रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में सदन की कार्यवाही के दौरान JCC(J) विधायक धर्मजीत सिंह ने हसदेव और मांड नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के वनों में कोयला खनन का मामला उठाया. विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा कि मांड नदी के जल ग्रहण क्षेत्र और हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन की अनुमति सरकार ना दे. बांध ख़त्म हो जाएगा. किसान प्रभावित होंगे. MLA धर्मजीत सिंह ने कहा कि पूरे भारत में तीन लाख बीस हज़ार टन कोयले का भंडार है. वर्तमान में 900 लाख टन की वार्षिक ज़रूरत है.

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में 57 हज़ार मिलियन टन कोयला है. सालाना 158 मिलियन टन की ज़रूरत है. पांच हज़ार मिलियन टन मिनीमाता बांगो कैचमेंट एरिया में आता है. ये सिंचाई का सबसे बड़ा बांध है. जीवित सिंचाई क्षमता तीन हजजार क्यूबिक मीटर है. विधायक धर्मजीत ने कहा कि इस बांध से कोरबा और आसपास की बसाहट को जल आपूर्ति होती है. इस डैम को बिसाहू दास महंत और रामचंद्र सिंहदेव ने बनाने का सपना देखा था. 11 हज़ार हेक्टेयर जंगल और छह हज़ार हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हुआ था. कोयले का खदान शुरू होगा. किसान प्रभावित होंगे. हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन की अनुमति ना दें. बांध ख़त्म हो जाएगा.

धर्मजीत ने कहा कि सरकार ऐसे दो मुंहे पर खड़ी है, जहां एक ओर यश है और दूसरी ओर अपयश है. आने वाली पीढ़ी इस बात को नहीं भूलेगी. उन्होंने कहा कि परसा केते ईस्ट खदान एमडीओ के रूप में मिला है. यूपीए शासन के समय जयराम रमेश ने नीति बनाई थी कि जंगल में खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी.

उन्होंने कहा कि 25 में से 9 कोल फ़ील्ड का अध्ययन हुआ. हसदेव अरण्य एक मात्र कोल फ़ील्ड है, जो नो गो एरिया है. अब तक हसदेव अरण्य के 22 कोल ब्लॉक में से 6 खदान में खनन चल रहा है, जिसका एमडीओ है. केते एक्सटेंशन में 1760 में से 1742 हेक्टेयर घना जंगल है. 15 जून 2015 को मदनपुर में राहुल गांधी आए थे. उन्होंने आदिवासियों से कहा था कि इस क्षेत्र में खनन होने नहीं देंगे. कोयला खनन से इस क्षेत्र को मुक्त रखा जाएगा, लेकिन इसका एमडीओ एग्रिमेंट भूपेश बघेल सरकार ने एक कंपनी से किया.

खदान आबंटन के विरोध में सांसद ज्योत्सना महंत समेत स्थानीय आदिवासियों ने पत्र लिखा है. इसे आज नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में 22 कोल ब्लॉक खुल जाएंगे. घना जंगल बर्बाद हो जाएगा. तारा से चौकियां तक सिर्फ़ खदान ही खदान नज़र आएंगे. हम उम्मीद करते थे कि ये सरकार लेमरु प्रोजेक्ट में हसदेव- मांड को शामिल करेगी. पहले हमने सुना था 1900 वर्ग किलोमीटर प्रोजेक्ट में आएगा. बाद में सुना 450 करने का प्रस्ताव आया.

उन्होंने कहा कि वन मंत्री का बयान आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि पूर्व में 450 वर्ग किलोमीटर का था, जिसे बढ़ाकर कैबिनेट ने 1995 वर्गकिलोमीटर किया. मो. अकबर ने कहा था कि स्थानीय लोगों और कुछ एनजीओ ने मांग की है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र के पांच कोल ब्लॉक की जगह को लेमरु में ले आया जाए.

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि मेरे नाम से लेमरु प्रोजेक्ट को 450 करने का कोई पत्र जारी नहीं हुआ. ये अपर सचिव की गलती थी. धर्मजीत सिंह ने कहा कि- ये सरकार डगमगा रही है. राज्य सरकार जब सदन में केंद्र के कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव ला सकती है, सीबीआई को राज्य में रोक सकती है, तो इस मामले में सरकार क्यों कदम नहीं उठा सकती. हसदेव अरण्य क्षेत्र की रक्षा के लिए सरकार को अपने कदम आगे बढ़ाएं.

बीजेपी विधायक अजय चंद्राकर ने कहा कि हसदेव के खदान क्षेत्र को लेकर सरकार आश्वासन दे कि किसी भी कंपनी को नहीं दिया जाएगा. इस क्षेत्र में माइनिंग की अनुमति नहीं दी जाए. इस प्रदेश को क़रीब ढाई हज़ार करोड़ रुपये खनिज से मिलते हैं. सरकार अपनी कमाई को बढ़ाने के लिए राज्य की जैव विविधता को ख़त्म कर गौर वाजिब माइनिंग ना करे.

वन मंत्री मो. अकबर ने कहा कि छत्तीसगढ़ में 57 हज़ार मिलियन टन कोयले का भंडार है. वर्तमान में 47 खदान संचालित हो रही हैं. राज्य शासन को कोल ब्लॉक आवंटन का अधिकार नहीं है. ये भारत सरकार के अधीन है. कोल भूमि के अर्जन की कार्रवाई भी भारत सरकार करती है. अर्जन और विकास अधिनियम की धाराओं के तहत यह किया जाता है. कोल ब्लॉक का आइडेंटिफिकेशन राज्य सरकार नहीं करती. रायगढ़, सरगुज़ा, कोरबा के जंप्रतिनिधियों ने लेमरु प्रोजेक्ट का दायरा 450 वर्ग किलोमीटर करने को लेकर चिट्ठी लिखी थी, कैबिनेट ने तय किया कि वन विभाग के दिखाए प्रेजेंटेशन में शामिल 1995 वर्ग किलोमीटर ही किया जाएगा. तीन कोल ब्लॉक में खनन जारी है.

विपक्षी सदस्यों ने कहा कि राज्य सरकार यदि एनओसी जारी जब तक नहीं करेगी, कोल ब्लॉक शुरू नहीं हो सकते. अगर सरकार हसदेव मांड को बचाना चाहती है तो एनओसी ना दे.

वन मंत्री मो अकबर ने कहा कि छत्तीसगढ़ के मोरगा साउथ, मोरगा टू, फ़तेहपुर जैसे कोल ब्लॉक का आवंटन ना किए जाने को लेकर राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखा है. परसा और केते एक्टेंशन को लेकर केंद्र से चिट्ठी आई कि बायो डायवर्सिटी के अध्ययन के बाद ही आवंटन होगा. इसके बाद भारत सरकार की फिर से चिट्ठी आई कि बायो डायवर्सिटी चलती रहेगी. आवंटन दिया जाए, इसे लेकर राय मांगी.

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