रायपुर. चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार महापर्व चैत्र नवरात्र का आज पहला दिन है. पहले दिन शुभ मुहूर्त में विधिविधान से प्रथम आदिशक्ति मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप का भव्य शृंगार कर पूजा करने के बाद और कलश स्थापना या घटस्थापना की जाती है.

देवी के निमित्त अखंड ज्योति जलाकर भक्त नौ दिन के व्रत का संकल्प लेंगे. घरों और मन्दिरों में नौ दिनों तक श्रद्धापूर्वक मां भगवती की पूजा-अर्चना की जाती है. जप, तप, यज्ञ, हवन, अनुष्ठान करके भक्त महामारी से मुक्ति की कामना कर रहे है. नवरात्रि के पहले दिन आप भी व्रत रखने वाले हैं तो आज हम आपको मां शैत्रपुत्री की पूजा विधि, मंत्र आदि के बारे में बता रहे हैं, जिससे आपको व्रत रखने में आसानी होगी.

कौन हैं मां शैत्रपुत्री

मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री हैं. यह पर्वतराज हिमालय की कन्या हैं. पूर्व जन्म में यह सती के नाम से जानी जाती थीं और प्रजापति दक्ष की कन्या थीं.

मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व

मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को शांति, उत्साह और निडरता प्राप्त होता है. मां भय का नाश करने वाली हैं. इनकी कृपा से व्यक्ति को यश, कीर्ति, धन, विद्या और मोक्ष प्राप्त होता है.

मां शैत्रपुत्री पूजा विधि

प्रतिपदा को कलश स्थापना करके नवरात्रि की पूजा और व्रत का संकल्प करें. इसके बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें. उनको लाल पुष्प, सिंदूर, अक्षत्, धूप, गंध आदि चढ़ाएं. फिर माता के मंत्रों का उच्चारण करें. दुर्गा चालीसा का पाठ करें. पूजा के अंत में गाय के घी से दीपक या कपूर से आरती करें. माता रानी को जिन फलों और मिठाई का भोग लगाया है, उसे पूजा के बाद प्रसाद स्वरूप लोगों में बांट दें.

मां शैलपुत्री मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:

मां शैलपुत्री कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने अपने यहां महायज्ञ में अपने जमाता भगवान शिव और पुत्री सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. बिना निमंत्रण के ही सती अपने पिता के आयोजन में चली गईं और भगवान शिव को निमंत्रण न देने का कारण जानना चाहा. वहां पति शिव के अपमान से दुखी होकर वह स्वयं को यज्ञ वेदी में भस्म कर देती हैं. अगले जन्म में वह पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेती हैं.