नई दिल्‍ली। नोटा (NOTA) को लेकर सालों से चल रही चर्चा के बीच आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच ही गया है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा कि अगर किसी जगह ज्यादातर चुनाव में उम्मीदवारों से ज्यादा अगर चुनाव नोटा को मिलता है, तो क्या चुनाव को रद्द कर क्या नए सिरे से चुनाव होना चाहिए.

नोटा (None of the above) एक विकल्प के रूप में चुनावों में हमारे देश के मतदाताओं को मिला हुआ है. इसके जरिए कोई भी नागरिक चुनाव लड़ने वाले किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने का विकल्प चुन सकता है. हालांकि, भारत में नोटा जीतने वाले उम्मीदवार को बर्खास्त करने की गारंटी नहीं देता है. इस लिहाज से यह एक नकारात्मक प्रतिक्रिया देने की विधि है.  नोटा का कोई चुनावी मूल्य नहीं होता है. नोटा के लिए भले ही अधिकतम वोट हों, लेकिन ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार ही विजेता बनता है.

किसने दायर की थी याचिका

इस पर अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई थी. याचिका में मांग की गई है कि अगर सबसे ज्यादा मत नोटा को पड़ता है, तो उस जगह का चुनाव रद्द होना चाहिए. लोगों के मत का सम्मान होना चाहिए. इस पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो उस जगह से कोई भी उम्मीदवार नहीं जीतेगा. यानी वो जगह खाली रह जाएगी. फिर सांसद या विधानसभा का गठन कैसे होगा.

इसके जवाब में जनहित याचिका दायर करने वाले के अधिवक्ता की ओर से सीनियर अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि अगर नाटो की वजह से चुनाव रद्द होता है, तो वहां समयबद्ध तरीके से दोबारा चुनाव हो सकता है. ऐसे में सब नए उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे. इन सभी सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि नोटा का चुनाव में कोई महत्व होगा या नहीं.