रायपुर. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने आज आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र से प्रसारित अपनी मासिक रेडियो वार्ता ‘रमन के गोठ’ की 28वीं कड़ी को छत्तीसगढ़ के महान क्रांतिकारी अमर शहीद वीरनारायण सिंह और महान समाज सुधारक गुरूबाबा घासीदास जी के नाम पर समर्पित कर दिया। ज्ञातव्य है कि आज 10 दिसम्बर को सोनाखान के लोकप्रिय आदिवासी नेता अमर शहीद वीरनारायण सिंह का बलिदान दिवस पूरे प्रदेश में मनाया गया। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद थे। महान समाज सुधारक और छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ के प्रवर्तक गुरू बाबा घासीदास जी की जयंती इस महीने की 18 तारीख को मनाई जाएगी।
मुख्यमंत्री ने रमन के गोठ में दोनों महान विभूतियों को याद करते हुए कहा विशेष रूप से राज्य के आदिवासी और अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों से छात्रावासों और आश्रम शालाओं में जयंती मनाने और परिसरों में स्वच्छता अभियान चलाने का आव्हान किया। डॉ. सिंह की रेडियो वार्ता आज भी राज्य में स्थित सभी आकाशवाणी केन्द्रों से तथा विभिन्न टेलीविजन चैनलों से एक साथ प्रसारित की गई। छात्रावासों और आश्रम शालाओं में भी छात्र-छात्राओं ने उनका रेडियो प्रसारण गंभीरता से सुना।
डॉ. सिंह ने आज के अपने प्रसारण में कहा कि राज्य सरकार द्वारा गुरूबाबा घासीदास की जयंती पर 18 दिसम्बर से राज्य के सभी छात्रावासों में विद्यार्थियों को नोटबुक भी वितरित किया जाएगा, जिसमें उपयोगी जानकारी के साथ कई छायाचित्र भी छपे हुए रहेंगे। उन्होंने दोनों महान विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व सहित उनकी जीवन गाथा पर भी प्रकाश डाला। मुख्यमंत्री ने कहा – महापुरूषों का योगदान स्थान और समय से परे होता है। गुरू बाबा घासीदास का कृतित्व पूरी दुनिया में कमजोर वर्गाें और दलितों के उत्थान और मानवता की सेवा का प्रतीक बना। अमर शहीद वीरनारायण सिंह ने सन्1857 की क्रांति के महत्वपूर्ण दौर में प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश की तरूणाई को अन्याय, दमन और गुलामी के खिलाफ लड़ना सीखाया। मैं आज का यह कार्यक्रम इन्हीं दो महान विभूतियों को समर्पित करता हूं।
वीर नारायण सिंह का संघर्ष बना
मुख्यमंत्री खाद्य सुरक्षा योजना का आधार
मुख्यमंत्री ने कहा – वीरनारायण सिंह ने वर्ष 1856 के अकाल के दौरान जनता को भूख और गरीबी से बचाने के लिए एक व्यापारी के अनाज से भरे गोदाम का ताला तोड़कर सारा अनाज ग्रामीणों को बांट दिया था। उनके इस संघर्ष से हमें छत्तीसगढ़ में भूख के खिलाफ योजना बनाने की प्रेरणा मिली। उनका संघर्ष ‘मुख्यमंत्री खाद्य सुरक्षा’ योजना का आधार बना। इसी प्रेरणा से आगे बढ़ते हुए हमने देश का पहला खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा कानून बनाया और प्रदेश में भुखमरी की समस्या समाप्त करने और कुपोषण को तेजी से हराने की दिशा में गंभीर प्रयास किए। डॉ. सिंह ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासियों और अनुसूचित जाति वर्ग के प्रेरणा स्रोत दोनों महापुरूषों से प्रेरणा लेकर इन वर्गों के उत्थान के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी।
अनुसूचित -जनजाति विकास को
सर्वाधिक प्राथमिकता देने का संकल्प
