पुरुषोत्तम पात्रा, गरियाबंद। देवभोग तहसील के चिचिया में बन रहे गोठान प्रदेश का इकलौता एसा गोठान था जो लंबे समय से जमीन विवाद के कारण अधर में लटका हुआ था. दशरथ गोड़ द्वारा वर्षों से काबिज जमीन पर बगैर किसी समझौता के सरपंच गोठान बनाने अड़ा था. दोनों पक्षों ने बीते 4 माह में मामला कलेक्टर तक लेकर पहुंचे थे. लेकिन सरपंच राजकुमार की हठ धर्मिता के चलते मामला सुलझ नहीं रहा था.

परेशान दशरथ व उसकी पत्नी 19 फरवरी को दौरे पर आए पीसीसी चीफ मोहन मरकाम के समक्ष शरणागत हो गए. रोते हुए इस गरीब दंपति ने बताया था कि 30 साल से चीचीया के खसरा 1302 के जिस ढाई एकड़ जमीन पर काबिज है. उसी पर सरपंच गोठान बनाना चाह रहा है.

मामले को गम्भीरता से लेते हुए मरकाम ने कलक्टर को निर्देशित किया था. 23 फरवरी को समय सीमा की बैठक में मामले पर समझौतापूर्ण कार्यवाही करने के निर्देश कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने मातहतों को दिया था.

3 घंटे में सुलझ गया मामला, गोठान का निर्माण भी होगा शुरू

तहसीलदार समीर शर्मा अमले के साथ सुबह 9 बजे चीचीया पहुंच गए. पीड़ित दशरथ, अन्य कब्जा धारी व सरपंच राजकुमार की मौजूदगी में कार्यवाही शुरू हुई. शर्मा ने 4 एकड़ रकबे में बनने जा रहे गोठान का रकबा घटवा कर ढाई एकड़ करवा दिया. दशरथ के काबिज जमीन से लगे दूसरे भाग पर गोठान की सीमा तय किया गया. गोठान के दायरे में आने वाले अन्य दो कब्जा धारियों को भी गोठान के लिए भूमि छोड़ने सहमत कर लिया गया. क्योंकि दायरे में आने वाले अन्य कब्जाधारी अपात्र की श्रेणी में थे इसलिए वे मान गए. यह सब कुछ 3 घंटे में तय कर लिया गया. अब दसरथ के काबिज जमीन की समस्या भी सुलझ गई. खुशी दंपति ने पीसीसी चीफ व प्रशासन का आभार माना है.

काबिज खसरे के बजाए दूसरे खसरे का जारी किया था पट्टा

मौके से लौटे तहसीलदार समीर शर्मा ने बताया कि दसरथ खसरा 1302 में 0.89 हेक्टयेर पर काबिज था. पर जिस वक्त उसे वन अधिकार का पट्टा दिया गया था, उसमें खसरा 1276 में 1.70 रकबे का जिक्र था. अभिलेख से अनजान दसरथ को तब्दील रकबे की जानकारी तब हुई जब पंचायत के साथ पटवारी उसके काबिज जमीन पर गोठान बनाने पहुंचा था. चूंकि रिकार्ड में दसरथ की काबिज जमीन खाली नजर आ रहा था, इसलिए गोठान के लिए इस जगह का चयन किया गया था. तहसीलदार ने कहा कि पूर्व में जारी पट्टे को निरस्त करते हुए अब, दसरथ को 1302 खसरे का संशोधित वन अधिकार पट्टा जारी किया जाएगा.