जबलपुर। मध्यप्रदेश में कोरोना के रोजाना चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं. इस महामारी में अस्पताल भी आपदा में अवसर तलाश रहे हैं. इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश के जबलपुर में देखने को मिला. यहां एक निजी अस्पताल पर लूट खसूट का आरोप लगा है. अस्पताल ने दो दिन के इलाज का खर्चा दस लाख रूपए का बिल थमा दिया. जिसके बाद परिजनों ने जमकर हंगामा किया.

मामला जबलपुर के सेंट्रल किडनी अस्पताल का है. यहां परिजनों दो दिन पहले कोरोना संक्रमित युवक को भर्ती किया था. जिसके बाद मरीज की मौत हो गई. परिजनों ने अस्पताल पर आरोप लगाया है कि महंगे इलाज के बाद भी मरीज की जान चली गई. उन्होंने बताया की अस्पताल में एक दिन के इलाज का खर्च एक लाख रूपए थी, और दो दिन का अस्पताल ने दो दिन का 10 लाख रूपए का बिल थमा दिया.

मौके पर पहुंचे तहसीलदार ने दस हजार रुपये देने की बात कही, लेकिन इतने पैसे में भी अस्पताल मरीज का शव देने को तैयार नहीं था. इसके बाद परिजनों ने हंगामा मचा दिया. इसके बावजूद भी अस्पताल प्रबंधन नहीं माना. आखिर में परिजनों को एक लाख 10 हजार देने पड़े, जिसके बाद शव उन्हें सौंपा गया.

धरने पर बैठे लोग
वहीं अस्पतालों की लूट और शासन, प्रशासन की नाकामी को लेकरआम इंसान को सड़क पर उतरना पड़ा है. जबलपुर में भी निजी अस्पतालों की मनमानी के खिलाफ एक शख्स भूख हड़ताल पर बैठ गया है. जबलपुर के अधारताल क्षेत्र के रहने वाले कोमल रैकवार ने अस्पतालों की वसूली के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी है. उन्होंने मांग की है कि वर्तमान में निजी अस्पताल कोरोना महामारी से आई आपदा को अवसर बनाकर लोगों से मोटी रकम वसूल रहे हैं. हालात यह है कि कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत हो जाने के बाद भी कई घंटों और दिनों तक ऑक्सीजन और दवाई के नाम पर उनके परिजनों से मोटी रकम वसूली जा रही है. उन्होंने कहा कि जब मरीज की मौत हो जाती है तो परिजनों के पास बिल चुकाने पैसे नहीं होते, ऐसे में लोगों को शव तक नहीं दिया जा रहा है.

हाईकोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन
गौरतलब है कि जबलपुर शहर में इन दिनों 50 से अधिक निजी अस्पताल कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं. हाईकोर्ट के निर्देश के बाद राज्य सरकार भी सभी निजी अस्पतालों को कोरोना इलाज के लिए आवश्यक खर्चों की जानकारी डिस्प्ले करने का आदेश जारी कर चुका है. आवश्यक सभी जांच की दर भी निर्धारित कर दी गई है. उसके बावजूद हकीकत में हालात बिलकुल इसके विपरीत है. निजी अस्पतालों का आलम ये है कि संक्रमित मरीज के परिजनों से महज हजारों की राशि में डिपाजिट नहीं करा रही है. बल्कि अब डिपॉजिट राशि लाखों रुपए में पहुंच चुकी है.