दरअसल, सादगी भरा जीवन जीना परिशी शाह को इतना अच्छा लगा कि इन्होंने सांसारिक मोह-माया त्याग कर साध्वी बनने का फैसला किया है। इतना ही नहीं, इसकी तैयारी के लिए दीक्षा ग्रहण करने का कार्यक्रम भी शुरू कर दिया है। खास बात ये है कि परिशी शाह के पिता हॉन्ग कॉन्ग में डायमंड के बड़े कारोबारी हैं और उनका अरबों का साम्राज्य है लेकिन इस सफल कारोबारी की बेटी को चमक दमक वाली दुनिया बहुत रास नहीं आई।
साध्वी बनने का फैसला लेने वाले परिशी शाह ने बताया कि जब वे भारत आई थीं, तब वे अपनी नानी संग डेरासर जो कि एक जैन मंदिर है वहां गईं और उन्होंने प्रवचन सुने। मंदिर में सुनाए गए प्रवचनों से वह काफी प्रभावित हुईं। प्रवचन सुनने के बाद से वे रेस्टोरेंट जाना और फिल्में देखना ही भूल गई हैं। परिशी शाह ने बताया कि प्रवचन सुनने के बाद वे अधिकतर साध्वी के प्रवचन सुनने लगीं और इस बीच उन्हें अलग ही तरह के आनंद की अनुभूति हुई। उन्होंने बताया कि साध्वी के बीच रहकर उन्हें यह अनुभूतु हुई कि खुशी व्यक्ति के अंदर ही समाहित होती है, जिसे लोग चकाचौंध की दुनिया में खोज रहे हैं। इस अलग अनुभूति के बाद ही परिशी ने साध्वी बनने का अहम फैसला लिया।