रायपुर। अहिंसा यात्रा द्वारा जन-जन में नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति का संदेश देते हुए छत्तीसगढ में विचरण कर रहे. तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य महाश्रमणजी 15 कि.मी. का पैदल विहार कर खूबचन्द्र बघेल महाविद्यालय भिलाई-3 में पधारे. रास्ते में वे कैवल्य धाम में रुके वहां मूर्तिपूजक खतरगच्छ के मुनि महेन्द्रसागर जी एवं मुनि मनीषसागर जी से कुछ देर आध्यात्मिक चर्चा की.

भिलाई में मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा कि आदमी के जीवन में सुख भी आता है और दुःख भी. आखिर दुःख का कारण क्या? व्यक्ति के भीतर जो आसक्ति, लालसा, तृष्णा होती है वही दुःख का कारण बनती है. जितनी भौतिक सुखों के प्रति कामना होगी वह दुःख पैदा करने वाली बन सकती है. इसलिए इच्छाओं को सीमित करे. बाह्य आकर्षण, लालसा जितनी कम होगी दुःख उतना कम होगा. एक के पास ज्यादा भौतिक पदार्थ नहीं फिर भी मन में शांति है और एक के पास हर संसाधन होने पर भी मन अशांत रहता है. जैसे कोई वाटर फ्रूफ चीज होती है उस पर पानी असर नहीं करता, वैसे ही हम अपने आप को परिस्थिति फ्रूफ बना ले. जब हमारा मन परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होगा तो मन में भी शांति रह पाएगी.

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पूज्यवर ने आगे कहा कि कर भला, हो भला. हम किसी दूसरे को शांति दे, चित्तसमाधि दे तो हमें भी आनंद की प्राप्ति हो सकती है. सुख देंगे तो सुख प्राप्त होगा और दुःख देंगे तो दुःख प्राप्त होगा. भौतिक आकर्षणों को गौण कर व्यक्ति अपने कार्य को अच्छा बनाए. सादा जीवन और हमारे विचार उच्च होने चाहिए. रूप से ज्यादा स्वरूप का महत्व होता है. जिन्दगी कितनी लम्बी जीये उससे ज्यादा महत्व है कि जिन्दगी में काम कितने अच्छे किये. उपयोगिता और गुणों से व्यक्ति की पहचान होती है.

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खूबचन्द महाविद्यालय के प्रिंसिपल सहित शिक्षक एवं छात्राओं ने आचार्य का स्वागत किया. पूज्यवर ने उन्हें जीवन को सुफल बनाने का मार्गदर्शन दिया. आज सायं डॉ खूबचंद बघेल महाविद्यालय से लगभग 4 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री भिलाई के अग्रसेन भवन में पधारें.