चंडीगढ़। पंजाब के साथ-साथ दिल्ली के लिए भी बड़ी समस्या बन गए पराली के निपटारे के लिए आखिरकार कैप्टन अमरिंदर सरकार ने रास्ता निकाल लिया है. सरकार ने उद्योगों को पराली को ईंधन के तौर पर जलाने की अनुमति प्रदान की है. इनमें चीनी मिलें, पल्प और पेपर मिलें और 25 टीपीएच से अधिक भाप पैदा करने सामर्थ्य वाले बायलर वाले उद्योग शामिल हैं.

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है. कैबिनेट ने ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर बायलर में पराली को ईंधन के तौर पर बरतने के लिए पहले 50 मौजूदा उद्योगों को 25 करोड़ रुपये की वित्तीय रियायत देने का भी फैसला किया है. पराली के भंडारण के लिए पंचायती जमीन की उपलब्धता के लिहाज से उद्योगों को गैर-वित्तीय रियायतों के लिए 33 साल तक के लीज समझौते के साथ लीज में 6 प्रतिशत प्रति साल वृद्धि दर की मंजूरी भी दी गई है.

इसके अलावा बायलर उन क्षेत्रों में पहल के आधार पर उपलब्ध करवाए जाएंगे, जहां धान की पराली को बायलर में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. पुराने बायलरों को बदलने या नए बायलरों की स्थापना से इसके विस्तार का प्रस्ताव रखने वाली डिस्टिलरियों/ब्रुअरीज की नई और मौजूदा ईकाइयों को पराली को ईंधन के तौर पर लाजिमी तौर पर इस्तेमाल करना पड़ेगा.

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सरकार के इस कदम से खरीफ फसलों की कटाई के दौरान पराली जलाने की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी, अक्टूबर-नवंबर महीने के दौरान खेतों में पराली जलाने के कारण प्रदूषण की समस्या व्यापक रूप धारण कर लेती है. मौसमी स्थितियों के कारण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है. हालांकि, राज्य के कुछ उद्योग पराली को अपने औद्योगिक कामों के लिए बायलर में बरत रहे हैं.