सुप्रिया पांडे,रायपुर। राजधानी के वीआईपी स्टेट समीप एसएमसी अस्पताल में 66 वर्षीय मरीज का सफल इलाज हुआ है. मरीज को सांस फूलने की समस्या थी. 4 दिन पहले ही मरीज की एंजियोग्राफी की गई. मरीज के ह्रदय की धमनियों की दो नालियों में ब्लॉकेज पाया गया. एक धमनी में 90 और दूसरे में 99 प्रतिशत ब्लॉक था, उम्र ज्यादा होने की वजह से मरीज की दोनों धमनियों में कैल्शियम जमा हुआ था. ऐसे प्रकरण में रोटाब्लेशन एथ्रेक्टॉमी की जाती है, जिसका इलाज राज्य में सिर्फ एस.एम.सी. अस्पताल में ही उपलब्ध है.

रोटाब्लेशन करने में तकनीकी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. रोटाब्लेशन एथ्रेक्टॉमी की यंत्र बहुत ही पतली होती है, जिसे मुलायम तार के ऊपर धमनी में डाला जाता है. ये प्रकरण थोड़ा अलग था. लंबे समय से धमनियों के ब्लॉक होने की वजह से ब्लॉक काफी कठोर हो चुका था. जिस वजह से इलाज के लिए मोटे तार का उपयोग करना पड़ा. इसके बाद 1 मिलीमीटर का गुब्बारा, 0.5 मिलीमीटर माइक्रोकैथेटर का उपयोग किया गया, लेकिन ब्लॉक आगे ही नहीं जा पाया.

ब्लॉक के कैल्शियम को रोटाब्लेशन से कैसे दूर किया जाए, ये समस्या सामने आ रही थी. जिसके लिए एक नए यंत्र का उपयोग किया गया. जिसे टोरनस भी कहा जाता है. टोरनस के सामने आठ स्टील की परत होती है. ये यन्त्र ब्लॉकेज और कैल्शियम में रास्ता बनाकर आगे बढ़ता है.

इस प्रकरण में टोरनस यंत्र का उपयोग किया गया. जिससे मरीज का इलाज सफल हुआ. इस प्रक्रिया को हमने टोरनो-रोटा प्लास्टी नाम दिया है. इस तरह से ये मध्य भारत का पहला ऐसा प्रकरण है, जहां टोरनो-रोटा प्लास्टी थेरेपी से इलाज किया गया. मरीज का इलाज डॉ एस.एस. मोहंती, डॉ सतीश सूर्यवंशी, डॉ भारत अग्रवाल, डॉ अजय चौरसिया डॉ तुषार मालेवर और कैथ लैब की टीम के द्वारा किया गया.

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