“अक्ति ( अक्षय तृतीया) तिहार” छत्तीसगढ़ महतारी के जतन करइया हमर किसान भाई मन के पहिली तिहार आय। हमर राज म अक्ति परब के बढ़ महत्तम हे। जुन्ना बेरा ले पुरखा मनके चलाय ये चलागन ह हमर राज के बढ़का धरोहर हे। गांव के मनखे मन ये परम्परा बड़ संजो के रखे हे अउ ये तिहार ल बड़ उछाह के साथ मनाथें।
अक्ति तिहार बइसाख महिना के अंजोरी पाख म तीज के दिन मनाए जाथे। ये परब म लइका, सियान के संग जवान के घलो भागीदारी रईथे, काबर के ये तिहार म सबके अलग-अलग बूता रईथे, तेखर सेती सबो के मन म तिहार ल लेके उछाह रईथे। पुरखा ले मिले जिम्मेदारी ल सबझन मिल बांट के निभाथें। गांव म देखे ल मिलथे के, अपन-अपन गांव के अपन-अपन नियम हे। पौनी-पसारी घलो अलग-अलग हे, फेर जम्मो गांव के कुछ बात एके रईथे। जइसे पौनी-पसारी राखे के नियम, गांव के देबी-देवता के पूजा पचीस्टा के नियम। नाऊ, राउत, बरेठ, लोहार कस बईगा घलो ह गांव के पौनी होथे। बईगा ह शीतला दाई, ठाकुरदईया (ठाकुरदेव), सांहड़ीन-सांहड़ा, ममा-भांचा, बूढ़ादेव-बूढ़ीदाई, मेड़ोदेव संग गांव के जम्मो देबी-देवता ल पूजथे। परब अउ मनउती के अनुसार बईगा गांव के देबी-देवता ल जोहारथे। गांव के मनखे मन के मानना हे येखर ले गांव म सुख शांति बने रईथे अउ देवधामी ह कोनो ल नई सताय। बईगा के ये बूता बर गांव के लोगन मन ओला दूसर पौनी-पसारी जइसे मान घलो देथें।
अक्ति के दिन जइसे सुरूज देवता उगासथे, उसनेच बईगा के अगुवाई मा गांवभर के घर पाछु एक झन ठाकुरदईया म बीज बोएं बर, नांगर जोते बर अउ पूजा करे बर जाथें। लुलुकहा सियानमन संग तूलमूलहा लइकामन घलो अगुवाय रइथें।
पूजा बर कण्डरा कर ले बीजबोनी(बांस से बनी टोकरी) बिसाय रथें। उही बीजबोनी टोकनी म बीज धरथें। बीजबोनी म धान, कोदो, तीली, गंहू, चना, तिवरा, राहेर, जौ, कुटकी, गोंदली संग बरछो जात के बीज होथे। टुकनी म नरियर अगरबत्ती, हुम बर गुड़-धूप, अउ नांगर लोहा घलो रखे जाथे।
ठाकुरदईया पहुँच के सब झन नांगर लोहा ल भूंइया म गड़िया देथें, फेर बईगा पूजा करथे। पानी छिच के बईगा बीज बोथे फेर लईका मन नांगर लोहा ल निकाल के ठाकुरदईया के आंवर भांवर घिरलाथे, ये परकार ले, ये ह पहिली बांवत होथे। बईगा ह बीज के कुछ हिस्सा ल बोते, कुछ हिस्सा ल अपन पास रखथे अउ कुछ हिस्सा ल किसान भाई मन लहूंटा देथे। बईगा ह नरियर फोर के परसाद देथे, तहां जम्मो झन अपन-अपन घर लहूंट जाथे। ठाकुरदईया म बांवत के पहिली कोनो पनिहारिन कुआं बोरिंग ले पानी नई लायं।अईसे बिहिनिया के बेरा कटथे।
ठाकुरदईया ले आके के मंझनिया तक गांव के मनखे मन अपन-अपन पुरखा के मठ (मृतकों की समाधि) अउ गांव के देबी-देवता म पानी रितोथे। तिहार के दू चार दिन पहिली मठ अउ गांव के देबी-देवता के जगह ल जगाय(जीर्णोद्धार) जाथे। सुघ्घर लिप बहार के सुन्दराय जाथे, फेर तिहार के दिन पानी रितोथें। संग म चना दार घलो डारथें। कोनो-कोनो मनखे शक्कर-गुड़ चढ़ाथें। परदेस म रहवइया मन तिहार बर घर आथें। आके अपन डीह-डोंगर(घर-द्वार) अउ अपन पूर्वज मठ म पानी रितोथें। पानी माटी के नवा चुकिया अउ करशी म दे जाथे। जेन ल तिहार के दू-चार दिन पहिली कुम्हार करा ले बिसाय बर लगथे। जुन्ना सियान मन अक्ति तिहार माने के बाद ही करशी के पानी पीयैं।
