पिछले कुछ सालों से देश का मध्यम वर्ग बड़ी शिद्दत से यह महसूस करने लगा है कि केंद्र सरकार की बहुत सी गैर जरूरी नीतियों की वजह से उसकी जिंदगी में एक तरह से बिखराव सा आने लगा है। उदारीकरण बाजारीकरण और वैश्वीकरण के दौरमे अचानक मध्यम वर्ग की बिगड़ती आर्थिक व्यवस्था चिंता का कारण बनी हुई है। 1991 में उदारीकरण बाजारीकरण और वैश्वीकरण से भारतीय मध्यम वर्गीय परिवारों की जीवनशैली में जो अमूलचूल परिवर्तन आया था पर हाल के कुछ वर्षों में मध्यम वर्गीय समाज पर गैर जरूरी बोझ डालकर सरकार अर्थव्यवस्था को सुधारना चाहती है जो कतई उचित नहीं है। पेट्रोल-डीजल सहित रसोई गैस की आसमान छूती कीमतों ने मध्यम वर्गकी कमर तोड़ दी है। कोरोना कालखंड में रोजगार के संकट से उबरने की कोशिश अभी जारी है और आटा, दाल, तेल, प्याज, रेल किराया सहित आम दैनिक जरूरतों की बेलगाम बढ़ती कीमतों ने मध्यम वर्ग के बजट को तहसनहस कर दिया है। कोरोनाकाल में आधी सैलरी में पूरी जिंदगी जीने की कोशिश में मध्यम वर्ग ठगा-ठगा सा महसूस करने लगा है जैसे कि कोरोना संकट के कारण अर्थव्यवस्था में आई गिरावट से उबरने के लिए वही एकमात्र बलि का बकरा है।

तेल का खेल..

2014 के पहले कांग्रेस की सरकार केंद्र में सत्ता में थी तब भाजपा के लोग डीजल-पेट्रोल/गैस की बढ़ती कीमतों के खिलाफ सड़कों पर बैलगाड़ी, चूल्हे लेकर प्रदर्शन करते थे पर अब तेल-गैस की कीमतों में रिकार्ड वृद्धि के बाद सत्ता सम्हालने वाले भाजपाई खामोश हैं। 2014 अप्रैल में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल 104 रुपये था और पेट्रोल 71 रुपये तथा डीजल 55 रूपये लीटर था। फरवरी 2021 में क्रूड आयल 54 रुपये है और पेट्रोल 100 तो डीजल 90 रुपये प्रति लीटर के आसपास है क्यों….। दरअसल भारत में ईंधन पर 65 फीसदी कर लगता है जिसमें केंद्र तथा राज्य का भी हिस्सा है। केंद्र का उत्पाद शुल्क पेट्रोल पर 32 रुपये 98 पैसेहै तो डीजल पर 31 रुपये 83 पैसे है। राज्यों की औसत दर 15-25 फीसदी है। पड़ोसी राज्य मप्र में पेट्रोल पर 33 प्रतिशत वैट+ 4.5 रुपये/ लीटर वैट+ एक फीसदी सेस हैं तो छत्तीसगढ़ में 25 फीसदी वैट + 2 रुपये लीटर वैट है तो डीजल पर मप्र में 23 फीसदी वेट + 3 रुपये प्रति लीटर वैट और एक फीसदी सेस है तो छग डीजल पर 25 फीसदी वेट+ एक रुपये लीटर वैट है।

