डिलेश्वर देवांगन, बालोद। कुछ कर गुजरने का जूनुन रास्ते का हर रोड़ा किनारा कर देता है. इस बात को चरितार्थ किया है बालोद जिले के एक किसान परिवार से ताल्लुख रखने वाले चित्रसेन ने. सात साल पहले रेल हादसे में अपने दोनों पैर गंवा दिये. उन्होंने इससे हतोत्साहित होने की बजाए जज्बा दिखाया, और कृत्रिम पैरों के सहारे माउंट एलबुरस की चोटी पर भारत का तिरंगा लहरा दिया.

परिस्थितियां हर किसी को कमजोर बना देती है, लेकिन बालोद जिले के बेलौदी गांव का चित्रसेन औरों से अलग है. 4 जून 2014 को इंजीनियरिंग की परीक्षा खत्म कर घर वापस लौट रहे चित्रसेन एक रेल हादसा का शिकार हो गया. इसमें चित्रसेन ने अपने दोनों पैर गंवा दिए, लेकिन इस हादसे ने चित्रसेन के सपनों को एक पंख दे दी. आज सात समंदर पार रूस स्थित यूरोप महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलबुरस पर चढ़कर तिरंगा लहराया.

माउंट एलबुरस पर चढ़ाई की शुरुआत उन्होंने 23 अगस्त को की थी, और 5 दिनों में माइनस 25 डिग्री तापमान के बावजूद 5642 मीटर चढ़कर मिशन इंक्लूसन को सफल किया, और प्लास्टिक फ्री देश दुनिया को दिया.

चित्रसेन बताते हैं कि दोनों पैर कृत्रिम होने की कारण पर्वतारोहण में बहुत कठिनाइयां आती है. इसके बावजूद चुनौती को स्वीकार किया है. इससे पहले भी उन्होंने अफ्रीका महाद्वीप की सबसे उंची चोटी माउंट किलिमंजारो और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप की सबसे उंची चोटी माउंट कोजीअस्को फतह कर नेशनल रिकॉर्ड बनाया था.

चित्रसेन का बचपन से सपना था कि अपने देश का नाम रोशन करे. एथलेटिक के दमदार खिलाड़ी रहने वाले चित्रसेन का हादसे से पहले भारतीय वायु सेना में चयन हुआ था, लेकिन पैर गांव बैठने के कारण सेना में नहीं जा पाए, जिसके बाद उन्होंने व्हीलचेयर के सहारे बॉस्केटबॉल भी खेला. वर्तमान में वे हाउसिंग बोर्ड रायपुर में इंजीनियर हैं. वह हर बार एक नये द्वीप में जाकर सबसे उंचे पर्वत में चढ़कर भारत का तिरंगा लहराते हैं.