सुप्रिया पांडेय, रायपुर। मोह-माया में बंधे सांसारिक जीवन को त्याग कर त्याग और तप का जीवन अपनाने वाले तीन दीक्षार्थियों को आचार्य महाश्रमण ने आज दीक्षा दी. इस दौरान दीक्षार्थियों को आचार्य महाश्रमण ने संदेश दिए कि उन्हें हमेशा ही संयम रखना होगा. कार्यक्रम का आयोजन राजधानी के जैनम मानस भवन में किया गया था.
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि दु:ख मोह और वैराग्य रहित दीक्षा होती है. जो संयम में होता है उसका जीवन श्रेष्ठ होता है. संयम पर्याय देव लोक के समान है. सामान्य कथन है कि स्वर्ग में ज्यादा सुख होता है, लेकिन देवों से भी ज्यादा सुख साधु को मिलता है. साधु जीवन में रम जाना महत्वपूर्ण बात होती है. भारत एक धर्म सम्प्रदाय देश है, यहां सभी धर्मों में अपने-अपने ढंग से दीक्षा होती है. जैन धर्म भी एक प्राचीन धर्म है.
आचार्य ने बताया कि जैन धर्म के दो प्रकार है. दिगम्बर – वे साधु जिनके शरीर पर कोई वस्र नहीं वो दिगम्बर हो गए। दूसरा श्वेताम्बर- सफेद कपड़े रखने वाले साधु शेताम्बर हो गए. श्वेताम्बर पंरपरा में भी दो विचारधाराएं हैं. मूर्ति पूजक विचारधारा अर्थात जो मूर्ति पूजा में विश्वास करते है, दूसरा अमूर्ति पूजक विचारधारा इसका अर्थ ये है कि वे मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते.
हम अमूर्ति पूजक विचारधारा को मानते हैं, हम तेरापंथ सम्प्रदाय के हैं. हमारे प्रथम गुरु आचार्य भिक्षु की परम्पराए चलती आ रही है. तेरापंथ नाम में भी विश्लेषात्मक विचारधाराएं हैं. तेरापंथ में कई बार दीक्षाएं होती है.. अधिकांश दीक्षाएं धर्म संघ में आचार्य देते हैं. दीक्षा लेने से पूर्व लिखित रूप से माता-पिता से आज्ञा ली जाती है, और जो माता-पिता अपनी संतान को संघ को समर्पित करते हैं, उससे बड़ी भिक्षा कोई और नहीं हो सकती.
इसी के साथ आचार्य महाश्रमण ने दीक्षार्थियों के नामकरण भी किए मुमुक्षु राहुल बुरड़ का नाम मुनि रत्नेश कुमार रखा गया, साथ ही दीक्षा लेने वाली साध्वियों का भी नामकरण किया गया. समणी ओजस्वी प्रज्ञा का नाम बदलकर साध्वी ओजस्वी प्रभा तथा मुमुक्षु चंदनबाला को अब साध्वी चेतस्वी प्रभा के नाम से पुकारा जाएगा.
दीक्षार्थियों को आचार्य महाश्रमण ने कहा कि अब उन्हे साधु जीवन जीना होगा, जिसके लिए उन्हे संयम पूर्वक चलना, खड़ा रहना, बैठना, तथा भोजन करना होगा. साधुओं का ज्यादा बोलना व कड़वी भाषा का प्रयोग करना भी वर्जित है. इन्ही बातों के साथ आचार्य ने दीक्षार्थियों को अपनी शरण में लिया. कार्यक्रम के आयोजक महेंद्र धाड़ीवाल ने कहा कि आचार्य के आने से रायपुर जैन समाज और जैनम परिसर धन्य हो गया, रायपुर में पहली बार दीक्षा हुई, उड़ीसा व बस्तर के भाइयों ने अपने बच्चों को दीक्षा दिलाई है.