काबुल। अफगानिस्तान में कब्जे के बाद तालिबान ने कार्यवाहक सरकार बनाने का एलान किया है. इसके साथ ही समारोह के लिए पाकिस्तान, चीन, रूस सहित छह देशों को न्योता भी भेजा जा चुका है. अफगान की इस कार्यवाहक सरकार में पांच ऐसे चेहरे हैं, जिनका नाम वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल हैं, और इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद से होती है.
तालिबान सरकार का मुखिया बना मुल्ला हसन अखुंद संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल है. वर्तमान में मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद तालिबान के शक्तिशाली रहबारी शूरा या नेतृत्व परिषद का प्रमुख है, तालिबान के जन्मस्थान कंधार से ताल्लुक रखने वाला अखुंद आतंकी आंदोलन के संस्थापकों में से एक है. उसने रहबारी शूरा के प्रमुख के रूप में 20 साल तक काम किया है.
सरकार में पहले उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर भी तालिबान के संस्थापकों में से एक है. साल 1994 में तालिबान के गठन में वह शामिल था. बरादर ने अफगानिस्तान में 1996- 2001 के बीच तालिबान के शासन में अहम भूमिका निभाई थी. बरादर को कभी मुल्ला उमर का करीबी भी माना जाता था. संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध नोटिस में कहा गया है कि तालिबान सरकार के पतन के बाद बरादर ने गठबंधन बलों पर हमला किया है.
दूसरा उपप्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफी पर मादक पदार्थों के तस्करी की वजह से संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगाकर रखा है. बताया जाता है कि अब्दुल सलाम हनाफी ही अमेरिका और अफगानिस्तान शांति समझौते की कुंजी था. मादक पदार्थों की तस्करी को लेकर हनाफी को प्रतिबंधित किया गया है.
वहीं गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई की हिटलिस्ट में शामिल हैं. अमेरिकी सरकार ने हक्कानी पर 5 मिलियन डॉलर (करीब 36 करोड़ रुपये) का इनाम भी रखा हुआ है. सिराजुद्दीन हक्कानी पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य संपत्ति की देखरेख करने वाले हक्कानी समूह का नेतृत्व कर रहा है, उसके पहले उसके पिता जलालुद्दीन हक्कानी इसका संचालन करते थे.
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इसके अलावा तालिबान सरकार में विदेश मंत्री बनाए जा रहे आमिर खान मुतक्की भी संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल है. लेकिन उसने दोहा में हुई शांति वार्ता के दौरान तालिबान के दल का सदस्य नियुक्त किया गया था.
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कैसे देंगे तालिबान सरकार को मान्यता
ऐसा पहली बार हुआ है, जब दुनिया के किसी देश की सरकार में दो या दो से अधिक वैश्विक आतंकी बैठे हुए हैं. ऐसे में इन आतंकियों पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों के लिए सरकार को मान्यता देना मुश्किल होगा. अगर ये देश नियमों तो ताक पर रखकर मान्यता देते हैं, तो इसे आतंकवाद के साथ समझौता माना जाएगा, इसके साथ ही यह संदेश जाएगा कि आतंकी होने के बावजूद सरकार का प्रमुख बनने पर सभी अपराध माफ हो जाते हैं.
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