वर्ष 2014-15 (मनमोहन सरकारके समय) केंद्र को डीजल- पेट्रोल से उत्पाद शुल्क के रूप में 1.72 लाख करोड़ मिलता था जो 2019-20 में (मोदी सरकार के कार्यकाल में) 94 प्रतिशत बढ़कर 3 लाख 34 करोड़ हो गया है वहीं राज्यों को पहले 1.60 लाख करोड़ मिलता था जो अब 37 प्रतिशत बढ़कर 2.21 लाख करोड़ हो गया है…। छग को पेट्रोल-डीजल से 3877 करोड़ रुपये की वैट से कमाई होती है। एक और उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रूड ऑयल के बढऩे-घटने का तर्क देने वाले भाजपाई नेताओं को यह भी पता होना चाहिए कि पड़ोसी राज्य पाकिस्तान में पेट्रोल-डीजल 51 और 53 रुपये, भूटान में 49. 56 तथा 46.31, श्रीलंका में 61.37 तथा 39.64 तथा नेपाल में पेट्रोल 68.84 रुपये तथा डीजल 65.11 पैसे प्रति लीटर बिक रहा है मतलब साफ है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार सिर्फ भारत को ही पेट्रोलियम की कीमतें प्रभावित करता है अन्य देशों में नहीं…।

रसोई गैस की कीमते 400 रुपये प्रति सिलेण्डर थी अब 769 रुपये के आसपास हो गई है… विपक्ष तो इसके खिलाफ मुखर है पर केंद्र की भाजपा सरकार के मंत्री तथा नेता चुप हैं…।

‘एजिंग वाटर इंफ्रास्ट्रक्चर एन इमर्जिंग ग्लोबल रिस्कÓ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय कनाड स्थित जल, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संस्थान ने तैयार की है जिसमें कहा गया है कि भारत में सन 2025 तक एक हजारसे अधिक बांध 50 वर्ष पुराने हो जाएंगे और दुनिया भर में इस तरह के पुराने ढांचे भविष्य में खतरा बढऩे का कारण बन सकता हैं। रिपोर्ट के अनुसार 50 साल कांक्रीट का बना बांध संभवत: पुराना हो जाता है। उनकी दीवार टूटने का खतरा पैदा हो जाता है,रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अधिकतर पुराने बांधों के रखरखाव का खर्च बढ़ जाता है और उसकी जल भंडारण क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में बांध में किसी तरह की हानि होती है तो उसका असर आसपास की आबादी, बसाहट पर सबसे पहले होगा और इससे जनहानि की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

भारत के 1,115 बड़े बांध 2025 में 50 साल या इससे अधिक पुराने हो जाएंगे। देश में 64 बांध तो 2050 में 150 साल से अधिक पुराने हो जाएंगे। छत्तीसगढ़ में भी पुराने बांधों की संख्या कम नहीं है। धमतरी जिले में माडम या मुरूमसिल्ली बांध 1914 से 1923 के बीच बनाया गया था इसके अलावा जांजगीर-चांपा के अकलतरा में बना रोगदा बांध 1961 में बना था। महानदी में बना गंगरेल बांध भी 1979 बना था। यह 42 साल की उम्र पूरी कर चुका है। 1915 में रूद्री पिकअप बियर बना था। कांकेर जिले का दुधावा जलाशय भी है जो 1965 में बना था। वही हसदेव बांगों बांध परियोजना भी 1961-62 में शुरू हुई थी कहा जाता है कि 1967 में निर्मित यह छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचा (87 मीटर) बांध है। तांदुला परियोजना की स्थापना तो 1910 में हुई थी लेकिन बांध का निर्माण 1920 में हुआ था। बालोद जिले का गोंदली जलाशय 1956, खरखरा सायफन परियोजना 1967, मनियारी परियोजना 1930, खारंग टैक 1931 में बना था। कोटा का अमचवा डेम 1917, भोपाली डेम सरगुजा 1968, दर्रीटोला डेम बालोद 1910, धर्राडेम डोंगरगढ़ 1961, गंगनई डेम पेंड्रारोड 1972, धोंधा डेम (कोटा) 1981, धुधवा डेम 1967 घोंडली डेम बालोद, 1956, जमडीह डेम सूरजपुर 1972 कालीदरहा डेम सरायपाली 1974, केण्डानाला डेम सारंगढ़ 1971, केशवा डेम महासमुंद 1967, खपरी डेम दुर्ग 1908, मनियारी डेम मुंगेली 1930, मयाना डेम कांकेर 1977, नवागांव डेम खैरागढ़ 1961, पेण्ड्रावन डेम 1909, सरोदा डेम कवर्धा 1963, तांदुला डेम बालोद 1912। इसी के साथ ही कुछ और भी पुराने सिंचाई परियोजना भी छत्तीसगढ़ में है। इन पुराने बांधों के रखरखाव पर भी राज्य सरकार को ध्यान देना है। समय रहते एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर इन बूढ़े हो चुके बांधों की वर्तमान हालत पर निगाह रखने की भी जरूरत है।

