रायपुर। तेरापंथ धर्मसंघ के मर्यादा महोत्सव के समापन पर जैनम मानस भवन में हर ओर अनुशासन, मर्यादा के घोष गुंजायमान होते रहे। पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा कि आध्यात्मिकता से ही आत्मकल्याण संभव है। रागद्वेष से मुक्ति और भवसागर से पार होने का यही रास्ता है। आचार्य प्रवर ने समवसरण के अवसर पर जब लगभग 250 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु द्वारा लिखे गए मर्यादा पत्र का परिषद में वाचन किया और सभी साधु-साध्वियों ने पावन शरण सूत्रों का उच्चारण किया तो यह दृश्य देखकर पूरी परिषद धन्यता का अनुभव कर रही थी। साधु-साध्वियों एवं समणीवृंद का सामूहिक गीत सबके आकर्षण का केंद्र बना। मर्यादामय जीवनोपयोगी शिक्षा संदेशों एवं अनेक घोषणाओं के साथ रायपुर में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के सबसे वृहद वार्षिक महोत्सव का ऐतिहासिक समापन हुआ।

आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा कि धर्मसंघ की सर्वोच्च मर्यादा है कि सर्व साधु-साध्वियां एक आचार्य की आज्ञा में रहे। सभी संघ के अनुशासन की आज्ञा में रहे यह जरूरी है। साधु के पांच महाव्रत – अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रम्हचर्य व अपरिग्रह तो अमूल्य रत्न है। जिसने इन्हें प्राप्त कर लिया उसके सामने दुनिया का कोई भी धनाड्य छोटा है। आत्म, संघ, आज्ञा, आचार, मर्यादा ये पांच निष्ठामृत है। इनके संस्कार हमारे में रहे। गुरु आज्ञा में कभी भी तर्क नहीं होना चाहिए। मुझे गौरव है कि हमारे धर्मसंघ में साधु-साध्वियां कितनी आज्ञा पालन में जागरूकता रखते हैं और श्रावक समाज भी आज्ञा के प्रति निष्ठावान रहता है इसका मुझे नाज है। तेरापंथ में सभी एक आचार्य के शिष्य होते हैं। आचार्य जिसे अपना उत्तराधिकारी बनाते हैं उसे सभी सहर्ष स्वीकार करते है। जीवन में मर्यादा हो, अनुशासन हो तो जीवन का महत्व है। यह महोत्सव में मर्यादा की प्रेरणा देने वाला है।

धर्मसंघ के नाम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण ने पावन संदेश देते हुए कहा- विक्रम संवत 1817 आषाढ़ी पूर्णिमा को तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना हुई। वर्तमान में 261 वर्ष चल रहा है। महामना आचार्य श्री भिक्षु द्वारा प्रवर्तित यह धर्मसंघ आज हमारे लिए कल्पतरु बना हुआ है। इस के साए में हम सभी आत्म साधना कर रहे हैं। विक्रम संवत 1859 माघ शुक्ला सप्तमी को लिखा गया यह मर्यादा पत्र सिर्फ एक पन्ना नहीं है यह हमारा गण छत्र बना हुआ है। इस पत्र में लिखित मर्यादाएं हमारे लिए विशिष्ट सम्मानीय है। हम मर्यादा महोत्सव के प्रणेता श्रीमज्जयाचार्य के आभारी हैं यह महोत्सव हमारे संघ के लिए वरदान है। मैं आज अतीत के सभी पूर्वाचार्यों का वन्दन करता हूं। जिन्होंने संघ को सदा आगे बढ़ाया, इसकी सुरक्षा की और अनुशासना कि। हमारा धर्मसंघ कोई राजनीतिक या सामाजिक संगठन नहीं है यह आध्यात्मिक संगठन है। अध्यात्म साधना के लिए हमने संघ की शरण स्वीकार की है। हमारा आकर्षण भौतिकता की और ना होकर आत्मा के प्रति होना चाहिए। आत्मनिष्ठा के भाव हमारे भीतर हो। प्राण चले जाए परंतु हम आत्मनिष्ठा को ना छोड़े। हमारे धर्मसंघ की विशेषता है कि सभी में एक आचार, विचार और एक मान्यता है। सर्वोच्च नेतृत्व आचार्य का होता है। हमारी यह आचार, विचार और आचार्य की त्रिआयामी एकता सदा अक्षुण्ण बनी रहे। स्थिति और परिस्थितियां कैसी भी आ सकती है परंतु यह संघ हमारा आसरा है। संघ निष्ठा में कभी कमी नहीं आनी चाहिए।

