रायपुर। आईएमए की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने सरकार के मिक्सोपैथी के आदेश के विरोध में 1 से 14 फरवरी तक देशभर में क्रमिक भूख हड़ताल का आह्वान किया है. आईएमए छत्तीसगढ़ की विभिन्न शाखाएं भी इस क्रमिक भूख हड़ताल में भाग लेगी. 1 फरवरी को हड़ताल पर डॉ राकेश गुप्ता अध्यक्ष हॉस्पिटल बोर्ड रायपुर, डॉ विकास अग्रवाल अध्यक्ष आईएमए रायपुर, पूर्व अध्यक्ष डॉ अनिल जैन, मानद सचिव डॉ आशा जैन के साथ समस्त कार्यकारिणी के सदस्य बैठेंगे.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर इसका प्रारंभ आईएमए छत्तीसगढ़ के प्रांत अध्यक्ष डॉक्टर महेश सिन्हा के नेतृत्व में 1 फरवरी को सुबह 11 बजे चिकित्सा महाविद्यालय के परिसर से करेगी. इस आयोजन के दौरान कोविड सुरक्षा नियमों का अनुपालन करते हुए सारी प्रक्रिया की जाएगी. बाद में आईएमए के सभी सदस्य अपने कार्यस्थल से यह प्रक्रिया जारी रखेंगे. प्रत्येक दिन 5 लोग इस प्रक्रिया में भाग लेंगे.

केंद्र सरकार ने विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को मिलाने तथा विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों जैसे आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी इत्यादि को आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति से इलाज करने एवं ऑपरेशन तक की अनुमति दी है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन स्वास्थ्य सेवाओं की सभी पद्धतियों का सम्मान करता है, लेकिन इनके आपसी मिश्रण का विरोध करता है. हर पद्धति में बीमारी की पहचान तथा इलाज के सिद्धांत बिल्कुल अलग हैं. एक चिकित्सक द्वारा एक ही पद्धति के संपूर्ण ज्ञान प्राप्ति में वर्षों बीत जाते हैं, तब भी वह ज्ञान संपूर्ण नहीं होता. ऐसे में यदि इन चिकित्सकों को सभी पद्धतियों का मिश्रित इलाज करने की अनुमति दी जाए तो, यह खिचड़ी चिकित्सा पद्धति होगी और आम जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होगा.

एलोपैथी में स्नातक एमबीबीएस छात्र जब तक सर्जरी में तीन साल की एमएस  की डिग्री ना ले, तब तक वे सर्जरी नहीं कर सकते. ऐसी स्थिति में अन्य पद्धति के डॉक्टर मात्र कुछ महीनों की सामान्य ट्रेनिंग के बाद सर्जरी कैसे कर पाएंगे.

क्या आम जनता का जीवन बहुत सस्ता है या उसका कोई महत्व नहीं है, जो इस तरह की खिचड़ी चिकित्सा पद्धति अर्थात मिक्सोपैथी के द्वारा अधूरे ज्ञान वाले चिकित्सक उत्पन्न कर समाज में फैलाने की कोशिश की जा रही है, जो लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है तथा पूर्णतया असुरक्षित, अवैज्ञानिक एवं जीवन के लिए खतरनाक है. अन्य पद्धतियों को उनके मूल रूप में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उनका प्रयोग उनके विशेषज्ञों द्वारा ही किया जाना चाहिए. यह अधिकार जनता के पास होना चाहिए कि वह अपना इलाज किस पद्धति से करवाना चाहती है.