मुख्यमंत्री ने कहा – मुझे खुशी है कि विगत 14 वर्षों में हमने अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता देने का अपना संकल्प पूरा किया है, जिसके कारण राज्य के विकास में इन वर्गों की सहभागिता बढ़ी है। उन्होंने कहा – वीर नारायण सिंह आदिवासी समाज के सपूत थे, लेकिन उन्हें सर्व समाज श्रद्धा और आदर की नजर से देखता था। आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए सरगुजा और उत्तर क्षेत्र तथा बस्तर और दक्षिण क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरणों का गठन किया गया है। अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण भी बनाया गया है। इन प्राधिकरणों की कार्यशैली मिनी कैबिनेट की तरह होती है।
बस्तर-सरगुजा में विश्वविद्यालय और
मेडिकल कॉलेज खोले गए
उन्होंने कहा बस्तर और सरगुजा में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई है। मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, एजुकेशन सिटी और शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार के अनेक उपाय करने में हम सफल हुए है। दंतेवाड़ा से शुरू हुआ लाइवलीहुड कॉलेज खोलने का प्रयोग इतना सफल हुआ कि सभी 27 जिलों में ये कॉलेज खुल गए, जो कौशल उन्नयन के लिए देश में रोल मॉडल बन गए हैं। इन क्षेत्रों में सड़क, रेल कनेक्टिविटी, इंटरनेट कनेक्टिविटी सहित ऑन लाइन सेवाओं का विकास हो रहा है। संचार क्रांति योजना के तहत स्मार्ट फोन वितरण के लिए और मोबाइल टावरों की स्थापना के लिए भी काम शुरू हो गया है। अपनी परिस्थितियों के कारण अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के परिवार, अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान नहीं दे पाते थे।
आश्रम-छात्रावासों की संख्या बढ़कर तीन हजार से ज्यादा
इस स्थिति को बदलने के लिए हमने छात्रावास तथा आश्रमों पर जोर दिया। इसके कारण छात्रावासों तथा आश्रमों की संख्या 18 सौ से बढ़कर 3 हजार 273 हो गई है। और यहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या 70 हजार से बढ़कर एक लाख 91 हजार 983 हो गई है। इस तरह विगत 17 वर्षों में संस्थाओं की संख्या में 77 प्रतिशत तथा विद्यार्थियों की संख्या में 173 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
मुख्यमंत्री बाल भविष्य सुरक्षा योजना
मुख्यमंत्री ने कहा – छात्रावासों में शिष्यवृत्ति की दर भी 350 रू. से बढ़ाकर 900 रू. तक कर दी गई है, जो विगत 14 वर्षों में 157 प्रतिशत बढ़ी है। नक्सल प्रभावित जिलों की कठिन परिस्थितियों में बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए हमने ‘मुख्यमंत्री बाल भविष्य सुरक्षा’ योजना प्रारंभ की। इसमें 3 तरह की संस्थाओं का प्रावधान है- आस्था, निष्ठा तथा प्रयास। ‘आस्था’ गुरूकुल के तहत नक्सली हिंसा से अनाथ हुए बच्चों की निःशुल्क शिक्षा तथा आवासीय व्यवस्था की गई है। ‘निष्ठा’ योजना के अंतर्गत नक्सल हिंसा से पीड़ित परिवार के बच्चों को प्रदेश के अन्य स्थानों पर निजी संस्थानों में पढ़ाने की व्यवस्था की गई है। ‘प्रयास’ संस्था नक्सल प्रभावित जिलों के उन बच्चों के लिए है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित की है और देश की बड़ी-बड़ी संस्थाओं में प्रवेश की इच्छा रखते हैं। अब प्रदेश में सभी संभागीय मुख्यालयों में ‘प्रयास’ आवासीय विद्यालय स्थापित कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा – प्रयास अवासीय विद्यालयों के प्रति बच्चों के रुझान और ललक को देखते हुए सीटों की संख्या 17 सौ से बढ़ाकर 3 हजार 620 कर दी गई है। और अब दसवीं के बदले कक्षा नौवीं से इन संस्थाओं में प्रवेश देने की व्यवस्था की गई है। प्रयास विद्यालयों में पढ़े हुए 23 बच्चे आई.आई.टी. में, 117 बच्चे एन.आई.टी. में, 528 बच्चे विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेजों तथा 27 बच्चे मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे हैं। डॉ. सिंह ने कहा – यह आंकड़ा बताता है कि समाज के सबसे कमजोर तबकों के बच्चों की प्रतिभा को संवारने में यह योजना बहुत सफल रही है। आने वाले वर्षों में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति के बच्चे बड़ी संख्या में इंजीनियर, डॉक्टर, प्रबंधक आदि बनकर निकलेंगे। प्रशासनिक सेवाओं में जाएंगे। और अपने परिवार का, अपने समाज का और प्रदेश का नया भविष्य रचेंगे।
