पं. दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष में उनके चिन्तन, विचार, कृतत्व एवं व्यक्तित्व पर विविध माध्यमों से चर्चाएं चली है तथा अनेक प्रकार के आयोजन हुए है। कुछ उनका प्रसंग इस प्रदेश से भी जुड़ा हुआ है जिसका प्रभाव कालांतर मे काफी समय तक हआ है, इसमें से एक प्रसंग का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है.

धमतरी विधानसभा क्षेत्र से 1967 के चुनाव में रिकार्ड मतों से विजय प्राप्त करने वाले पंढरीराव कृदत्त जनसंघ के विधायक तथा विधानसभा में विरोधी दल नेता भी थे। मध्यप्रदेष में पं. द्वारका प्रसाद मुख्यमंत्री थे, जब विधानसभा में एक मिथ्या आरोप को लेकर पंढरीराव कृदत्त उत्तेजित हो गये और अपनी चप्पल निकालकर द्वारका प्रसाद मिश्र पर फेंक मारी। बहुत हंगामा हुआ, उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। सभी लोग चिंतित थे, कार्यकर्ताओं को लगता था कि जनसंघ का नाम बदनाम हो रहा है। जब यह सूचना पं. दीनदयाल उपाध्याय को दी गई तो वे अपने सारे कार्यक्रम स्थगित कर सीधे भोपाल आ गये। यहाँ उन्होंने विधायक दल की बैठक ली और कहा कि कभी-कभी ऐसी घटनाएं घट जाती हैं, लेकिन इनसे निराष होने की जरूरत नहीं। आखिर ऐसी परिस्थितियाँ ही क्यों बनी की जूता फेंका गया। क्या इस पहलू को अनदेखा किया जा सकता है। उत्तेजना में अतिरेक के कारण गलती हो जाती है। यह उत्तेजना भी पं. द्वारका प्रसाद जी द्वारा पैदा की गई थी, इसलिए घबराने के बजाय सारे प्रदेष में पंढरीराव को घुमाओं, दौरा कराओ और जनता के बीच स्थिति स्पष्ट करो तथा भविष्य में ऐसा न हो इसका ध्यान रखो.

पंडितजी की बातें सुनकर कार्यकर्ताओं को संबल मिला और वे निराषा के वातावरण से बाहर निकले। पंढरीराव को सारे प्रदेष में घुमाया गया। जनता में पं. द्वारका प्रसाद मिश्र की कार्यषैली को लेकर नाराजगी थी, उसके कारण पंढरीराव कृदत्त का समूचे प्रदेष में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। वास्तव में जिस कारण जनसंघ के लोग तत्कालीन समय में विपत्ति समझ रहे थे वह पं. दीनदयाल जी द्वारा सुझाये मार्ग के कारण आगे जनसंघ के कार्य को बढ़ाने और जन-जन तक पहुँचाने में वरदान सिद्ध हुआ.

पं. दीनदयाल उपाध्याय की साहसभरी हुंकार

सन् 1967-68 में अनेक प्रदेषों में संविद सरकारें बनीं। इन सरकारों में कांग्रेस से टूटे नेता- जनसंघ–वामदल-समाजवाद आदि दलों ने मिलकर सरकार का गठन किया। एक समय उक्त सरकार में सम्मिलित सभी जनसंघ मंत्रियों की एक बैठक भोपाल में आयोजित की गई। उस बैठक में सत्ता के कारण आने वाली बुराइयों पर चर्चा हुई। भ्रष्टाचार पर भी उस अवसर पर अपने मार्गदर्षन में पं. दीनदयाल जी ने कहा कि यह सच है कि सत्ता भ्रष्ट करती है। अस संबंध में पूरी दक्षता बरतनी होगी। यदि इसके बाद भी जनसंघ में भ्रष्टाचार आ जाता है तो हम उसे विसर्जित कर नया जनसंघ बनायेंगे.

पं. दीनदयाल उपाध्याय जी कई अवसरों पर भोपाल आये और जनसंघ को मजबूती प्रदान करने के लिए कार्यकर्ताओं का आत्मबल बढ़ाते रहे। वे मध्यप्रदेष में होषंगाबाद के पास टिमरनी जैसे छोटे-छोटे स्थानों पर भी अनेक अवसरों पर जाते रहें हैं। टिमरनी में पण्डितजी भाऊ साहब भुस्कटे के यहाँ जाया करते थे जो तत्कालीन समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत पदाधिकारी थे। उनसे मिलकर वे जहाँ राज्य के विकास के लिए राजनीतिक स्तर पर जनसंघ की भूमिका पर विर्मष करते, वहीं सामाजिक स्तर पर पार्टी कार्यकार्ताओं के माध्यम से क्या-क्या किया जाना संभव हो सकता है उस पर चर्चायें किय करते थे.

अपने संस्मरण में मध्यप्रदेष के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा कहते हैं कि 1957 में मध्यप्रदेष के मंदसौर जिले से तीन विधायक चुने गये थे। श्री विमल कुमार चौरडिया, स्व. श्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा और मैं स्वयं। सारे मध्यप्रदेष में जनसंघ के कुल 11 विधायक चुने गए थे। हमने तय किया कि जनसंघ का जिला सम्मेलन मेरे निर्वाचन क्षेत्र मनासा के रामपुरा नगर में किया जाना चाहिए और उसमें पंडित जी को बुलाएं, ऐसा तय करके मैं उनसे मिलने के लिए गया और उन्हें निवेदन किया। वे तो बड़ी सरलता से और सहज तैयार हो गए तथा आने की स्वीकृति दे दी। वे दिल्ली से चलकर झालावाड़ रोड स्टेषन पर उतरे और बस से रामपुरा आ गये। रामपुरा में पंडितजी का प्रेरणास्पद उद्बोधन हुआ। दूसरी बार मैंने पं. दीनदयालजी को मंदसौर जिला सम्मेलन में बुलाया, वे वहाँ आये और उनके मार्गदर्षन के बाद क्षेत्र में जनसंघ का काम अधिक तेजी से बढ़ा.

पंडितजी के बारे में अपने संस्मरण सुनाते हुए प्रदेष के पूर्व मुख्यमंत्री तथा भोपाल से सांसद रहे कैलाष जोषी का कहना है कि 1954 में देवास जिले के संगठनात्मक चुनाव संपन्न हुए। जिसमें मुझे जिले का मंत्री चुना गया। जिला कार्यसमिति की प्रथम बैठक में यह निर्णय लिया गया कि जिला कार्यकर्ता सम्मेलन मेरे गृहनगर हाटपिपलिया में किया जाना चाहिए। जब मेरे द्वारा यह बात ठाकरेजी को बताई गई तब उन्होंने तिथि निर्धारित कर सूचित करने को बताया। कुछ दिन बात ठाकरेजी का संदेष मिला कि सम्मेलन की तिथि 22 दिसंबर 1955 निर्धारित की गई है। उसमें पं. दीनदयालजी भाग लेंगे। तय समय पर ठाकरेजी स्वयं पंडितजी को लेकर कार्यक्रम स्थल पर आये। अपने भाषण में दीनदयालजी ने ग्रामीण भारत का स्वरूप कैसा होना चाहिए इसकी बोधगम्य भाषा में विस्तृत विवेचना की। वे रात्रि में रूके और दूसरे दिन 23 दिसंबर को बगाली पहुंचे। जहाँ सार्वजनिक सभा में बगाली नगरपालिका द्वारा उन्हें मानपत्र दिया गया.