रायपुर। फेसबुक पर अपने पोस्ट से पूरे प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मचाने वाली सेंट्रल जेल रायपुर में डिप्टी जेलर के पद पर पदस्थ वर्षा डोंगरे के खिलाफ डीजी जेल गिरधारी नायक ने जांच कमेटी बना दी है. सेंट्रल जेल प्रभारी आर आर राय को जांच की जिम्मेदारी दी गई है. राय उनकी फेसबुक पर सभी पोस्ट की जांच करेंगे. इससे पहले राज्य सरकार ने उनकी पोस्ट को लेकर उन्हें नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है.
कौन है वर्षा डोंगरे
छत्तीसगढ़ में पीएससी के परीक्षाफल में गड़बड़ी को लेकर पहले उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट में सरकार को सुश्री डोंगरे कठघरे में खड़ी कर चुकी है. उनकी याचिका पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 2003 में छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग परीक्षा में भर्ती और भ्रष्टाचार के मामले में नए सिरे से मेरिट लिस्ट तैयार करने और इसके बाद अपात्र लोगों को नौकरी से बर्खास्त करने के आदेश दिये थे.
क्या लिखा है फेसबुक पर वर्षा डोंगरे ने
मुझे लगता है कि एक बार हम सबको अपना गिरेबान झांकना चाहिए. सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी. घटना में दोनों तरफ से मरने वाले अपने देशवासी है. भारतीय हैं, इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है. पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में लागू करवाना. उनके जल-जंगल-जमीन को बेदखल करने के लिए गांव का गांव जला देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिला नक्सली हैं या नहीं इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है. टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान पांचवीं अनुसूची के अनुसार सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन को हड़पने का.आखिर ये सब कुछ क्यों हो रहा है? नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए. लगता नहीं.“सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है. आदिवासी जल-जंगल-जमीन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है. वे नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं. उन्हें फर्जी केसों में चारदीवारी में सड़ने के लिए भेजा जा रहा है, आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाए? ये सब मैं नहीं कह रही बल्कि सीबीआई रिपोर्ट कहती है. सुप्रीम कोर्ट कहती है. जमीनी हकीकत कहती है. जो भी आदिवासियों की समस्या का समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानवाधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार…उन्हें फर्जी नक्सली केसों में जेल में ठूंस दिया जाता है. अगर आदिवासी क्षेत्रों में सब कुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है? ऐसा क्या कारण कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता है.”“मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 साल की माड़िया- मुड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिन्हें थाने में महिला पुलिस को बाहर कर नग्न कर प्रताड़ित किया गया था. उनके दोनों हाथों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाया गया था. जिसके निशान मैंने स्वयं देखे. मैं भीतर तक सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टॉर्चर किए गए. मैंने डॉक्टर से उचित उपचार और आवश्यक कार्रवाई के लिए कहा.”उन्होंने लिखा है, “हमारे देश का संविधान और कानून किसी को यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें. इसलिए सभी को जागना होगा. राज्य में पांचवीं अनुसूची लागू होनी चाहिए. आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए. उन पर जबरदस्ती विकास न थोपा जाए. जवान हो किसान सब भाई-भाई है. अत: एक-दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और न ही विकास होगा. संविधान में न्याय सबके लिए है.”
“हम भी सिस्टम के शिकार हुए, लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े. षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई. प्रलोभन और रिश्वत का ऑफर भी दिया गया. हमने सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई, आगे भी होगी.”
वर्षा की इसी पोस्ट को लेकर हड़कंप मचा हुआ है. इस पोस्ट की शिकायत मुख्य सचिव विवेक ढांढ से की गई जिसके बाद सरकार ने नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. उसके बाद डीजी जेल गिरधारी नायक ने जांच कमेटी बिठा दी है.