देहरादून. बीजेपी ने उत्तराखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री बदल दिया है. पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत फिर तीरथ सिंह रावत और अब चुनाव से ठीक पहले पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी थमा दी गई है. यानी 5 साल में उत्तराखंड की जनता को बिना चुनाव तीन अलग-अलग मुख्यमंत्री मिल गए. लेकिन आखिर बीजेपी ने चुनाव से ठीक 6 महीने पहले ये दांव क्यों खेला और पुष्कर सिंह धामी को मौका देने के क्या मायने हैं?
तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद बीजेपी में एक बार फिर कई नाम सामने आ रहे थे. राजनीतिक महत्वकांक्षा के चलते बीजेपी में शामिल हुए सतपाल महाराज के समर्थक नेताओं ने एक बार फिर लॉबिंग शुरू कर दी थी. वहीं धन सिंह रावत का नाम भी उछाला जा रहा था. लेकिन अंत में पुष्कर सिंह धामी के नाम पर मुहर लगा दी गई. जिसके लिए पार्टी ने अंदरूनी और बाहरी तमाम समीकरणों पर विचार किया.
उत्तराखंड में बीजेपी का जातीय समीकरण
उत्तराखंड जैसे राज्य में जातीय समीकरण काफी अहम रोल निभाते हैं. अब आने वाले चुनावों को देखते हुए बीजेपी के सामने एक चीज तो साफ थी कि मुख्यमंत्री चेहरा कोई ठाकुर ही होगा. उत्तराखंड में ठाकुर और ब्राह्मण राजनीति पर हमेशा से जोर दिया जाता है. इसीलिए हर पार्टी इन दोनों समीकरणों में तालमेल बिठाने का काम करती है. बीजेपी भी फिलहाल वही कर रही है. इसीलिए जातीय बैलेंस बरकरार रखने के लिए बंशीधर भगत की जगह मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. यानी ब्राह्मण की जगह ब्राह्मण को ही प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. ठीक इसी तरह अब ठाकुर (राजपूत) सीएम रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया है.
उत्तराखंड में ठाकुर वोट सबसे ज्यादा है, करीब 35 फीसदी वोटर इस समुदाय से आते हैं. उसके बाद ब्राह्मण वोट अहम है, जो करीब 25 फीसदी तक है. इसीलिए इन दोनों ही जातियों को राजनीतिक दल नाराज नहीं करते हैं.
इसके अलावा एक और समीकरण उत्तराखंड में काफी अहम माना जाता है, वो है कुमाऊं और गढ़वाल का समीकरण दोनों जगह के लोग सत्ता में अपने नेताओं की बराबर भागीदारी चाहते हैं. अब कुमाऊं से आने वाले पुष्कर सिंह धामी को सीएम पद दिया गया है तो गढ़वाल से आने वाले विधायकों को बड़े मंत्रालय सौंपे जा सकते हैं. हालांकि कांग्रेस से बीजेपी में आए गढ़वाल के कुछ विधायक नाराज बताए जा रहे हैं. साथ ही कयास ये भी हैं कि अगले कुछ दिनों में दल बदल का कार्यक्रम भी शुरू हो सकता है.
क्या एंटी इनकंबेंसी को कम कर पाएंगे धामी?
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि पुष्कर सिंह धामी की एंट्री बीजेपी के लिए 2022 में खुशखबरी लाएगी या फिर नहीं. क्योंकि बीजेपी सरकार राज्य में एंटी एनकंबेंसी का सामना कर रही है, ऐसे में क्या पुष्कर धामी वो चेहरा हैं जो जनता की नारागजी को खत्म करने की ताकत रखते हैं? इसका जवाब बीजेपी के खिलाफ जाता है. भले ही धामी एक सुलझे हुए और युवा नेता हैं, लेकिन कुमाऊं क्षेत्र के अलावा बाकी राज्य में उनकी ज्यादा पकड़ नहीं है. भले ही कहा जा रहा हो कि धामी की युवाओं में काफी अच्छी पकड़ है, लेकिन अगर देखें तो ये काफी पुरानी बात हो चुकी है, जब धामी ने 2008 के दौर में युवाओं को लेकर पदयात्रा और प्रदर्शन किए थे. यानी कुल मिलाकर महज 6 महीने में पुष्कर धामी कुछ खास कमाल नहीं कर पाएंगे.
पुष्कर सिंह धामी को लाए जाने की वजह
अब बीजेपी के लिए एडवांटेज की बात करें तो पुष्कर सिंह धामी को इसलिए सीएम की कुर्सी दी गई है, क्योंकि वो युवा हैं और बेदाग छवि के नेता हैं. उनका विवादों से ज्यादा नाता नहीं रहा है, इसीलिए चुनावों के दौरान विपक्षी दल सीधे सीएम को नहीं घेर पाएंगे. इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी रहने के दौरान धामी ने चुनावी दांव पेंच भी सीख लिए थे. कुल मिलाकर धामी का अब अगले कुछ महीनों में युवाओं पर ही पूरा फोकस रहने वाला है.
मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने युवाओं को रोजगार दिलाने को लेकर अपने आंदोलन का जिक्र छेड़ दिया, यानी पुष्कर सिंह धामी अपने करीब 13 साल पुराने आंदोलन को सीढ़ी बनाकर उत्तराखंड की सत्ता का पहाड़ चढ़ने की कोशिश करेंगे. हालांकि तब उन्होंने कांग्रेस की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था, आज भी उत्तराखंड में बेरोजगारी चरम पर है, ऐसे में क्या पुष्कर सिंह धामी खुद मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाएंगे?
अगले कुछ महीनों में होंगी लोक लुभावन घोषणाएं
पुष्कर सिंह धामी के पास बतौर मुख्यमंत्री सिर्फ 6 महीने का ही वक्त बाकी है. ऐसे में वो चाहते हुए भी ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं. इस सूरत में अगले कुछ हफ्तों में कई लोक लुभावन घोषणाएं देखने को मिल सकती हैं. लगातार मुख्यमंत्री बदलने के बाद बीजेपी अब उन मुद्दों पर बड़े फैसले ले सकती है, जिन्हें लेकर अलग-अलग जिलों के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. इसमें सबसे बड़ा मुद्दा फिलहाल उत्तराखंड भूमि कानून का है. जिसे लेकर उत्तराखंड के लाखों युवा आवाज उठा रहे हैं.
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युवाओं का कहना है कि हिमाचल प्रदेश की ही तरह उत्तराखंड में भी सख्त भूमि कानून लागू किया जाए. क्योंकि यहां बाहरी लोगों हस्तक्षेप काफी ज्यादा हो चुका है और इससे राज्य की संस्कृति खतरे में है. अब बीजेपी के पास ये एक अच्छा मौका है, चुनाव से पहले भूमि कानून लाने को लेकर बड़ा ऐलान हो सकता है. हालांकि बीजेपी की सरकार ने ही इसे खत्म करने का काम किया था.
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