मंझनिया के बाद के बेरा ह लईकामन के होथे। काबर के ये बेरा ह पुतरी-पुतरा के बिहाव के बेरा होथे। कई गांव ये तिहार के असर 15 दिन पहिली ही देखे जा सकथे, काबर के पुतरी-पुतरा के बिहाव 15 दिन पहिली शुरू हो जथे। लइका मन के ये खेल म सियान मन घलो बरोबर भाग लेथे। कोनो गांव म तो ये पुतरी-पुतरा के बिहाव ह सिरतोन म नोनी-बाबू के बिहाव असन लगथे। कोनो नोनी पुतरी के महतारी बनथे, त कोनो नोनी पुतरा के महतारी बनथे। ये पारा ले वो पारा बरात जाथे, चउथिया जाथे अउ भांवर-टीकावन घलो होथे। लईकामन के पुतरी-पुतरा के बिहाव म सियनमन घलो सहिच के बिहाव कस बिपतियाय रईथे। अइसे माने जाथे, जेन नोनी-बाबू के बिहाव नई लगत हे वोला पुतरी-पुतरा के बिहाव खेलवा दें तहाँ ओकर बिहाव माड़ जथे। पुतरी-पुतरा के बिहाव झरे के बाद संझा पुतरी-पुतरा ल नोनी मन गांव के बाहिर म परसा, फूड़हर पेड़ म लुका देथे। कोनों-कोनों गांव म बाबू मन लकड़ी के बने तलवार म वो पुतरी-पुतरा ल मारथे घलो। पुतरी-पुतरा लुका के आये के बाद नोनी मन गोबर पानी छिंच के घर म घुसरथें।
टीकावन देवइया मनखे मन ल बजार ले बिसाय करी लाड़ू बांटे जाथे। ये परकार ले पूरा गांव ये तिहार ल मनाथें।
अक्ति के दिन भगवान परसुराम के जयन्ती घलो होथे, तेखर सेती भगवान परसुराम के बिशेष पूजा करे जाथे। भगवान परसुराम ह क्षत्रीय मन के अहंकार ल दमन करे बर 28 घांव (बार) धरती ल क्षत्रीय विहीन करे रिहिस। भगवान परसुराम शौर्य अउ वीरता के प्रतीक हरे, तेखरे सेती कई गांव म लईकामन लकड़ी के तलवार बनाके लहराथें, ओमा महूर रंग लगा के खून के चिनहा घलो बनाथें।
अक्ति म बिहाव-बर के सुघ्घर महूरत रईथे। अक्ति के भांवर पुरखा ले चले आत हे अउ येला बने माने जाथे। इही कारण हे के हमर राज म अक्ति म सबले ज्यादा बिहाव होथे। तइहा बेरा म गांव-गंवतरी जाये के मुउका अक्ति म मिलय। अक्ति म ममा-फूफू, समधी-सजन अउ घर-परिवार म जाएके अउ मेल-मिलाप के घलो सुघ्घर मुउका मिलथे। ये परकार ले अक्ति के उछाह रईथे। तइहा बेरा म बाल बिहाव ज्यादा होवत रिहिस, अब छत्तीसगढ़ राज बने के बाद मनखे मन जागरूक होइन हे अउ अब ये सब रूकगे हावय।
किसान भाई मन अक्ति तिहार मान के खेती-किसानी के तइयारी करथें। खेत के साफ सफाई, खातू डारे के बूता शुरू हो जाथे। किसान मन नांगर अउ किसानी के अवजार ल जतनथें। खातू अउ बीज के बेवस्था करथें। रेगहा, अधिया अउ किसानी के जम्मो करार अक्ति के दिन करे जाथे।
वइसे तो हमर राज म नवा सरकार बने के बाद राज के मुखिया भूपेश बघेल ह छत्तीसगढ़ीया तिहार मन के महात्तम बढ़ा दिस। काबर के अब तक हमर राज म दूसर राज ले आए मनखे अउ टीवी सीरियल के नकल म करे उछाह जादा महात्तम दे रिहिन। छत्तीसगढ़ के संस्कृति अलग हे, ये बात के महात्तम ल भूपेश बघेल समझिस। जइसे हमर अक्ति तिहार म बरछो जात के मनखे म एक जगहा सकलाथे। हमर राज म राजपत कमजोरी नो हय, ताकत आय। अक्ति तिहार इहां सामाजिक समरसता के प्रतीक हरे। अक्ति तिहार कस हमर राज के आने तिहार ल घलो जम्मो जात जुरमिल के उछाह मनाथे, जेन ह समूचा छत्तीसगढ़ी समाज ल सामाजिक अउ सांस्कृतिक उदारता बर दुनिया ले अलग करथे। हमर तिहार बार अउ चरितर ल देखले दुनिया के मनखे मन कहिथे “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” सब साल के तिहार म उछाह बरोबर देखेल मिलत हे, फेर ये बछर “उप्पत कोरोना” के सेती मनखे के जिनगी भूंजा गेहे। सबो झन इही सोंचत हे के अब काला खाबो अउ काला कमाबो। हमर राज किसानहा राज हे। इहां खेती-किसानी अउ किसानी ले जुरे बनी-भूति करईया मनखे ज्यादा हे। तेखर सेती जम्मो मनखे बिपदा म किसान मन ल बड़ उम्मीद ले देखत हें। हमर सरकार घलो किसान मन ल बड़ साथ देवत हे। हमर किसान भाई मन डराय नई हे ये बिपत के बेरा म छाती ल चौड़ा करके खड़े हे अउ किसानी के काम ल धीरे-बाने शुरू कर देंहे। आज ये अक्ति तिहार म भगवान ले ये बिनती बिनोवन के किसान मन के कोठी ह सदा भरे राहय ताकि दुनिया म कोनो मनखे भूखे झन राहैं।
(लेखक एन. डी. मानिकपुरी, अध्यक्ष पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी शोध पीठ)
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