अनुशासन और मर्यादा से बढ़ेगी गरिमा

पावन उद्बोधन देते हुए साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने कहा – तेरापंथ अनेक की विशेषताओं का समवाय है। सबसे बड़ी विशेषता ये है कि यहां एक आचार्य का नेतृत्व है। हम भगवान महावीर से वर्तमान युग तक जैन परंपरा को देखें, इतिहास को देखें तो शायद ही ऐसा कोई धर्मसंघ होगा जिसमें यह विधान हो कि सब साधु-साध्वी एक आचार्य की आज्ञा में रहे। आचार्य भिक्षु की गहरी सूझबूझ थी जो उन्होंने यह मर्यादा बनाई। आज तेरापंथ का अनुशासन और मर्यादा सकल विश्व में धर्मसंघ की गरिमा बढ़ा रहा है। हर कोई यह देख आश्चर्यचकित होता है कि थोड़े ही समय में तेरापंथ ने कितना विकास कर लिया। जयाचार्य द्वारा प्रारंभ किया गया यह महोत्सव हमारी मर्यादानिष्ठा को बढ़ाने वाला महोत्सव है। धर्मसंघ को दीर्घजीवी बनाने के लिए मर्यादाएं जरूरी है। हम अतीत के आचार्यों से प्रेरणा लें कि उन्होंने धर्मसंघ की श्रीवृद्धि में कितना बड़ा योगदान दिया।

आचार्यवर ने खोला घोषणाओं का पिटारा 

महोत्सव में आगामी चातुर्मास एवं मर्यादा महोत्सव के प्रवेश की घोषणा करते हुए गुरुदेव ने 18 जुलाई 2021 को भीलवाड़ा चातुर्मास हेतु प्रवेश एवं 20 नवंबर को वहां से विहार की घोषणा की। 2022 बीदासर मर्यादा महोत्सव हेतु 4 फरवरी को प्रवेश की घोषणा की।

आगामी दीक्षा समारोह की घोषणा 

शांतिदूत श्री महाश्रमण ने आगामी दीक्षा समारोह की घोषणा करते हुए 28 मई 2021 उज्जैन में समण सिद्धप्रज्ञ जी का श्रेणी आरोहण एवं मुमुक्षु मुकेश, मुमुक्षु अनुप्रेक्षा को दीक्षा देने की घोषणा की। साथ ही 23 अप्रैल को मुमुक्षु स्नेहा और 15 सितंबर भीलवाड़ा में समणी शीलप्रज्ञा जी का श्रेणी आरोहण व मुमुक्षु सुरभि, मुमुक्षु पूजा एवं मुमुक्षु प्रेक्षा संचेती को दीक्षा देने की घोषणा की। कार्यक्रम में साधु साध्वियों के इस वर्ष के चातुर्मास की घोषणा भी की गई।

इस अवसर पर गुरुदेव ने दीक्षा के 75 वर्ष पूर्ण होने पर मेवाड़ में स्थित ‘शासन श्री’ मुनि हर्षलाल जी, साध्वीश्री धनकुमारी जी, साध्वीश्री मानकुमारी जी के प्रति मंगलकामना करते हुए आगे भी अध्यात्म साधना में बढ़ने का आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही इस वर्ष देवलोकगमन को प्राप्त साधु-साध्वियों के प्रति पूज्यप्रवर ने भावांजलि व्यक्त की।