आशुतोष तिवारी,जगदलपुर। बस्तर के बारे में चर्चा होती है, तो नक्सलवाद के मुद्दों पर जरूर बात होती है. नक्सलवाद एक बार जरूर जहन में आता है. लेकिन अब बस्तर बदल रहा है. समय बदल चुके है. हालात बदल चुके है. नक्सलवाद को पीछे धकेलने में बस्तर पुलिस काफी हद तक कामयाब रही है.
दरअसल नक्सलवाद से जूझ रहे आदिवासी बहुल क्षेत्र में काम करने से हमेशा अधिकारी-कर्मचारी कतराते रहे हैं. अंदरूनी इलाकों में काम करने से तो हमेशा परहेज किया जाता रहा है. कई पुराने आईएएस अफसरों ने बस्तर में काम करने से जुड़े इस मिथक को तोड़ा, तो कई ने अपनी सक्रियता शहर और इसके आसपास के इलाकों में केन्द्रित रखकर समय काट दिया. वर्तमान कलेक्टर रजत बंसल की कार्यशैली अंदरूनी क्षेत्रों तक जाकर आदिवासियों के बीच चर्चा कर निर्णय लेने और प्रशासन को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की दिशा में कारगर दिखाई देने लगी है.
2012 बैच के आईएएस अधिकारी रजत बंसल विकास के साथ गांव की समस्याएं और मांगों को करीब से देखने समझने के लिए दूरस्थ इलाकों में रात बिताने से भी नहीं हिचक रहे. जहां दिन में भी अधिकारी-कर्मचारी जाना नहीं चाहते, वहां भी वे पहुंच रहे हैं. ऐसी ही धुर नक्सल प्रभावित अति सवेंदनशील क्षेत्र माने जाने वाले कोलेंग में कलेक्टर रजत बंसल और एसपी दीपक झा ने रात बिताई. आजादी के 72 साल बाद बस्तर के कलेक्टर और एसपी कोलेंग गांव पहुंचे और ग्रामीणों का हाल चाल जाना. दोनों अधिकारियों ने ना केवल ग्रामीण परिवेश को समझा, बल्कि उनके घर में रात बिताकर ग्रामीण भोज भी किया.
बस्तर जिले का कोलेंग इलाका नक्सलियों की राजधानी मानी जाती है. इस इलाके में आना चुनौतीपूर्ण है. नक्सलियों के गढ़ में कलेक्टर रजत बंसल और पुलिस अधीक्षक दीपक झा पहुंचते ही यहां के छात्रों के साथ क्रिकेट खेला और ग्रामीणों का हालचाल जाना. विकास और सुरक्षा को लेकर चर्चा की. बस्तर का कोलेंग इलाका घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. इस इलाके में दिन में जाने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. गांव पहुंचने के लिए टेढ़े मेढ़े रास्ते नदी नालों को पार करना पड़ता है.
नक्सलियों ने पूरे इलाके में अपना कब्जा जमा लिया है. यही कारण है कि इलाका अब भी विकसित नहीं हो पा रहा है. मगर जिला और पुलिस प्रशासन का एक ही लक्ष्य है. बस्तर के आखरी छोर तक विकास सुरक्षा पहुंचे और लोगों की परेशानियां खत्म हो. बस्तर के युवा अधिकारी कलेक्टर रजत बंसल और एसपी दीपक झा अपने काम पर भरोसा करते है. इसी लिये दोनों की जुगलबंदी दुरस्त गांव पहुँच जाती और ग्रामीणों से रूबरू कर उनकी समस्या सुनकर समाधान ढूंढा जाता है. इससे पहले भी दरभा इलाके के गांव में दोनों अधिकारी गांव में रात रुक कर ग्रामीणों की समस्या जान चुके है और उनके समस्याओं का निराकरण भी कर चुके है.
इसी तरह ग्राम कोलेंग में दोनों अधिकारियों ने रात बिताई और ग्रामीणों का दिल जीत लिया. कलेक्टर एसपी ने ग्रामीणों के साथ बैठकर बस्तर का भोजन भी किया और ग्रामीणों के साथ चर्चाएं की. विकास सुरक्षा की बातें की. आजादी के बाद अविभाजित बस्तर में 50 के दशक में कलेक्टर रहे आरसीवीपी नरोन्हा आदिवासियों के बीच जाकर उनसे समझकर काम करना पसंद करते थे. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीजापुर जिले में एक गांव का नाम ही नरोन्हापल्ली रख दिया गया है. बंसल कहते हैं कि शासन की योजनाओं को अंतिम गांव तक ले जाना, ग्रामीणों को उनका लाभ दिलाना और आदिवासी संस्कृति को समझना उनके दौरे का मकसद रहता है. इस दौरान जगदलपुर विधायक रेखचंद जैन भी उनके साथ मौजूद रहे.