पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबंद। मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2011 में महाशीर को राज्य मछली घोषित किया था. यह दुर्लभ महाशीर मछली गरियाबंद जिले के सिकासेर बांध के पानी में पल रहे है, जिससे राज्य सरकार बेखबर है. जबकि 5 वर्ष पहले महाशीर की पहचान करने वाली निजी संस्था का दावा है कि प्रदेश का यह इकलौता स्थान है, जहां महाशीर मौजूद है. लेकिन सरक्षंण के अभाव में इसकी संख्या तेजी से घट रही है.
सिकासेर जलाशय न केवल अपने प्राकृतिक अनुपम छटा को लेकर विख्यात है, बल्कि यहां पाए जाने वाले एक खास प्रजाति के मछली महाशीर की उपस्थिति इसे खास बनाती है. पश्चिम घाटी और हिमालय में मौजूद जलधाराएं, नर्मदा नदी में इसकी उपस्थिति दर्ज किया गया था. वन्य प्राणियों के सवर्धन पर इस इलाके में काम कर रही एनजीओ (नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी) ने 2016 में इस प्रजाति की मौजूदगी सिकासेर जलाशय में होने की पुष्टि की थी. संस्था के अध्यक्ष एम सूरज ने बताया कि बाजार में बिकने आई मछलियों को देखकर दुर्लभ होने की आशंका हुई और अध्ययन करने पर पता चला की यह दुर्लभ महाशीर मछली है.
किया जाएगा अध्ययन
इस मछली की उपप्रजाति जानने संस्था द्वारा इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के साथ काम किया जा रहा है. सूरज ने बताया कि वन विभाग को इसकी प्रारंभिक पहचान रिपोर्ट सौंपा गया है. आगे विस्तृत अध्ययन के लिये अनुमति मांगी गई है. ताकि
भारत में पाए जाने वाले महाशीर के 16 उप प्रजाति के में यह कौन से उप्रजाति के श्रेणी में आता है, इसका पता लग सके. इसकी पहचान होना बाकी है.
मप्र में मिला है राज्यकीय मछली का दर्जा
मध्यप्रदेश सरकार ने 2011 में महाशीर को राज्यकीय मछली का दर्जा दिया हुआ है. मामले में मतस्य विभाग की उपसंचालक मधु खाखा ने कहा कि महाशीर की कोई जानकारी विभाग के पास मौजूद नहीं है. वैसे भी सिकासेर में मछली पालन का काम मतस्य महासंघ देखती है. मतस्य महासंघ के प्रबन्धक एस के साहू ने कहा कि अभी केवल मत्स्याखेट का ही काम देखते है. पालन या सवर्धन को लेकर कोई गाइडलाइन प्राप्त नहीं है.
इन्हें तेज बहाव है पसंद
जंगलों के परिस्थितिक तंत्र में बाघ का जो दर्जा होता है. पानी में उसी तरह का दर्जा महाशीर को प्राप्त है. इसे टाइगर फिश के नाम से भी जाना जाता है. मछुवारे बाढ़स व स्थानीय लोग इसे खुसेरा कहते हैं. बाढ़ के समय यानी बारिश में यह मछली तेज बहाव के विपरीत छोटे नालों में चाढ़ती और चट्टानों के नीचे ये प्रजनन करते हैं. सिकासेर जलाशय के बहाव वाले इलाके में इन्हें ज्यादातर देखा जाता है. जल के पारिस्थितिक तंत्र को सन्तुलित करने में इनका अहम योगदान होता है. यह 15 किलो से भी अधिक वजन की हो सकती है. शक्तिशाली मछली होने के कारण इसे सामान्य जाल में नहीं फंसाया जा सकता है.
तेजी से घट रही संख्या
शिकार करने वाले ग्रामीण व मछली के बीच रहकर लगातार काम कर रही नोवा नेचर संस्था का दावा है कि पिछले एक दशक में इसकी संख्या काफी कम हो गई है. कारण बताया कि इसका सवर्धन नहीं हो रहा है. खाने में अन्य मछलियों की तुलना में ज्यादा स्वादिष्ट होता है. मछली चतुर और बलसाली होता है, पर प्रजनन काल में शक्ति शिथिल होता है. इसी समय आसानी से इसका शिकार कर दिया जाता है. यही वजह है कि इसकी संख्या तेजी से घट रही है. यदि इनके संरक्षण के लिए समय रहते ठोस पहल नहीं किया गया, तो आने वाले समय में महाशीर एक कहानी बन कर रह जाएगा.