पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबन्द। कोदोमाली गांव के सीमा से लगे ओड़िसा के खड़ुआमा में रहने वाले 120 लोगों की ब्लॉक मुख्यालय तक पहुंच को आसान करने ओड़िसा सरकार साढ़े 4 करोड़ का पुल बना रही है. वहीं कोदोमाली में रहने वाले 1000 लोगों को आज भी नेशनल हाइवे तक पहुंचने के लिए पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता है. पड़ोसी राज्य के सीमा पर मौजूद गांव के विकास को देख अपने को ठगा महसूस कर रहे ग्रामीण अपने गांव को ओड़िसा में शामिल कर देते.
आदिवासियों के बसाहट वाले गांव कोदोमाली में आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है. करीबन हजार भर की आबादी वाले गांव के लोगों को नेशनल हाइवे से लगे बम्हनीझोला से प्रवेश करना होता है. लगभग 12 किमी के सफर में कुछ दूर कच्चे रास्ते के बाद बरसात में आवाजाही न कर पाने वाले पगडण्डी से होकर पहुंचना होता है. बिजली के नाम पर यहां बिगड़े सोलर के कुछ पैनल मौजूद है. गांव में 4 हैण्डपम्प है, जिसमें से एक बंद हैं, तो दो में बमुश्किल पानी निकलता है. चौथे पम्प से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता है, फिर भी लाचार ग्रामीण पीने को मजबूर हैं.
वृद्ध ने सालभर से नहीं ली पेंशन राशि
गांव के सबसे बुजुर्ग सुलोचन ने साल भर से वृद्धा पेंशन नहीं लिया है, क्योंकि 55 किमी दूर जनपद मुख्यालय मैनपुर स्थित बैंक में जाने के लिए कोई साधन नहीं है. सुलोचन ने कहा कि पहले पंचायत निकाल कर दे देती थी, लेकिन जब से बैंक के खाते में पैसा जमा होना शुरू हुआ है तब से नहीं ले सका है. गांव में कोई भी मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता, इसलिए न तो पंचायत में नेटवर्क लगा है, न ही कोई बैंक मित्र भुगतान करने आ पाता है.
350 रुपए के लिए जलाते हैं 240 का पेट्रोल
ग्राम पटेल तिलक राम मरकाम, ग्रामीण रोहन मरकाम, मणि राम नागेश, निर्मल मरकाम, लच्छन, भुवन, चैतन्, शोसिलाल, नवीन, प्रेमसिंह और हरीराम बताते हैं कि गांव के 30 लोगों को वृद्धा पेंशन योजना के तहत 350 रुपये मिलता है. खाते में आहरण करने 55 किमी मैनपुर जाना होता है. ग्रामीण इलाके में 120 रुपए लीटर के दर पर 240 रुपए का पेट्रोल बाइक में डलाना होता है. दो से तीन खाताधारी एक बाइक में खर्च वहन कर पेंशन लेने पहुंचते हैं. वहीं पड़ोसी राज्य के सीमा पर मौजूद गांव के विकास को देख ग्रामीण अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं.
पड़ोसी राज्य के विकास से होती है जलन
उदन्ती सीता नदी अभ्यारण्य के बफर जोन में मैनपुर ब्लॉक के 30 से भी ज्यादा ऐसे गांव आते हैं, जहां जनजाति व आदिवासी निवास कर रहे हैं. रिजर्व फॉरेस्ट होने के कारण यहां विकास कार्य बाधित है. इन गांव के विकास के लिए संघर्ष कर रहे नागेश के अर्जुन नायक, मोतिपानी के दलसु राम मरकाम, गोना सरपंच सुनील मरकाम, कोयबा के जनपद सदस्य दीपक मंडावी ने कहा कि ओडिसा नवरंगपुर जिले के सीमा से लगे दर्जन भर गांव ऐसे हैं, जहां के विकास को देखकर हमें अपने रहन-सहन को कोसना पड़ता है.
मूलभूत सुविधाओं के लिए लगातार प्रदर्शन
गांव मे मूलभूत सूविधा की मांग को लेकर लगातार प्रदर्शन किया गया. सरकार के समक्ष लगातार मांग रखा जाता है पर कोई सुनवाई नहीं. बफर जोन में रहने वाले 25 हजार से भी ज्यादा आबादी को आज के हाईटेक युग मे भी 50 साल पुरानी व्यवस्था पर जीना पड़ रहा है. टाइगर विहीन टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर सैकड़ों लोगों को मूलभूत सुविधा से वंचित किया रखा जा रहा है. आरोप लगाया कि वन विभाग केवल विकास कार्य पर रोड़ा डालती है. बफर जोन में हो रहे अवैध कटाई व जमीन के लालच में आकर पैठ जमाने वाले प्रवासियों को रोकने में नाकाम साबित हो रही है.
विकास के लिए वाइल्ड लाइफ बोर्ड से लेनी होगी अनुमति
उदन्ती सीतानदी टाइगर रिजर्व के उपसंचालक आयुष जैन ने कहा कि बफर जोन में मौजूद गांव के विकास कार्य के लिए प्रपोजल तैयार कर वाइल्ड लाइफ बोर्ड दिल्ली से अनुमति लेना होता है. वह भी कंडिशनल होता है. 2010 के बाद जंगल के भीतर बदले हालातों के बाद (नक्सली मूवमेंट) कार्य कराने ग्रामीण खुद इच्छुक नहीं हैं. विस्थापन इसका विकल्प है. ग्राम सभा मे प्रस्ताव पारित कर जिला स्तरीय समिति को देना होगा. फिलहाल, कोर जोन में मौजूद गांव जुगाड़ के ग्रामीण इसके लिए तैयार हुए है,प्रक्रिया जारी है.
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