रायपुर। छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण के बीच एक दुखद खबर निकलकर सामने आई है. पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी और कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री करुणा शुक्ला का कोरोना से निधन हो गया है. करुणा शुक्ला 70 साल की उम्र में अंतिम सांस ली.
पूर्व सांसद और कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री करुणा शुक्ला का रामकृष्णा हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनके निधन के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में शोक की लहर दौड़ गई है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने करुणा शुक्ला के निधन पर शोक जताया है. उन्होंने कहा कि मेरी करुणा चाची यानी करुणा शुक्ला जी नहीं रहीं। निष्ठुर कोरोना ने उन्हें भी लील लिया।राजनीति से इतर उनसे बहुत आत्मीय पारिवारिक रिश्ते रहे और उनका सतत आशीर्वाद मुझे मिलता रहा। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और हम सबको उनका विछोह सहने की शक्ति।
मेरी करुणा चाची यानी करुणा शुक्ला जी नहीं रहीं। निष्ठुर कोरोना ने उन्हें भी लील लिया।
राजनीति से इतर उनसे बहुत आत्मीय पारिवारिक रिश्ते रहे और उनका सतत आशीर्वाद मुझे मिलता रहा।
ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और हम सबको उनका विछोह सहने की शक्ति। pic.twitter.com/gumLKp0Lfq
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) April 26, 2021
वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व सांसद करुणा शुक्ला जी के कोरोना के कारण निधन के समाचार से बहुत दुःखी हूँ।
ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दें और प्रियजनों एवं समर्थकों को इस दुख को सहने की शक्ति प्रदान करें।
ॐ शांति।। pic.twitter.com/4Gm9h8s8fK
— T S Singhdeo (@TS_SinghDeo) April 26, 2021
बता दें कि करुणा शुक्ला पहली बार 1993 में बीजेपी विधायक चुनी गई थीं. बीजेपी की टिकट पर सांसद रहीं करुणा शुक्ला 2009 में कांग्रेस के चरणदास महंत से चुनाव हार गई थीं. 2014 आते आते वह बीजेपी में इतनी अलग थलग पड़ीं कि उन्होंने उस कांग्रेस का दामन थामने का फैसला कर लिया, जिसके सामने अटल बिहारी वाजपेयी पूरी जिंदगी लड़ते रहे.
1 अगस्त 1950 के दिन ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला का जन्म हुआ था. भोपाल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद करुणा शुक्ला ने राजनीति में कदम रखा था. उन्हें मध्यप्रदेश विधानसभा में रहते हुए बेस्ट एमएलए का खिताब भी मिला था. वह 1982 से 2014 तक भाजपा में रहीं. करुणा शुक्ला ने 2014 में कांग्रेस ज्वॉइन की. लेकिन वे चुनाव नहीं जीत पाईं.
करुणा 1993 में पहली बार विधानसभा सदस्य चुनी गईं. 2004 के लोकसभा के चुनावों में करुणा ने भाजपा के लिए जांजगीर सीट जीती थी, लेकिन 2009 के चुनावों में करुणा कांग्रेस के चरणदास महंत से हार गईं थीं. उस चुनाव में छत्तीसगढ़ में करुणा ही बीजेपी की अकेली प्रत्याशी थीं जो चुनाव हारी थीं. बाकी की सभी सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. भाजपा में रहते हुए करुणा कई महत्वपूर्ण पदों पर रहीं जिनमें भाजपा महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद भी है. 32 साल भाजपा में रहने के बाद उन्होंने अचानक कांग्रेस का दामन थाम लिया था.
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