छात्रावासों-आश्रम शालाओं में 82 हजार बच्चों का हर साल दो बार स्वास्थ्य परीक्षण
‘स्वस्थ तन-स्वस्थ मन’ योजना के अंतर्गत छात्रावास तथा आश्रम शालाओं में प्रत्येक बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण वर्ष में दो बार कराया जाता है, जिसका लाभ हर वर्ष 82 हजार बच्चों को मिल रहा है। मुख्यमंत्री ने बताया – छात्रावासों में ‘भोजन सहाय’ योजना के अंतर्गत पोस्ट-मेट्रिक छात्रावासी बच्चों को प्रतिमाह 500 रू. दिए जाते हैं, जिसका लाभ 23 हजार बच्चों को मिल रहा है। दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में विज्ञान, गणित, अंग्रेजी जैसे विषय पढ़ाने के लिए विशेष कोचिंग केन्द्र योजना लागू की गई है, जिसका लाभ प्रतिवर्ष 35 हजार से अधिक बच्चों को मिल रहा है। पोस्ट-मेट्रिक छात्रवृत्ति 2 लाख 13 हजार से अधिक बच्चों को दी जाती है। उन्होंने बताया – ‘उत्कर्ष’ योजना के तहत अनुसूचित जाति-जनजाति के बच्चों को प्रदेश के उत्कृष्ट निजी आवासीय विद्यालयों में कक्षा छठवीं तथा नौंवीं में प्रवेश दिलाया जाता है। ‘युवा कैरियर निर्माण’ योजना के अन्तर्गत नौकरी की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु प्रशिक्षण दिया जाता है। ‘सिविल सेवा परीक्षा प्रोत्साहन’ योजना के अन्तर्गत यू.पी.एस.सी. तथा पी.एस.सी. की तैयारी कराई जाती है। वहीं दिल्ली में रहकर राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं को ट्रायबल यूथ हॉस्टल की सुविधा दी गई है।
अब तक 17 हजार देवगुड़ियों का निर्माण
अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में 908 मंगल भवन बनाए गए
डॉ. रमन सिंह ने कहा – शिक्षा प्रोत्साहन योजनाओं का ताना-बाना इस प्रकार बुना गया है, जिससे नक्सल हिंसा प्रभावित अंचलों से लेकर अन्य क्षेत्रों तक के बच्चों को उनकी योग्यता तथा क्षमता के अनुरूप आगे बढ़ने के अवसर मिलें। डॉ. सिंह ने कहा – हमने लोक संस्कृति की सबसे प्राथमिक इकाई देवगुड़ी से लेकर बड़े स्तरों तक योजनाएं लागू की हैं। आदिवासी क्षेत्रों में देवगुड़ी के संरक्षण हेतु दी जाने वाली सहायता राशि 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख कर दी गई है। अब तक लगभग 17 हजार देवगुड़ियों का नवनिर्माण किया जा चुका है। अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में 907 मंगल-भवन बनाए गए हैं। प्रतिवर्ष आदिवासी लोक कला महोत्सव तथा अनुसूचित जाति लोक कला महोत्सव का आयोजन किया जाता है। उन्होंने बताया – गुरूबाबा घासीदास के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ सरकार ने गिरौदपुरी में 77 मीटर ऊंचा जैतखाम बनवाया है, जो कुतुबमीनार से लगभग सात मीटर ऊंचा है। गिरोदपुरी, भण्डारपुरी, तेलासीबाड़ा, दामाखेड़ा और सोनाखान में योजनाबद्ध विकास किया जा रहा है। इस तरह इन समुदायों की महान विभूतियों से जुड़े आस्था-केन्द्रों की स्मृतियों को संरक्षित करते हुए इनसे जुड़े महापुरूषों के प्रति आदर और श्रद्धा-भाव का विस्तार किया गया है, जिससे सर्व समाज में समरसता बढ़ी है। प्रदेश के पांच हजार से ज्यादा आदिवासी सांस्कृतिक दलों को आर्थिक सहायता दी जाती है।