर्शन दे सके । यह उल्लेखनीय कीर्तिमान है, छत्तीसगढ के अमर संत गुरू बाबा धासीदास के संदेशों को लेकर विदेश जाने वाले वे पहले कलाकार हैं । कई उपलब्धियां उन्हें विश्व के लोक कलाकारों की प्रथम पंक्ति में प्रतिष्ठित कराती है । ” ( आरंभ- संजीव तिवारी)
गुरु घासीदास जी के संदेशों को पंथी नृत्य गीत से दुनिया तक पहुँचानेवाले देवदास बंजारे का न 26 अगस्त 2005 का रायपुर से भिलाई के रास्ते सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था.
देवदास के द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले एक पारंपरिक पंथी गीत यहाँ प्रस्तुत है…
सत्यनाम, सत्यनाम, सत्यनाम सार
गुरू महिमा अपार, अमरित धार बहाई दे,
हो जाही बेडा पार, सतगुरू महिमा बताई दे।
सत्यलोक ले सतगुरू आवे हो
अमरित धार ला संत बर लाये हो
अमरित देके बाबा कर दे सुधार
तर जाही संसार, अमरित धार बहाई दे,
हो जाही बेडा पार, सतगुरू महिमा बताई दे।
सत के तराजू में दुनिया ला तौलो हो
गुरू ह बताईसे सत सत बोलो जी
सत के बोलईया मन हावे दुई चार,
उही गुरू हे हमार, अमरित धार बहाई दे,
हो जाही बेडा पार, सतगुरू महिमा बताई दे।
सत्यनाम, सत्यनाम, सत्यनाम सार
गुरू महिमा अपार, अमरित धार बहाई दे ।