हाल ही में विधानसभा में छग सरकार ने स्वीकार किया है कि प्रदेश में स्वीकृत पद के विरूद्ध 36 आईएएस, 32 आईपीएस तथा 32 आईएफएस के पद रिक्त हैं। वहीं 2 आईएएस, 4 आईपीएसतथा 2 आईएफएस के खिलाफ जांच चल रही है। इधर राज्य पुलिस सेवा के 16 अफसरों को राज्य सरकार ने तो आईपीएस घोषित कर दिया है पर गृह मंत्रालय में पदस्थ एक प्रशासनिक अफसर तथा एक बाबू की कार्य प्रणाली के चलते 2 साल होने पर भी केंद्र सरकार से बैंच आबंटन नहीं हुआ है।

छत्तीसगढ़ में 17 अफसरों को 6 अक्टूबर 2018 को आईपीएस अवार्ड मिल गया है। पर उन्हें बैच आबंटन अभी तक नहीं हुआ है जबकि मप्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिसा तथा तेलंगाना राज्यों में इनके समकक्ष अफसरों की आईपीएस का बैच केंद्र द्वारा आबंटित कर दिया राज्य सरकारों ने आईपीएस अवार्ड मिलने के बाद तत्काल ही सक्रियता का परिचय देकर केंद्र से आईपीएस बैच भी आबंटित करवा लिया है पर छग में यह प्रक्रिया में 2 साल का विलंब हो गया है। बाद में डीजीपी के एक पत्र के बाद गृहमंत्रालय छग 27 अक्टूबर 2020 के बाद सक्रिय हुआ है। सूत्रों की माने तो गृह विभाग में पदस्थ एक प्रशासनिक अफसर तथा एक बाबू की कार्यप्रणाली के चलते ही यह स्थिति बनी है। मिली जानकारी के अनुसार जिन अफसरों को आईपीएस बैच आबंटित नहीं किया गया है उसमें एमआर अहिरे, दुखुराम आंचला, वीपी राजभानू, सरजूराम सलाम, गोवर्धनराम ठाकुर, तिलक राम कोशिमा, प्रशांत ठाकुर, आजाद शत्रु बहादूर सिंह, डॉ. लाल उम्मेद सिंह, विवेक शुक्ला, शशिमोहन सिंह, राजेश कुकरेजा, श्वेता राजमणि, राजेश अग्रवाल, विजय अग्रवाल तथा रामकृष्ण साहू शामिल हैं। राज्य पुलिस सेवा में लगभग 25 साल कुछ अफसर पूरा भी कर चुके हैं, 96, 97 तथा 98 बैच के डीएसपी हैं। सूत्रों का कहा है कि आईपीएस अवार्ड के बाद बैच आबंटन के लिए समस्त औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 2-3माह का समय लगता है पर छग में तो 2 साल बाद भी बैच आबंटन नहीं होने के पीछे क्या कारण है… दोषियों पर क्या कार्यवाही करना जरूरी नहीं है…।

और अब बस….

0 मानव तस्करी के मामले में देश को 12 वें स्थान पर छत्तीसगढ़ हैं। 10 लाख की आबादी पर 0.43 प्रतिशत लोग इसका शिकार हो रहे हैं।
0 छत्तीसगढ़ में शराबबंदी की चर्चा के बीच पिछले 2 सालोंमें 6279 करोड़ की देशी तथा 5870 करोड़ की विदेशी शराब कोरोना की बंदिश के बाद भी बिकी है।
0 प्रदेश के सबसे वरिष्ठ पूर्व सांसद तथा राज्यपाल रमेश बैस के छत्तीसगढ़ में हाल फिलहाल 2-3 बार आने से भाजपा का कौन नेता परेशान है।