देश की आजादी की लड़ाई में जिन क्रांतिकारियों के खून से धरा लाल हुई. ऐसे महान क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर पहुंचाने के लिए रहस्यमयी सुरंग बनाई गई थी. जो कि दिल्ली विधानसभा में मिली है. जहां विधानसभा चलता है, वहां यह सुरंग है. यह सुरंग विधानसभा को लाल किले से जोड़ती है. इस विधानसभा में अंग्रेजों की कोर्ट चलती थी. लाल किले में बंद क्रांतिकारियों को सुरंग से ही सुनवाई के लिए लाया जाता था. देश की आजादी के 70 साल बाद इस सुरंग का पता चला है. अब अगले साल ब्रिटिश काल की सुरंग और फांसी घर को आम लोगों के दीदार के लिए खोला जाएगा. देखिए हमारी ये खास रिपोर्ट. 

दरअसल दिल्ली विधानसभा के अंदर मिली सुरंग की लंबाई करीब 7 किमी है, जो यहां से लालकिला तक जाती है. इतिहास में प्रमाण मिलते हैं कि वर्तमान दिल्ली विधानसभा की इमारत को स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम दिनों के वर्षों में अंग्रेजों ने अदालत के रूप में इस्तेमाल किया था. इसका समय 1926-27 से लेकर 1947 तक आजादी से पहले तक का माना जा रहा है. विधानसभा की इमारत में जहां पर वर्तमान में सदन लगता है. वहीं पर अंग्रेजों की अदालत लगती थी और क्रांतिकारियों को सजा सुनाई जाती थी. उस समय लालकिला में स्वतंत्रता सेनानियों को कैद कर रखा जाता था. इसी सुरंग के रास्ते लालकिला से यहां तक लाया जाता था. उस समय दिल्ली विधानसभा की मेन इमारत में पीछे की तरफ फांसी घर बना था. जहां पर क्रांतिकारियों को फांसी दी जाती थी.

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल का कहना है कि इस सुरंग का पता 2016 में चला था. उसके बाद से सुरंग के मूल ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया गया है. करीब चार मीटर तक ही खुदाई हुई है और सुरंग में अब और खुदाई नहीं की जा सकती. मेट्रो प्रॉजेक्ट के कारण मेट्रो पिलर भी आ गए है. साथ ही सीवर लाइनें भी डाली जा चुकी है. ऐसे में सुरंग के सभी रास्ते अब बंद हो गए हैं. इसके तीन छोर हैं. छोर लाल किले की ओर जाता है, दूसरा छोर विधानसभा में पीछे की ओर है. तीसरा छोर सदन में विधानसभा अध्यक्ष के आसन की ओर है.

विधानसभा अध्यक्ष ने बताया कि क्रांतिकारियों को सुरंग के जरिए यहां लाया जाता था. विधानसभा के दूसरी तरफ लाल किले के अपोजिट फांसी घर मिला है. यह आजादी के बाद से बंद पड़ा था. 2016 में मिली सुरंग में कोई बदलाव नहीं किया गया है. जैसी सुरंग का पता चला था, वैसे ही स्वरूप में यह आज भी है. विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि हम सभी यहां पर फांसी के कमरे की मौजूदगी के बारे में जानते थे. आजादी के 75वें साल में मैंने उस कमरे का निरीक्षण करने का फैसला किया था. हम उसे स्वतंत्रता सेनानियों के मंदिर के रूप में बदलना चाहते हैं.

सुरंग के बारे में कैसे पता चला. विधानसभा और सुरंग का क्या है इतिहास

विधानसभा अध्यक्ष ने बताया कि वे 1993 में विधायक बने थे. उस समय स्टाफ से पता चला था कि यहां पर सुरंग है. उसके बाद हरियाणा में पूर्व विधायक किरण चौधरी ने भी इस बारे में बताया. विधानसभा के सबसे पुराने कर्मचारियों से बात की और उन्होंने जो लोकेशन बताई, उसी जगह पर सुरंग मिली. सुरंग को संरक्षित कराया जाएगा. बताया जाता है कि 1912 में अंग्रेजों ने राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने के बाद केंद्रीय विधानसभा के रूप में दिल्ली विधानसभा का इस्तेमाल किया गया था. 14 साल तक यह इमारत अंग्रेजों की संसद रही. 1926 के बाद वर्तमान लोकसभा में केंद्रीय विधानसभा को शिफ्ट किया गया. 1926 में इसे एक कोर्ट में बदल दिया गया और अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को लाने-ले जाने के लिए इस सुरंग का इस्तेमाल किया जाता था. 1926 से 1947 तक यह अंग्रेजों की कोर्ट रही. यहीं पर फांसी घर भी बनाया गया था.

अब सुरंग मिलने के बाद आगे की क्या तैयारी है. इस सुरंग का क्या होगा, किस इस्तेमाल में आएगा. 

विधानसभा का सत्र करीब चालीस दिन चलता है. साल के बाकी दिनों में विधानसभा को टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित किए जाने की योजना पर काम चल रहा है. ‘स्वतंत्रता संग्राम को लेकर इस जगह का इतिहास बेहद समृद्ध है. इसे टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित किया जाएगा. 1912 से अब तक के इतिहास को डिजिटल रूप में दिखाया जाएगा. विधानसभा में एक हॉल भी बना रहे हैं, जहां क्रांतिकारियों की याद में उनकी तस्वीरें और जानकारी दी जाएगी. यानी अब विधानसभा को पूरे साल के लिए जीवंत बनाया जाएगा. जिस तरह से लोग लाल किला, कुतुब मीनार देखने जाते हैं, उसी तरह विधानसभा को भी देखने आएंगे.

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