दिल्ली. भारतीय परंपरा में मित्र का जीवन में बहुत बड़ा स्थान होता है. जीवन में अगर कोई मित्र नहीं है, तो जीवन जिने का आनंद नहीं आता. मित्रों के बिना जीवन जैसे पानी बिन मछली. अर्तंराष्ट्रीय मित्रता दिवस अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है. जीवन में माता पिता और गुरू के बाद मित्र को विशेष स्थान दिया गया है. मित्र हमारे सुख-दुख के साथी होते हैं.
भारतीय परंपरा में मित्रता की बहुत सारी कहानियां प्रचलित है. इनमें से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कृष्ण और सुदामा की कहानी है. इनकी मित्रता से हमें मित्र के प्रति ईमानदारी, त्याग और सम्मान का भाव दिखाई देता है. जब कभी मित्रता की बात होती है, तो कृष्ण और सुदामा की मिसाल दी जाती है. आज अर्तंराष्ट्रीय मित्रता दिवस पर जानेंगे कृष्ण और सुदामा की कहानी.
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सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती लोगों के लिए एक मिसाल है. जब कृष्ण बालपन में ऋषि संदीपन के यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तो उनकी मित्रता सुदामा से हुई थी. कृष्ण एक राजपरिवार में और सुदामा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे. परंतु दोनों की मित्रता का गुणगान पूरी दुनिया करती है. शिक्षा-दीक्षा समाप्त होने के बाद भगवान कृष्ण राजा बन गए, वहीं दूसरी तरफ सुदामा के बुरे दौर की शुरुआत हो चुकी थी. बुरे दिन से परेशान होकर सुदामा की पत्नी ने उन्हें राजा कृष्ण से मिलने जाने के लिए कहा.
पत्नी के जिद्द को मानकर सुदामा अपने बाल सखा कृष्ण से मिलने द्वारिका गए. राजा कृष्ण अपने मित्र सुदामा के आने का संदेश पाकर नंगे पैर ही उन्हें लेने के लिए दौड़ गए. मित्र सुदामा की दयनीय हालत देखकर भगवान कृष्ण के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. भगवान कृष्ण ने मित्र सुदामा का पैर अपने आंसुओं से धूला दिया. सुदामा अपने मित्र कृष्ण के लिए एक पोटली लेकर आए थे जिसे देने से भी झिझक रहे थे, लेकिन कृष्ण ने सुदामा से छिन कर उस पोटली में रखे अनाज को खाते हुए कहा कि ऐसा अमृत मैनें आज तक नहीं खाया. यह घटना भगवान कृष्ण का अपने मित्र सुदामा के प्रति अनन्य प्रेम को दर्शाता है, इसीलिए कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल दी जाती है.
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