आज के युवाओं की टी-शर्ट में लंबे-लंबे बालों वाले जिस नौजवान की तस्वीर छपी रहती है. उन्हें भले आज की पीढ़ी नहीं जानती होगी, लेकिन यह युवक निरंकुश हुकुमत के खिलाफ आवाज बनकर उभरे थे. उनका नाम चे ग्वेरा है. विश्व के महान क्रांतिकारी का 14 जून को जन्मदिवस है. इसी दिन इस दुनिया में उन्होंने पहला कदम रखा था. चे ग्वेरा क्रांति की धारणा को पूरे विश्व में फैलाना चाहते थे. लेकिन महज 39 साल की उम्र में 9 अक्टूबर1967 में शहीद हो गए.

चे ग्वेरा की शख्सियत ही कुछ ऐसी रही कि उनका नाम सामने आते ही नस-नस में एक अजीबोगरीब जोश की लहर दौड़ पड़ती है. अर्जेंटीना में जन्मे इस शख्स ने अपने मुल्क की सरहदों के बाहर दुनिया के कई देशों में निरंकुश और जनविरोधी हुकूमतों के खिलाफ क्रांति की जो लहरें पैदा कीं, उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती. इस अकेले युवा ने अमेरिकी साम्राज्यवाद की चूलें हिला दीं. क्यूबा के बाद वोलोबिया में क्रांति की तैयारी करते अमेरिकी एजेंसी सीआईए के हाथों शहीद हुआ. वह अकेले अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिए सबसे बड़े खौफ बन गए.

उन्हें मारने के लिए अमेरिका ने पूरी ताकत झोंक दी थी. चे ग्वेरा को गोलियों से छलनी कर दिया गया, लेकिन उनकी क्रांतिकारिता एक ओर आज भी निरंकुश हुकूमतों को डराती हैं, तो दूसरी ओर दुनिया भर के युवाओं में अन्याय के खिलाफ बगावत की प्रेरणा देती है. अर्जेंटीना के रोसरियो में 14 जून 1928 को पैदा हुए ग्वेरा का पूरा नाम अर्नेस्टो ग्वेरा डी ला सैरना था. विद्रोह उनका जन्मजात स्वभाव था. उनके पिता कहते थे कि मेरे बेटे की रगों में आयरिश विद्रोहियों का खून बहता रहता है.

ब्यूनस आयर्स से मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर बनने से पहले ही बहुत कम उम्र में उन्होंने करीब 3 हजार किताबें पढ़ डाली थीं. पाब्लो नेरूदा और जॉन किट्स उनके प्रिय कवि थे. रूयार्ड किपलिंग उनके पसंदीदा लेखकों में शामिल थे. कार्ल मार्क्स और लेनिन के साथ बुद्ध, अरस्तू और वर्ट्रेड रसेल उनके प्रिय दार्शनिक और चिंतक थे. खुद चे एक अच्छे लेखक थे. वह नियमित डायरी लिखते थे. उन्होंने पूरे लैटिन अमेरिका की अकेले अपनी मोटरसाइकिल से यात्रा की.

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इस यात्रा पर आधारित उनकी एक डायरी है, जो बाद में किताब के रूप में प्रकाशित हुई. चे के पिता स्पेन के खिलाफ पूरे दक्षिण अमेरिका में चल रहे संघर्षों के समर्थक थे. चे को अपने देश और अपने महाद्वीप के लोगों की गरीबी बेचैन कर देती थी. होश संभालते ही उनके दिलो-दिमाग में यह प्रश्न उठता था कि आखिर प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न और कड़ी मेहनत करने वाले मेरे देश और मेरे महाद्वीप के लोग इतने गरीब, लाचार, बेबस और गुलाम क्यों हैं? क्यों और कैसे स्पेन और बाद में अमेरिका ने हमारे महाद्वीप पर कब्जा कर लिया और यहां की संपदा को लूटा.

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