फीचर स्टोरी। आज उस छत्तीसगढ़िया नेता की जयंती है जिन्होंने कांग्रेस के गढ़ ‘दुर्ग’ में भाजपा को स्थापित करने काम किया, जो पृथक छत्तीसगढ़ राज्य में पहले प्रदेश अध्यक्ष बने, जो लगातार चार बार तक दुर्ग लोकसभा सीट से सांसद रहे. लेकिन वे कभी केंद्रीय मंत्री नहीं बन पाए और जिन्हें इस बात का मलाल अंतिम दिनों तक रहा. पार्टी में मिल रही लगातार उपेक्षा के बाद आखिकार उन्होंने भाजपा के खिलाफ बवागत कर नगाड़ा बजा दिया. हम याद कर रहे हैं राजनीति के ‘तारा’ ताराचंद साहू को.

ताराचंद साहू का जन्म 1 जनवरी 1947 को दुर्ग जिले के कचांदुर में हुआ था. किसान परिवार में जन्मे ताराचंद साहू अध्ययन के बाद अध्यापन कार्य से जुड़ गए थे. वे स्कूली शिक्षक के तौर अपने इलाके में कार्य कर रहे थे. लेकिन इस दौरान वे जनसंघ से भी जुड़ गए थे.

सन् 1964 में भारतीय जनसंघ के सदस्य बन गए. इसके बाद जनसंघ के लिए सक्रिय तौर पर काम करने लगे. भारतीय जनता पार्टी के उदय के साथ ही वे पार्टी के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता के तौर काम करने लगे. ताराचंद साहू धीर-धीरे दुर्ग जिले में अपनी पकड़ और पार्टी को मजबूत करते चले.

दुर्ग जिले में भाजपा की पकड़ कमजोर थी. क्योंकि दुर्ग कांग्रेस का गढ़ था. कांग्रेस में उन दिना राजनीति के चाण्यक कहे जाने वाले वासुदेव चंद्राकर सक्रिय थे. दुर्ग का पूरा इलाका वासुदेव का इलाका माना जाता था. ऐसे उस इलाके में भाजपा को जीताना ताराचंद के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी.

भाजपा ने सन् 1990 में ताराचंद साहू को अविभाजित दुर्ग जिले के गुंडरेदी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा. ताराचंद पहली चुनाव में जीत गए. इसके बाद वे 1993 में दोबारा विधायक बने. पार्टी उन्हें दुर्ग जिला भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी. सन् 1996 में जिलाध्यक्ष रहते ही उन्हें दुर्ग लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया. उस समय ताराचंद के सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता वासुदेव चंद्राकर प्रतिद्वंदी थे. ताराचंद ने वासुदेव चंद्राकर को हराकर सबको चौंका दिया. यह एक तरह से दुर्ग में कांग्रेस के दुर्ग को ध्वस्त करने जैसा था. इसके बाद वे लगातार 98, 99 और 2004 में लोकसभा चुनाव जीते और सांसद बने. उनके जीत और कांग्रेस की हार से दुर्ग में कांग्रेस कमजोर और भाजपा मजबूत होते चली गई.

छत्तीसगढ़ जब अलग राज्य बना तो पार्टी ने उन्हें भाजपा के पहले प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी. हालांकि उन्हें दोबारा अध्यक्ष नहीं बनाया और रमन सिंह 2003 पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष बने और छत्तीसगढ़ में भाजपा रमन सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा. इस बात का मलाल ताराचंद को ताउम्र रहा. मलाल सिर्फ इतना ही नहीं लगातार चार बार सांसद रहने के बाद भी उन्हें केंद्रीय मंत्री नहीं बनाया गया था, जबकि 99 में पहली बार सांसद बनने वाले रमन सिंह केंद्रीय राज्य मंत्री बन गए थे. धीरे-धीरे इन बातों को लेकर ताराचंद पार्टी से नाराज रहने लगे थे. 2008 के आते-आते जब पार्टी से दूर होते चले और 2009 के लोकसभा में उन्हें टिकट नहीं देने की चर्चा शुरू होने लगी तो उन्होंने पार्टी बागी तेवर अपना लिया.

भाजपा से इस्तीफा देने से पूर्व ही उन्होंने 10 अगस्त 2008 को छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान मंच का गठन कर लिया. यह भाजपा के खिलाफ खुलकर की गई बगावत थी. भाजपा ने 6 जनवरी 2009 को लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उसे निष्कासित कर दिया.

भाजपा को सबक सीखाने और पार्टी से अपमान का बदला लेने उन्होंने 2009 में निर्दलीय चुनाव लड़ा, हालांकि वे जीत नहीं सके, लेकिन उन्होंने अपनी ताकत का एहसास कर दिया. 2009 में भाजपा की टिकट पर सरोज पाण्डेय लोकसभा चुनाव जीतीं और ताराचंद साहू 2 लाख 64 हजार मत पाकर दूसरे नंबर रहे, जबकि कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर थी.

इसके बाद उन्होंने 10 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का क्षेत्रीय पार्टी के रूप में पंजीयन कराया. इसके वे खुद केंद्रीय अध्यक्ष रहे. इसके अलावा उन्होंने इसी वषर्ष 12 अगस्त को इस्पात श्रमिक मंच के नाम से एक श्रमिक संस्था का गठन भी किया था. हालांकि वे इस पार्टी के साथ 2013 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाए, जैसा कि उन्होंने सपना देखा. बीमारी के चलते 11 नवंबर 2012 को मुंबई में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया.